प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना - गुणवत्ता जांच सिर्फ दिखावा

Update: 2022-01-15 06:27 GMT
  1. हर महीने जांचते हैं क्वालिटी, नहीं दिखती घटिया सड़कें, गुणवत्ता निरीक्षकों को भी खरीद लेते हैं भ्रष्ट अधिकारी
  2. अधिकारी ठेकेदार सरकारी धन से बना रहे अकूत संपत्ति
  3. घटिया निर्माण- पहली ही बारिश में धूल जाती हैं सड़कें
  4. ठेकेदार पांच साल मेंटनेंस से भी झाड़ लेते हैं पल्ला
  5. लोगों की शिकायत नहीं सुनी जा रही, भ्रष्टचारियों पर नहीं हो रही कार्रवाई
  6. मेंटेंनेस गारंटी के बाद भी बार बार सड़क का टेंडर निकालकर पैसे की बरबादी
  7. रोड की ड्राइंग को बिगाड़ कर सड़क की लंबाई दो से तीन किमी बढ़ा देते हैं
  8. ठेकेदार चालाकी से गुणवत्ता निरीक्षकों चिकनी सड़कें ही दिखाते हैं, ड्रिल कर के सड़क की जांच होनी चाहिए
  9. निर्माण पूरा होने से पहले ही दम तोड़ रही सड़कें - प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत सड़क निर्माण कार्य में ठेकेदार व प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अधिकारियों द्वारा जमकर भ्रष्टाचार कर स्तरहीन निर्माण सामग्री का उपयोग कर सड़क निर्माण कराया जा रहा है। प्रदेश में हर जगह सड़कें बनायी गई एवं पांच साल के मेंटनेन्स सहित संविदा की पूर्ति भी गई है, किन्तु भ्रष्टाचार के कारण सड़कें केवल नाम मात्र के लिए ही निर्मित की गई, जिसमें भारी भ्रष्टाचार हुआ। गुणवत्ताहीन सड़क निर्माण से कुछ महीनों में ही सड़कों पर दरारें आ रहीं हैं और जगह-जगह धंसने भी लगी हैं। योजना के तहत बनी सड़कों का कमोबेश पूरे प्रदेश में एक जैसा हाल है। अधिकारियों ने इस योजना को तिजोरी भरने का माध्यम बनाकर ठेकेदारों को घटिया निर्माण करने का लाइसेंस दे दिया है। जो सड़कें वर्तमान में बन रही हैं उसकी गुणवत्ता निर्माण स्थलों का निरीक्षण कर जांचा जा सकता है वहीं कुछ साल बनी सड़कों की दुर्दशा घटिया निर्माण की कहानी खुद ही बयां कर रही हैं। पांच साल तक सड़कों के मेंटनेंस की जिम्मेदारी भी ठेकेदार पूरा नहीं कर रहे हैं। राज्य निर्माण के साथ ही जब से योजना शुरू हुई है अधिकारियों की मिलीभगत से ठेकेदारों ने जमकर कमाई की है। राज्य सरकार और लोक निर्माण विभाग भ्रष्टाचार की शिकायतों को संज्ञान में लेने की जगह ठेकेदारों और कमीशन खोर अधिकारियों को उपकृत कर रहा है। सड़क घोटालों को छुपाने के लिए राज्य सरकार मरम्मत के लिए भी टेंडर जारी कर उन्हें कमाई का मौका देती है जिससे करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है।

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत छत्तीसगढ़ में हर वर्ष हजारों किमी की नई सड़कें बन रही हैं। इन सड़कों के घटिया स्तर और मापदंड़ों के अनुरुप नहीं होने की लगातार शिकायतें सामने आती रही हैं। योजना के तहत बनाई गई सड़कों की गुणवत्ता और मापदंडों से किस कदर खिलवाड़ किया जाता है इसे निर्माण के चंद महीने बाद देखकर समझा जा सकता है। कहने को तो हर महीने क्वालिटी मानिटर्स हर जिलों-संभागों में निर्माणाधीन सड़कों की गुणवत्ता जांचते हैं लेकिन एक भी सड़क का गुणवत्ताहीन और घटिया नहीं पाया जाना यह साबित करता है कि योजना में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं। इस योजना की सड़कों के निर्माण में खुलेआम भ्रष्टाचार हो रहा है। क्षेत्रीय अफसर और ठेकेदार मिलीभगत कर कम लागत में दोयम दर्जे की निर्माण कर शासन के करोड़ों रुपए डकार रहे हैं। मैदानी अधिकारियों से लेकर विभागीय और सचिव स्तर के उच्चाधिकारियों के संरक्षण में ठेकेदार में सरकारी धन को लूट रहे हैं और लोगों को सुविधाओं के नाम पर घटिया सड़कें बनाकर दे रहे हैं जिनकी उम्र बहुत छोटी होती है। अधिकारी-ठेकेदार मिलकर निर्माण के चंद महीनों बाद लोगों को पगडंडी से भी बदतर खस्ताहाल गडढे भरी सड़कों पर जीवन को खतरे में डालने विवश कर रहे हैं। संबंधित विभाग के उच्चाधिकारी न तो निर्माण कार्यो की समय-समय पर मॉनिटरिंग करते हैं न ही वस्तु स्थिति से विभागीय मंत्री को अवगत कराते हैं। विभाग टेंडर जारी कर अपने कत्र्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं और सारा काम निचले स्तर के अधिकारियों की देखरेख में होता जो बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार कर ठेकेदारों को घटिया निर्माण का अवसर देते हैं। विभागीय मंत्री भी नींद में है जिन्हें स्वत: संज्ञान लेकर घटिया निर्माण की जांच करवा कर लोगों की बुनियादी सुविधायों को छिनने वाले अधिकारियों और ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए लेकिन ऐसा हो नही रहा है और निर्माण एजेंसियां और अधिकारी बेखौफ होकर सरकार को चूना लगा रहे हैं।

क्वालिटी कंट्रोल अधिकारियों की जांच सिर्फ खानापूर्ति

प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के तहत बनाई गई सडक़ों की गुणवत्ता जांचने दो प्रकार की टीम होती है पहली टीम नेशनल क्वालिटी मॉनिटर जिसे एनक्यूएम बोला जाता है जो केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी होते हैं. दूसरी टीम स्टेट क्वालिटी मॉनिटर जिसे एसक्यूएम कहा जाता है। जिनका काम प्रधानमंत्री सडक़ योजना में हो रहे घोटालों की जाँच करते हैं। मजे की बात ये है कि ये सब अधिकतर उसी विभाग के रिटायर्ड अधिकारी होते हैं जो एक प्रकार से ओब्लाइज़्ड होते हैं। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के सीईओ द्वारा बनाये गए स्टेट क्वालिटी मॉनिटर से विभाग व अधिकारियों के खिलाफ रिपोर्ट की उम्मीद कैसे की जा सकती है। सरकारी सेवा से रिटायर्ड थके हुए ये अधिकारी अपना हिस्सा लेकर होटल के एसी रूम में ही बैठकर निर्माण एजेंसियों को ओके रिपोर्ट दे देते हैं। ऐसे में घटिया निर्माण या मापदंडों की अनदेखी की बात विभागीय अधिकारियों तक भला कैसे पहुंचेगी। निर्माण वाले इलाकों के ग्रामीण लगातार मीडिया के माध्यम से या फिर जिला अधिकारियों से स्तरहीन और घटिया निर्माण की शिकायत करते हैं। ग्रामीणों और आम जनता को पीएमजीएसवाय में हुई लीपापोती दिखाई दती है, लेकिन एनक्यूएम और एसक्यूएम के अधिकारियों को यह दिखाई नहीं देती।

हिस्सा फिक्स होने की भी चर्चा

विभागीय सूत्र तो यह भी बताते हैं कि सड़क की गुणवत्ता जांचने वाली टीम के लिए 50-50 हजार की राशि फिक्स है जिसके कारण उनके आंखों में हरियाली का चश्मा चढ़ा हुआ रहता है। हालाकि जनता से रिश्ता इसकी पुष्टि नहीं करतार्। एसक्यूएम के अधिकारियों को सब कुछ पता है कि कही कोई सड़क बनी ही नहीं है, अगर बनी भी है तो उसकी गुणवत्ता और मानकों से समझौता हुआ है इसके बाद भी एसक्यूएम बनाने के एहसान के तले दबे होने के चलते वे जांच रिपोर्ट अधिकारी के कहे अनुसार ही बनाकर देते है। क्योंकि उसकी नियुक्ति ही विभाग द्वारा की जाती है। इस प्रकार क्वालिटी कंट्रोल को जांचने वाले अधिकारी बिना देखें क्वालिटी कंट्रोल का प्रमाण पत्र दे देते हैं। स्थानीय स्तर के छुटभैय्ये नेता भी भ्रष्ट अधिकारियों और ठेकेदारों के लिए उच्च स्तर पर राजनीतिक संरक्षण देने का पुल तैयार करते हैं जिसके कारण प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना अधिकारियों और ठेकेदारों के लिए कमाई का सबसे सुलभ जरिया बन गई है।

पुल-पुलियों का भी घटिया निर्माण

कई इलाकों में बनाई गई सडक़ों में बनाए गए पुलों का निर्माण भी घटिया स्तर का है। सड़कें बनकर तैयार हुई हैं और कई जगहों पर पुलियों में दरार नजर आ रही हैं। मटेरियल की मिक्सिंग भी अत्यंत दोयम दर्जे की है जिसके कारण पुल धंसकने भी लगे हैं। सडक़ों पर पुराने पुलियों का नया निर्माण भी नहीं किया गया है। ग्रामीणों का कहना है कि इन पुल-पुलियो का नया निर्माण होना चाहिए था। कई सडक़े तो ऐसी है जिसका मरम्मत आज तक नहीं हुआ है एक बार सडक़ बनने के बाद ठेकेदार को कम से कम पांच साल मेंटेनेंस करना होता है लेकिन अधिकारियो से सेटिंग कर दोबारा उस ओर देखना तक मुनासिब नहीं समझते।

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