- अधिकारी बता रहे निर्माण कार्य प्रगति पर, लेकिन सड़क पर नहीं चल रहा काम
- जनता का पैसा बरबाद, अधिकारी-ठेकेदार मिलीभगत कर सरकारी खजाने में कर रहे सेंधमारी
- उच्चाधिकारी आंख मूंदकर टेंडर शर्तों का उल्लंघन होते देख रहे
- सरकारी पैसों पर डाका- सड़क निर्माण हुआ ही नहीं, ना ही सड़क पर कार्य चल रहा
- टेंडर शर्तों का पालन नहीं होने पर अधिकारी की मिलीभगत से ठेकेदार को पेमेंट किया
- टेंडर शर्तों में सड़क निर्माण के लिए 12 महीने की समय सीमा, फिर भी लेखा-परीक्षण नहीं हुआ
- आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी में कार्य प्रगति पर बताया...
- प्रशासकीय स्वीकृति और टेंडर बुक में निर्माण लागत अलग-अलग - कार्यपालन अभियंता परियोजना क्रियान्वयन इकाई गरियाबंद से उपलब्ध कराए गए दस्तावेज में घुमरापदर-खोखमा सड़क को निर्माण कार्य समूह क्रमांक सीजी23-160, पीएमजीएसवाई-3 के अंतर्गत बताया गया है लेकिन इस समूह के तहत उपलब्ध कराए गए टेंडर डाकूमेंट में दर्शाई गई सड़कों की सूची में उक्त सड़क का उल्लेख गरियाबंद/मैनपुर के रूप में किया गया जिसकी लंबाई 23.38 किमी, इस्टीमेट कास्ट 1765.29 लाख जिसमें निर्माण लागत 1462.08 लाख और मेंटनेंस लागत 105.21 लाख का उल्लेख किया गया है। 188.07 लाख जीएसटी चार्ज के साथ कुल लागत 1755.36 लाख बताया गया है। वहीं इस सड़क के लिए प्रशासकिय स्वीकृति 1767.63 लाख की दी गई है। जिसमें निर्माण लागत 1649.79 लाख तथा मेंटनेंस लागत 117.84 लाख का उल्लेख है। ठेकेदार को जारी वर्क आर्डर में टेंडर अमाउन्ट 1755.36 लाख का उल्लेख है जिसमें एसओआर डव्ल्यू.ई.एफ. के तहत 10.07 फीसदी की छूट के साथ एग्रीमेंट अमाउंट 1590.47 लाख का उल्लेख है।
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना अधिकारियों और ठेकेदारों के लिए कमाई का जरिया बन कर रह गई है। उच्चाधिकारियों की मिलीभगत से मैदानी अफसर और ठेकेदार सरकारी खजाने को बेखौफ होकर लूट रहे हैं और सरकार व संबंधित विभाग मूकदर्शक बना हुआ है। योजना में भ्रष्टाचार इस तरह गहरी जड़ जमा चूका है कि अधिकारी ठेकेदार को कार्य पूरा होने से पहले ही संपूर्ण भुगतान कर देते हैं और उनका बाल बांका नहीं होता। न तो निर्माण कार्य का लेखा-परीक्षण का कार्य पूरा होता है और न ही सड़क का भौतिक सत्यापन होता है लेकिन ठेकेदार को पूरा पेमेन्ट और अधिकारियों को उनका हिस्सा मिल जाता है। घटिया सड़क निर्माण और ठेकेदारों द्वारा निविदा शर्तों के उल्लंघन को लेकर संबंधित निर्माण क्षेत्र के नागरिक अधिकारियों से शिकायत करते रहते हैं लेकिन अधिकारियों-ठेकेदारों को कोई फर्क नहीं पड़ता। जनता से रिश्ता लगातार राज्य में इस योजना के तहत बनाई गई सड़कों की दुर्दशा, घटिया निर्माण, ठेकेदारों की मनमानी और अधिकारियों के भ्रष्टाचार को लेकर रिपोर्ट प्रकाशित करते आ रहा है, इसके बावजूद सरकार की नींद नहीं टूटना और भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों-ठेकेदारों पर कार्रवाई नहीं होना दर्शाता है कि नीचे से लेकर ऊपर तक पूरा सरकारी तंत्र ठेकेदारों के माध्यम से उपकृत हो रहा है, जिससे कोई भी जिम्मेदार वंचित नहीं रहना चाहता।
सड़क निर्माण अधूरा, लेकिन ठेकेदार को फुल पेमेन्ट
गरियाबंद जिले में पिछले दो साल में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बनाई गई अथवा बनाई जा रही सड़कों में भारी गड़बडिय़ा सामने आई है। जनता से रिश्ता इन सड़कों को लेकर खबर प्रकाशित करते रहा है। संबंधित विभाग ने सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में घुमरापदर-खोखमा सड़क को लेकर कुछ दस्तावेज उपलब्ध कराए हैं। जिसमें कई खामियां सामने आई हैं। सबसे हैरान करने वाली जानकारी यह है कि सड़क निर्माण कार्य प्रगति पर होने के साथ इसका लेखा परीक्षण भी नहीं होना बताया गया. बावजूद पूख्ता जानकारी के अनुसार इस सड़क निर्माण कार्य के लिए ठेकेदार को पूर्ण भुगतान कर दिया गया है। जाहिर यह अधिकारी और ठेकेदार की मिलीभगत के बगैर संभव नहीं है। लेकिन संबंधित विभाग और सरकार को इतना बड़ा घपला नजर नहीं आता।
12 महीने में निर्माण होना था पूरा
घुमरापदर-खोखमा सड़क के लिए ठेकेदार मोहम्मद फारुक वारसी, रायपुर को 7 जुलाई 2020 को वर्क आर्डर जारी किया गया था। सड़क का निर्माण कार्य 12 महीने यानि एक वर्षाकाल में पूर्ण करना था। तय समय सीमा में सड़क का निर्माण 6 जुलाई 2021 को पूरा होना चाहिए था लेकिन सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में सितंबर 2021 तक भी कार्य प्रगति पर बताया गया है। जबकि आज दिनांक की स्थिति में सड़क पर किसी तरह का कोई निर्माण कार्य नहीं हो रहा है।
घुमरापदर-खोखमा सड़क निर्माण में भारी अनियमितता
घुमरापदर-खोखमा सड़क के निर्माण में भारी अनियमिता होने की शिकायत ग्रामीणों ने की थी। सड़कों के निर्माण में मापदंड का ध्यान नहीं रखा गया है। 8 लेयर के काम में केवल लेबल मेंटेन किया गया है। अंदर जंगल पहाड़ का मलमा डालकर ऊपर गिट्टी चढ़ाकर डामरीकरण कर दिया गया है। माइनिंग मटेरियल वन क्षेत्रों से लाया गया है क्रेसर गिड्टी का थोड़ा ही प्रयोग हुआ है प्राक्लन के अनुसार कार्य न होकर दूरस्थ अंचल का लाभ उठाया गया है। मुरम- पत्थर- लरटेराइट का अधिक प्रयोग हुआ है। अंत में कारपेट से सील कोट कर कार्य को अंतिम रूप दिया गया है 23 किलोमीटर के मार्ग में जिसमें 17 करोड़ की लागत में आधी लागत से घटिया निर्माण कर बिल की निकासी हो गयी है। जिले में योजना के तहर बन रही सड़कों में जमकर लूट-खसोट मची है। आदिवासी एवं दूरस्थ अंचल में सुविधाएं बढ़े और विकास का लाभ गरीबो तक पहुंचाने के सरकार के लक्ष्य को ठेकेदार और अधिकारी मिलकर बट्टा लगा रहे हैं। समूचे गरियाबंद जिले के भीतरी क्षेत्रों में हो रहे कार्यो की जांच जरुरी है ग्राम सड़क संभाग गरियाबंद के सभी कार्यों में व्यापक अनियमिता हुई है। अधिकांश भ्रष्टाचार व घोटालों में छुटभैये नेताओ की भी अधिकारियों-ठेकेदारों से मिलीभगत होने से किसी भी घपले पर सरकार कार्रवाई नहीं कर रही है।
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