मौत के सौदागरों को बचा रही पुलिस...साख पर बट्टा

Update: 2021-05-21 06:01 GMT

राजधानी अस्पताल हादसे के मामले में गिरफ्तार दो डॉक्टरों को मिल गई जमानत, फरार डॉक्टरों की अब तक हो रही तलाश

आरोपियों को गिरफ्तार नहीं कर बचने का दे रहे पूरा अवसर

रेमडेसिविर कालाबाजारी मामलों में भी सिर्फ खानापूर्ति

कालाबाजारियों पर एनएसए के बजाय प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। महामारी के दौर में राजधानी में एक अस्पताल में हुई आगजनी का घटना और कोरोना के लिए इलाज के अतिआवश्यक इंजेक्शन रेमडेसिविर की कालाबाजारी के मामले में छत्तीसगढ़ पुलिस की भूमिका अत्यंत निराशाजनक रही हैं। राजधानी हास्पीटल के कोविड वार्ड में लगी आग में सात मरीजों को जान गवानी पड़ी जबकि रेमडेसिविर के कालाबाजारी से बाजार में उत्पन्न इंजेक्शन के कृत्रिम अभाव से भी कई जाने गई है, ऐसे गंभीर मामलों में पुलिस द्वारा मामूली प्रतिबंधात्मक धाराओं के तहत कार्रवाई करना और मौत के सौदागरों को लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने खुला छोड़ देना अत्यंत पीड़ादायक है। इन मामलों में सरकार और जिला प्रशासन का रवैया भी काफी ढिला रहा है। जबकि आपदा में लोगों की जान से खिलवाड़ और जरूरतमंदों की मजबूरी का फायदा उठाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की अपेक्षा थी। सरकार और पुलिस को पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश से सीख लेनी चाहिए, जहां कि पुलिस और प्रशासन ने नकली इंजेक्शन मामले में आरोपियों के सरकार से जुड़े संगठनों से संबंध रखने के बावजूद उनपर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई की। यहां तक के कई आरोपियों के आलीशान बिल्डिंगें भी जमींदोज कर दी। वहीं रायपुर पुलिस आज तक अस्पताल हादसे के जिम्मदारों को गिरफ्तार नहीं कर पाई है। जानकारी मिली है कि जिन दो डाक्टरों को गिरफ्तार कर पुलिस ने जेल भेजा उन्हे भी जमानत मिल गइ्र है। पुलिस ने रेमडेसिविर कालाबाजारी के मामलों में आरोपियों पर महज प्रतिबंधात्मक धारा के तहत कार्रवाई कर उन्हें जमानत पर छुटने का रास्ता दे दिया। जबकि नकली इंजेक्शन बनाने वाली कंपनी के तार राजधानी से जुडऩे के मामले में भी पुलिस अब तक कुछ खास नहीं कर पाई है।

अस्पताल आग हादसे में लीपापोती, आरोपी पकड़ से बाहर

राजधानी सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल में पिछले महीने हुए अग्निकांड में कोरोना संक्रमित सात मरीजों की मौत के मामले में पुलिस और हेल्थ विभाग व जिला प्रशासन की जांच ठहर गई है। मामले में राजनीतिक संरक्षण प्राप्त रसूखदार जिम्मेदारों को बचाने की बराबर कोशिश जारी है। पुलिस ने मामले में दो डॉक्टरों को गिरफ्तार करने के बाद जेल भेजकर अपनी जिम्मेदारी खत्म समझ ली है। दूसरी ओर जिला प्रशासन की जांच अस्पताल प्रबंधन से पूछताछ और फायर सेफ्टी की जांच तक ही सीमित है, जांच टीम अब तक अस्पताल की कमियों और लापरवाही को लेकर किसी नतीजे तक नहीं पहुंच पाई है। इस मामले में पुलिस अब तक फरार चल रहे दो डॉक्टर को पकड़ नहीं पाई है। जबकि दोनों के राजधानी में ही होने की सूचना है। जानकारी के अनुसार गिरफ्तार दो डॉक्टर अपनी जमानत के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं। चूंकि दोनों फरार डॉक्टर रसूखदार और ऊंची पहुंच वाले हैं ऐसे में उन्हें बचाने की हर कोशिश हो रही है। लगता है पुलिस भी यह चाह रही है कि गिरफ्तार डॉक्टरों को जमानत मिल जाए तब दोनों डॉक्टरों को गिरफ्तार किया जाए ताकि दो डॉक्टरों को मिली जमानत के आधार पर उन्हें भी जमानत मिल जाए और उन्हें जेल जाने की नौबत न आए। उल्लेखनीय है कि इस हादसे में सबसे अहम फायर सेफ्टी विभाग और एफएसएल की जांच रिपोर्ट के आधार पर अभियोजन की राय लेने के बाद अस्पताल का संचालन कर रहे चार डॉक्टरों के खिलाफ गैर इरातन हत्या का केस दर्ज किया गया है।

कालाबाजारियों पर प्रतिबंधात्मक कार्रवाई

कोरोना महामारी के दौर में जब गंभीर मरीजों के लिए रेमडसिविर इंजेक्शन को जरूरी बताया गया तब राजधानी सहित राज्य के कई शहरों में मुनाफाखोरों ने इसका कृत्रिम अभाव पैदा कर ऊंचे दामों पर बेचने के लिए इसकी कालाबाजारी शुरू कर दी। मुनाफा कमाने के इस धंधे में सरकारी अस्पतालों के कर्मचारियों से लेकर निजी अस्पतालों, दवा कारोबारियों और मदद के नाम पर निजी हित साधने वालों ने लोगों की मजबूरी का भरपूर फायदा उठाया। लोगों ने पांच हजार से लेकर 9 हजार तक बिकने वाली इस इंजेक्शन को कालाबाजारियों से 30 हजार से लेकर 80 हजार रुपए तक में खरीदा, कि शायद उनके अपनों की जान बच जाए। पुलिस ने रेमडेसिविर की कालाबाजारी करने वाले कई लोगों को पकड़ा लेकिन आरोपियों पर महज प्रतिबंधात्मक धारा 151 के तहत कार्रवाई की जिसके चलते उन्हें निचली अदालत से ही जमानत मिल गई। जिन आरोपियों से बड़ी संख्या में इंजेक्शन बरामद हुई उन्हें रिमांड पर लेकर पूछताछ करने की जरूरत भी नहीं समझी गई। हो सकता था कड़ी पूछताछ से कालाबाजारी के लिए परदे के पीछे सक्रिय चेहरे सामने आते, लेकिन पुलिस ने उन्हें बेनकाब करने में कोई दिलचस्पी नही ली।

पुलिस की भूमिका पर उठ रहे सवाल

इम मामलों में पुलिस की भूमिका से कई सवाल उठ रहे हैं। महामारी के दौर में लोगों की जान से खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ सख्त और कड़ी कार्रवाई की अपेक्षा हर कोई कर रहा था लेकिन अस्पताल में आगजनी और मौतों के लिए जिम्मेदार डाक्टरों को गिरफ्तार नहीं कर उन्हें अग्रिम जमानत मिलने का अवसर देना दर्शाता है कि पुलिस मामले को अत्यंत हल्के में ले रही है। इसके पीछे कारण चाहे आरोपियों के रसूख और राजनीतिक पहुंच हो, जिनकी जान इस हादसे में गई वे शायद न्याय के हकदार नहीं है। इसी तरह कालाबाजारी मामले को भी पुलिस ने अत्यंत हल्के में लिया। कालाबाजारी में अस्पतालों और दवा कारोबारियों की बड़ी भूमिका होने की चर्चा थी। इसकी गहराई से जांच होने पर कई ऐसे चेहरे बेनकाब होते जिनकी बड़ी रसूख और राजनीतिक पहुंच हैं। इसलिए कालाबाजारी के मामलों में भी सिर्फ खानापूर्ति की गई।

नकली रेमडेसिविर जांच को मंजूरी, 40 नहीं सिर्फ 4 की होगी जांच

नकली रेमेडेसिविर मामले में आरोपी कंपनी का स्थानीय एजेंसी से तार जुडने पर जनता से रिश्ता ने काला बाजारियों से जब्त इंजेक्शनों की जांच कराये जाने पर जोर दिया था । अब इसकी जांच के लिए ड्रग विभाग ने सैंपलिंग की मंजूरी दे दी है। इसकी जांच में 45 से 48 हजार तक का खर्च आ रहा है। इस वजह से 40 नहीं केवल 4 इंजेक्शन के सैंपल की जांच कर असली-नकली का पता लगाने का प्रयास होगा। ड्रग विभाग के जानकारों के अनुसार एक टेस्ट में खर्च अधिक आने के कारण ही सैंपलिंग की संख्या कम की गई है। चार सैंपल की जांच रिपोर्ट आने के बाद ही नकली इंजेक्शन की तहकीकात आगे बढ़ेगी। अब तक इंजेक्शन के टेस्ट के खर्च के कारण ही जांच अटक गई थी। पहले ये अनुमान लगाया गया था कि एक इंजेक्शन के टेस्ट में करीब 1.20 लाख खर्च आएगा। इस वजह से बजट का संकट खड़ा हो गया था।

मप्र में नकली रेमडेसिविर से 9 लोगों की मौत का खुलासा: नकली रेमडेसिविर मामले की जांच कर रही मप्र पुलिस की एसआईटी ने जांच में खुलासा किया है कि नकली इंजेक्शन लगने से 9 मरीजों की जान गई।

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