जनजाति संस्कृति को बचाएगा पेसा कानून, राज्यपाल से मिला प्रतिनिधि मंडल

Update: 2020-10-27 16:04 GMT

छत्तीसगढ़ पंचायत उपबंध ( अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम 1996 के तहत नियमावलीअधिसूचना हेतु प्रतिनिधि मण्डल की राज्यपाल अनुसूइया उइके से भेंट।

वनवासी विकास समिति के प्रदेश सचिव जमधर सिंह नेतामएवं उच्च न्यायालय के अधिवक्ता दिलमन मिंझ के नेतृत्व मे एक अति विशिष्ट प्रतिनिधि मण्डल ने दिनांक 26 अक्तूबर 2020 को अनुसूइया उइके जी से मुलाक़ात की। यह मुलाक़ात राज्य मे वनवासी विकास समिति द्वारा तैयार पेसा नियमावली 2020 का परीक्षण करने तथा इस नियमावली को जनजातीय समाज के हित मे यथाशीघ्र लागू किए जाने की दृष्टि से आयोजित की गई थी। इस प्रतिनिधि मण्डल मे अखिल भारतीय जनजाती हितरक्षा प्रमुख गिरीश कुबेर के साथ अन्य सदस्य अधिवक्ता महेश मिश्रा ,पूर्णेंदू कुमार भट्ट और सुरेन्द्र देवांगन शामिल थे। इस अवसर पर प्रतिनिधि मण्डल ने राज्यपाल महोदया को एक ज्ञापन सौंपा है।

जल, जंगल और जमीन से जुड़ी जनजातियों के अधिकारों और संस्कृति को बचाने के लिए वनवासी विकास समिति छत्तीसगढ़ प्रांत ने पेसा कानून "छत्तीसगढ़ पंचायत व अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार अधिनियम 1996 को " जनजातियों क्षेत्रों में प्रभावी ढंग से को लागू करने के लिए पेसा नियमों का प्रारूप, छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसूइया ऊईके को सौंपा ।

पेसा कानून जनजातियों को ग्राम सभा के माध्यम से स्वशासन के साथ साथ उनके सांस्कृतिक और परंपरागत अधिकारों को संरक्षित रखने का व्यापक आधार प्रदान करता है। पेसा अधिनियम 1996 को अविभाजित मध्यप्रदेश सरकार ने लागू किया था किन्तु दुर्भाग्य से लागू होने के 23 वर्षों के बाद भी प्रभावी पेसा नियमों के अभाव मे जन जातीय समूह जल, जंगल और ज़मीन से जुड़े अपने अधिकारों से वंचित रहे है।

वनवासी विकास समिति ने जन जातियों के सामाजिक ,सांस्कृति और धार्मिक परम्पराओं और मान्यताओं को संरक्षित करने के लिए पेसा कानून के नियमों का एक प्रारूप प्रस्तावित किया है। इन नियमों के अंतर्गत जन जातियों को उनके मूल संस्कृति, मूल धार्मिक मान्यताओं और मूल परम्पराओं की पहचान बनाए रखते हुए उनके धार्मिक और सामाजिक उत्थान के लिए ग्राम सभा को प्रभावी और वास्तविक अधिकार हासिल है। लघु और गौण वनोपज़ पर ग्राम सभा को खनन और उद्योग पर प्रभावी नियंत्रण रखने का अधिकार दिया है । जनजातीय समाज के धार्मिक और सामाजिक परम्पराओं, पूजा पाठ, उत्सव आदि के लिए वनोपज़ के सतत उपयोग का प्रावधान किया गया है। साथ ही ग्राम सभा को दीवानी और सम्झौता योग्य विवादों को परंपरागत ढंग से निपटाने का अधिकार भी दिया गया है । ग्राम सभा को यह अधिकार भी दिया गया है कि वह जन जातीय समाज के रीति रिवाज सामाजिक और धार्मिक प्रथाओं और सामुदायिक संसाधनों पर पारंपरिक प्रबंधन को सुनिश्चित रखने के लिए राज्य सरकार द्वारा

कानून बनाए जाने का प्रस्ताव भी पारित कर सकती है। वास्तव में प्रस्तावित पेसा नियमावली प्रारूप का मुख्य उद्देश्य जन जातीय समहों को उनके सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक परम्पराओं के माध्यम से भारतीय संविधान मे उनके दिये गए अधिकारों को प्रभावी ढंग से लागू करवाना है । शासकीय योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के साथ साथ उन पर निगरानी रखने का अधिकार भी ग्राम सभा को दिया गया है। ग्राम सभा वन, माइनिंग, सिंचाई, राजस्व और पुलिस विभागों के साथ पूरे अधिकारिता और प्रभाव के साथ तालमेल बैठा सकेगी। विभिन्न अधिकार सम्पन्न समितियों जैसे संसाधन नियोजन एवं प्रबंध समिति, कृषि एवं उपज बीज समिति, भूमि प्रबंधन समिति, धार्मिक विवाद प्रबंधन समिति, जन जातीय संस्कृति एवं परंपरागत संरक्षण समिति, प्राकृतिक संसाधन प्रबंध समिति, कानून एवं जागरूकता समिति आदि न केवल जन जाती वर्ग को स्वशासन मे शिक्षित करेगी बल्कि शासन कि योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए भागीदारी भी उपलब्ध कराएगी पेसा ग्राम सभाएं आम ग्राम सभाओं से अलग होती है, हलबी, गोंडि, उरांव, भील आदि जन जातियों की ग्राम सभाएं भिन्न होती है। यह सभी जन जातियाँ अपने- अपने जन जातीय परम्पराओं के अनुसार ग्राम सभा का निर्माण करती है और अपनी शक्तियों का प्रयोग करती है।

इन समस्त बातों को ज्ञापन मे प्रमुखता से उल्लेखित किया गया है तथा राज्यपाल महोदया से शीघ्रताशीघ्र जनजातिय क्षेत्रों मे प्रभावी ढंग से पेसा नियमों को लागू करने के संबंध मे निवेदन किया गया है।

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