भाजपा की तरह कांग्रेस के पैराशूट प्रत्याशियों को झेलना पड़ेगा विरोध
रायपुर। छत्तीसगढ़ में राजनीतिक तापमान 90 डिग्री से ऊपर हो गया है। 21 सीटों के नाम एक माह पहले घोषित कर जिस तरह भारतीय जनता पार्टी में पैराशूट बाहरी प्रत्याशी का विरोध हो रहा है ठीक उसी तरह का विरोध कांग्रेस पार्टी जमकर देखने को मिलने वाला है। दक्षिण विधानसभा में पुराने प्रत्याशी जिन्होंने ने पूर्व में चुनाव लड़ा है । सभी आपस में एकजुट एकराय होकर उन्हीं में से किसी एक को प्रत्याशी बनाने की मांग की जा रही है। लगता है कांग्रेस पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं ने ऐलान कर दिया है कि बाहरी और पैराशूट प्रत्याशी बिल्कुल नहीं चलेगा। अगर दक्षिण विधानसभा कांग्रेस को जीतना है तो दक्षिण विधानसभा में ही रहने वाले को ही प्रत्याशी बनाना चाहिए । ना कि पैराशूट से उतरने वाला हवाला बाज, अवैध कारोबार, होटल माफिया, सट्टा माफिया, जुआ माफिया, शराब माफिया ऐसे किसी भी प्रत्याशी को दक्षिण विधानसभा के कार्यकर्ता बर्दास्त नहीं करेंगे। विधानसभा की कामोबेस स्थिति के हिसाब से कांग्रेस हमेशा मुकाबला भी नहीं कर पाती है। लेकिन पिछले विधानसभा में कन्हैयालाल अग्रवाल ने भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान विधायक अग्रवाल को कड़ी चुनौती देते हुए बहुत ही कम मार्जिन से चुनाव पलटने की नाकाम कोशिश जरूर की थी, लेकिन उस वक्त भी सफलता नहीं मिली। गौरतलब है कि दक्षिण विधानसभा में मुस्लिम उडिय़ा और ब्राह्मण समाज जनसंख्या के हिसाब से अधिक होने की कारण अब मांग की जा रही है इनमें से किसी समाज, राजनीतिक और दक्षिण विधानसभा के मूल निवासी को ही कांग्रेस पार्टी प्रत्याशी बनाए तो भाजपा का समीकरण बिगड़ सकता है। छत्तीसगढ़ चुनावी मुहाने पर खड़ा है। राजनीतिक सरगर्मी इतनी बढ़ गई है नेताओं का पसीना विधानसभा क्षेत्र में दिखाई देने लगा है।
कांग्रेस 2018 की जीत को बरकरार रखने के लिए संभागीय सम्मेलन कर रणनीति बना रही है, लेकिन एक ऐसी विधानसभा सीट है जहां कांग्रेसी चुनाव लडऩे से घबराते हैं। इसे बीजेपी का अभेद किला माना जाता है। इस सीट पर पिछले 33 साल से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ रहा है। वहीं बीजेपी की तरफ से एक ही विधायक सात बार इस विधानसभा सीट से चुनाव जीतने का रिकार्ड बना चुके हैं। ये सीट बीजेपी के लिए हमेशा से सेट रही है। वहीं कांग्रेस के बड़े बड़े दिग्गज नेता आए, लेकिन रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट को पतह नहीं पाए। यहां कांग्रेस के सारे राजनीतिक अस्त्र धरे के धरे रह गए। 2018 विधानसभा चुनाव के आंकड़ों की बात करें तो बीजेपी के दिग्गज नेता बृजमोहन अग्रवाल17 हजार से अधिक वोट से जीतकर सातवीं बार छत्तीसगढ़ विधानसभा में पहुंचे। दक्षिण सीट का इतिहास राज्यगठन के पहले ये पूरा इलाका केवल एक सीट का हुआ करता था। अभी वर्तमान में रायपुर सिटी में चार विधानसभा सीटे हैं, लेकिन पहले केवल एक ही सीट हुआ करती थी। तब से ही बृजमोहन अग्रवाल यहां के विधायक हैं। बृजमोहन अग्रवाल 1990 में पहली बार अविभाजित मध्य प्रदेश में विधायक बनें। इसके बाद भी वो 1993,1998 में भी अविभाजित मध्य प्रदेश में विधायक बनें. फिर छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद वो लगातार चार बार 2003, 2008, 2013 और 2018 में चुनाव जीत चुके हैं। रायपुर सिटी का सबसे ज्यादा ट्रैफिक वाला इलाका है। यहां रोजाना लाखों लोगों की आवाजाही होती है। इसलिए रायपुर दक्षिण इलाके में ट्रैफिक जाम की बड़ी समस्या कई साल से बनी हुई है। यहां सड़क किनारे बाजार लगने से यातायात व्यवस्था प्रभावित होती है। इसका स्थाई समाधान आज तक नहीं निकाला जा सका है। यहां की जनसंख्या भी तेजी से बढ़ रही है. यहां बाहर से लोग काम करने नौकरी की तलाश में आते हैं। यहां होने वाले विकास कार्यों की रफ्तार भी स्लो है। सड़कें जर्जर होती जा रही हैं। वहीं बारिश के मौसम में जल भराव की भी स्थिति नजर आती है। मतदाता 2 लाख 38 हजार रायपुर दक्षिण विधानसभा सामान्य सीट है। 2018 के चुनाव परिणाम के अनुसार इस सीट में कुल मतदाता 2 लाख 38 हजार 780 हैं, लेकिन 2018 में यहां 1 लाख 47 हजार 228 लोगों ने मतदान किया. यानी 61 फीसदी मतदाता ही मतदान करने पहुंचे थे. इसमें से बृजमोहन अग्रवाल को सबसे ज्यादा 77 हजार 589 वोट यानी 52.70 फीसदी वोट मिले. दूसरी स्थान पर कांग्रेस पार्टी रही. कांग्रेस के प्रत्याशी कन्हैया अग्रवाल को 40.82 फीसदी वोट मिले। वहीं तीसरे स्थान पर नोटा ने अपनी जगह बनाई। यानी 1514 लोगों ने किसी को वोट नहीं किया और चौथे नंबर पर बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी उमेश दास मानिकपुरी को 1514 वोट मिले। इसमें खास बात ये भी है की पिछली बार यहां 90 हजार से अधिक मतदाताओं ने अपने वोट का प्रयोग ही नहीं किया।
रायपुर दक्षिण जिसे अभी तक भेद नहीं पाई कांग्रेस रायपुर दक्षिण विधानसभा का जातिय समीकरण 2023 में बदला हुआ नजर आ रहा है, ब्राम्हाण, उडिय़ा और मुस्लिम आबादी बाहुल क्षेत्र है। सामान्य और पिछड़ा वर्ग का प्रतिशत कम है। इसलिए बृजमोहन को टक्कर देने के लिए स्थानीय को यहां से टिकट देने की मांग बलवती हो रही है। लेकिन अभी भी मतदाताओं की पहली और आखिरी पसंद बृजमोहन बने हुए है। रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट बीजेपी की परंपरागत सीट मानी जाती है। 33 साल से एक ही व्यक्ति इस सीट विधायक बन रहे हैं। दक्षिण विधानसभा के नागरिकों का कहना है कि रायपुर दक्षिण ऐसी सीट है, जहां हर बार दर्जन भर से ज्यादा प्रत्याशी मैदान में होते हैं, लेकिन टक्कर केवल कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही है। डमी कैंडिडेट का खेल भी रायपुर दक्षिण विधानसभा में देखने को मिलता है। खास बात ये है कि यहां बृजमोहन अग्रवाल पार्टी नहीं नेतृत्व के दम पर चुनाव जीत जाते हैं। यहां कोई जातिगत समीकरण भी काम नहीं आता। यहां पूर्ण रूप से लोकतांत्रिक व्यवस्था दिखाई देती है। कई पीढिय़ों से वोटर बृजमोहन अग्रवाल को वोट दे रहे हैं। बृजमोहन अग्रवाल की यहां के हर परिवार में पहुंच है। कांग्रेस इस सीट पर आती तो है और चुनाव के पहले दम भी दिखाती है, लेकिन बृजमोहन के रणनीति के सामने सब फेल हो जाते हैं। यहां बृजमोहन का घरेलू संगठन काम करता है। इसलिए अब कांग्रेस भी इस सीट के लिए ज्यादा गंभीर नजर नहीं आती।