CG NEWS: सरकारी चावल की खुले आम लूट

Update: 2024-07-01 06:15 GMT

रायपुर raipur news। चावल की कालाबाजारी black marketing of rice में बड़े -बड़े लोगों का चेन बना हुआ है जो धान खरीदी से लेकर चावल बनाने से लेकर उपभोक्ता तक पहुंचाने वाले चेन में बहुत बड़ा गड़बड़ घोटाला है। जिसको समझ पाना आसान नहीं है। गरीबों को राशन पाने के लिए कई किलोमीटर चलना होता है। जबकि दलाल उसे आसानी से प्राप्त कर लेते है। सरकारी राशन दुकानदार गोदाम से चावल उठाकर सीधे दलालों के बताए ठीहे में गाड़ी खाली करवा देता है। वैसे भी खाद्य विभाग मानिटरिंग के नाम पर लीपापोती कर सीधे दलालों को फायदा पहुंचाती है। दुकानदार माह का राशन उठाकर आधे को बांटती है और आधे राशन को सीधे खुले बाजार में बेच देती है। राशन दुकानों में घालमेल का इतना बड़ा रैकेट काम करता है कि कोई समझ ही नहीं सकता कि चावल दुकान में आते ही कहां गायब हो गया। कार्ड के हिसाब से चावल का उठाव कर दुकानदार आनलाइन मानिटिरंग सिस्टम को भी फेल कर देने की हुनर में माहिर है। chhattisgarh

chhattisgarh news गरीबों के कार्ड दलाल और दुकानदार के पास गिरवी

गरीबों के राशन कार्ड में चावल का आवंटन कार्डों की संख्या के आधार पर होता है। मजे की बात यह है कि सरकारी राशन की कालाबाजारी का मुख्यस्रोत राशन कार्ड है जो दलालों और राशन दुकानदारों के पास गिरवी होता है। कार्डधारक हर महीने एक निश्चित राशि लेने के लिए कार्ड को गिरवी रख देता है।जिसके चलते उसके हिस्से का चावल दुकानदार सीधे दलालों को बेच देता है।

देश में 60 साल पहले जब अकाल पड़ा था, तब गरीब अतिगरीब और आर्थिक रूप सक्षम लोगों को आसानी से राशन मिले इसके लिए राशन कार्ड सिस्टम लागू किया गया था ताकि कोई भी भुखमरी से न मरे। बाद में इसका राजनीतिक करण हो गया। जिसकी पार्टी की सरकार होती थी, उसी को राशन दुकान आवटित किया जाता था, ताकि मानिटरिंग के साथ लोगों को राशन उपलब्ध हो सके। यह परिपाटी चलते-चलते अब बाजार में पहुंच चुकी है। देश में और प्रदेश में गरीबों को मिलने वाला सारा राशन अब खुले रूप से दलालों के माध्यम से बाजार में बिक रहा है जिसकी कमाई से दलाल औऱ कारोबारी लाल तो दलाल हो रहे है और कारोबारी मालामाल हो रहे है। आज गरीबों का सत्यापन को कोई मापदंड नहीं है। गरीब से गरीब घर में दो बाइक,फ्रीज, टीवी उपलब्ध है। सरकारी जमीन पर कब्जा धारी हो या पीएम आवास में रह रहा हो सभी परिवार का भौतिक सत्यापन हो ताकि वास्तिवक गरीबों का चावल गरीबों को मिले। अब तो नेताओं ने सिस्टम को अपने फाय़दे के अनुरूप ढाल लिय़ा है। ताकि उनकी कमाई में कही भी रोड़ा नहीं अटके और आज राशन दुकान उन छुटभैय़ा नेताओं के इशारे पर चल रहे है। जिसमें सबसे ज्यादा लापरवाही खाद्य विभाग के अधिकारियों की है जो कार्ड के हिसाब से मोटे नजराने पर दुकान संचालन करने आवंटित कर रहे है। औऱ दुकानदार से लेकर कार्ड धारक खुले बाजार में राशन बेच रहा है।

छत्तीसगढ़ शासन द्वारा गरीबों को दिया जाने वाला पीडीएस सिस्टम के तहत एक रुपया किलो के दर से दिया जाने वाले पीडीएस सिस्टम के चावल की खुलकर खरीद फरोख्त की जा रही है। खाद्य अधिकारियो को भनक तक नहीं है या उनके संरक्षण में खेल हो रहा है तफ्सीस करने पर जानकारी होगी।

सरकार अत्यंत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को और गरीबी रेखा में आने वाले लोगों को सस्ते दर पर चावल और अन्य सामग्री उपलब्ध करा रही है जिसे खुले मार्किट में बेच दिया जा रहा है। एक रूपये किलो की दर से 35 किलो चावल उठाकर उसे दलालों के माध्यम से 17 रूपये किलो की दर से खुले बाजार में बेचा जा रहा है। मजे की बात ये है की इस चावल को पॉलिस कर पतला और चमकीला कर 60 रूपये प्रति किलो की दर से से ब्रांडेड बताकर बेचा जा रहा है। अभी हाल में ही नया राशन कार्ड बनाया जा रहा है जिसमे सिर्फ कार्ड को ही बदला जा रहा है। जबकि नया राशन कार्ड बनने पर पूरी तहकीकात कर परिवार के सदस्यों की जानकारी सहित आय की भी जानकारी कर बनाया जाना चाहिए। ऐसा नहीं करने से विभाग द्वारा बनाए गए राशन कार्डों पर सवाल खड़े हो रहे हैं। लोगों ने बताया की अपात्र लोगों का भी बीपीएल राशन कार्ड बना दिये गये जिन्हें इस योजना की कोई जरूरत नहीं थी। ऐसे लोग ही हैं जो पीडीएस की चावल को सरकारी राशन दुकान से 1 रूपये किलो के दर से 35 किलो चावल उठाकर खुले बाजार में 17 रूपये प्रति किलो के दर से बेच रहे हैं।

राशन कार्डों की भौतिक सत्यापन हो

खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत विभाग द्वारा बनाए गए राशन कार्डों पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं। लोगों ने दावा किया ऐसे लोगों का भी राशनकार्ड बना दिया गया है जिन्हे इसकी जरुरत ही नहीं थी। वे राशन दुकान से मिलने वाले शक्कर, चना और अन्य सामग्री का उपयोग तो जरूर कर रहे हैं लेकिन चावल को सीधे दुकानदारों को बेचकर फायदा उठा रहे हैं। दूसरी तरफ प्रदेश में कुछ ऐसे परिवार भी है ऐसे हैं जिनके पास राशन कार्ड ना होने से महंगे दाम पर चावल खरीदने उनकी मजबूरी बान गई । माना जा रहा है कि ऐसा इस योजना के तहत राशन कार्ड बनाने के दौरान विभाग की अनियमितता के कारण निर्मित हुई है। उच्च अधिकारियों को संज्ञान में लेकर तत्काल इसे रोकना होगा तभी शासन की इस महती योजना का लाभ वास्तविक हक़दार को मिल सकती है।

पीडीएस चावल की खरीदी

बिक्री रुक नहीं रही है

मुख्यमंत्री खाद्यान्न योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले जरूरतमंद हितग्राहियों को दिया जाने वाला राशन जिले भर के बाजारों में खुलेआम बिक रहा। खाद्य सुरक्षा कानून लागू होने के बाद भी ग्रामीण एरिया के व्यापारी साप्ताहिक हाट बाजारों में पसरा लगा इस चावल को खरीद रहे, और शहरों में सीधे राशन दुकानों में बेचा जा रहा है। दूसरी ओर ऐसे हितग्राही जीने पीडीएस सिस्टम के चावल को खाना नहीं होता लेकिन राशन कार्ड होने की वजह से आसानी से मिल जाता है,वे एक रुपए में मिलने वाला चावल को फायदे के लालच में व्यापारियों को बेच रहे हैं, राशन के चावल की होने वाले अवैध खरीद-फरोख्त कारोबार की जानकारी विभागीय अमले को होने के बाद भी अवैध खरीद-फरोख्त पर अंकुश लगाने जिम्मेदार विभागीय अफसर आंख मूंद कर बैठे हुए हैं। जानकारी के मुताबिक प्रदेश में बीपीएल 58 लाख , अंत्योदय 4 लाख, एपीएल 10 लाख, सहित प्रदेश में लगभग 70 से 75 लाख राशन कार्डधारी हितग्राही है। हितग्राही परिवारों को एक रुपए प्रति किलो की दर से प्रतिमाह राशन की दुकानों से पात्र हितग्राही परिवारों को प्रदान किया जाता है। एक रुपए प्रति किलो की दर से लगभग 35 किलो चावल महज 35 रुपये में मिलता है। जिसे 17 रुपए प्रति किलो की दर से व्यापारियों को बेच लोग सीधा-सीध मुनाफा कमा रहे हैं। वहीं व्यापारी भी इस चावल को पॉलिस करवाकर 60 से 70 रूपये प्रति किलो की दर से बेचकर मुनाफा कमा रहे हैं।

बायोमेट्रिक सिस्टम में भी घपला

अधिकतर राशन दुकान वाले वीडियो काल से भी उपभोक्ता से अंगूठा लगवा लेते हैं और उनके कोटे का राशन खुद ही रख लेते हैं। उसके बदले 13 रुपए प्रति किलो के दर से भुगतान पेटीएम कर देते हैं। दुकानदार ऐसा करके कोटे का पूरा राशन खुले बाज़ार में मंहगे दामों पर बेच देते हैं। इस खेल को विभागीय अधिकारी भी जानते हैं लेकिन ऊपरी दबाव के कारण चुप रहने में ही भलाई समझते हैं। 

Tags:    

Similar News

-->