हाउसिंग बोर्ड को चला रहे घोटालों में शामिल अधिकारी!

Update: 2024-05-27 05:36 GMT

भ्रष्ट अधिकारी सर्वोच्च पदों पर आसीन, जनता और सरकार को लगा रहे चूना

1000 करोड़ के तालपुरी घोटाले में शामिल चार अधिकारी ही सर्वेसर्वा

विभागीय जांच में दोषी पाए जाने के बाद भी आज तक नहीं हुई कार्रवाई

अपने प्रभाव से जांच रिपोर्ट दबाए, सरकार और विभाग भी कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे

भ्रष्टाचार के प्रमाण मिलने के बाद भी लगातार प्रमोट हुए, आयुक्त को भी कर रहे गुमराह

हाउसिंग बोर्ड की संपत्ति को डिसमेंटल के कगार पर लाने वाले अधिकारी ही सर्वेसर्वा

जांच को प्रभावित करने कई बार हाऊसिंग बोर्ड के रिकार्ड शाखा में लगा चुके है आग

ईओडब्ल्यू लगातार कार्रवाई के लिए कागज भेज रहा है जिसे मुख्यालय में बैठ कर भ्रष्ट अधिकारी दबा रहे हैं और अपनेआप को बचाने में कामयाब हो रहे हैं

रायपुर। प्रदेश का हाऊसिंग बोर्ड अपने कारनामों से हमेशा सुर्खियों में रहा है। सरकार किसी भी पार्टी की हो यहां घोटालेबाज अधिकारी ईमानदारी का चादर ओढक़र सरकार को गुमराह कर हाउसिंग बोर्ड के नीति निर्धारक बने हुए हैं। जिसके चलते हाउसिंग बोर्ड को अरबों -खरबों का नुकसान झेलना पड़ा। भ्रष्ट अधिकारी जांच को प्रभावित करने रिकार्ड रूम में आग लगाने से गुरेज नहीं करते है? करोड़ों के तालपुरी घोटाले में दोषी पाए गए अधिकारी आज बोर्ड के सर्वेसर्वा बने हुए हैं। इन अफसरों ने सरकार को गुमराह कर बड़े -बड़े अरबों खरबों के प्रोजेक्ट लांच किए लेकिन वो जिनके सिर पर छत नहीं उनके कोई काम नहीं आया। वो तो बेघर के बेघर रहे और अधिकारियों ने मौके की बेस कीमती जमीन अपने नाते रिश्तेदारों के नाम कर दिया या फिर ठेकेदारों से मिलकर निजी बिल्डरों को हाउसिंग बोर्ड के आसपास की जमीन किसानों से खरीदवा कर हाउसिंग बोर्ड की हजारों एकड़ जमीन बिल्डर के जमीन में दबवा दी।

आज हालात यह है कि हाऊसिंग बोर्ड की अरबों की संपत्ति डिसमेंटल के कगार पर खड़ी है कोई खरीदार नहीं मिल रहा है। बोर्ड के भ्रष्ट अधिकारियों ने मौके की फ्रंट सडक़ से लगी सारे जमीनों को निजी बिल्डरों के साथ सांठगांठ कर जमीनों की खरीदी कर हाउसिंग के सारे प्रोजेक्ट को बैकपुट कर दिया। प्रदेश में जहां सस्ते दरों पर हाऊसिंग बोर्ड की संपत्ति बिकनी थी वहां निजी बिल्डरों की संपत्ति बिकी और हाऊसिंग की जमीन को कोई खरीदार ही नहीं मिल पाया । जो रेट निजी बिल्डरों का ता वही रेट हाउसिंग बोर्ड ने रखा जिसके कारण हाउसिंग बोर्ड के मकान नहीं बिके और जो बिके वो सुविधाओं के नाम पर विवादित होकर कोर्ट में पहुंच गए। इस दशा में हाऊसिंग बोर्ड को ढकेलने में उनके ही तथाकथित अधिकारियों का बड़ा रोल है जो आज हाउसिंग बोर्ड के शिखर पदों की शोभा बढ़ा रहे है।

कैग रिपोर्ट में खुलासा-दोषियों पर नहीं हुई कार्रवाई

भिलाई के रुआबांधा में तालपुरी प्रोजेक्ट में बड़े पैमाने पर अनियमितता सामने आई थी। कैग की रिपोर्ट में भी 115 करोड़ रुपये के खर्च को लेकर सवाल खड़े किए गए थे। जांच हुई, लेकिन लीपापोती कर घोटाले को दबा दिया गया। गड़बड़ी करने वाले जिम्मेदार अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, बल्कि पदोन्नात कर दिया गया। अब लोकायुक्त में शिकायत के बाद एक बार फिर से यह मामला गरमा गया है। इस संबंध में बोर्ड के अधिकारी जांच का हवाला देकर अधिकृत तौर पर कुछ भी बताने को तैयार नहीं हैं।

हाउसिंग बोर्ड के सूत्रों ने बताया कि भिलाई के रुआबांधा में तालपुरी प्रोजेक्ट को इंटरनेशनल कालोनी के नाम से वर्ष 2008 में प्रचारित कर मकानों की बुकिंग करवाई गई। इस प्रस्तावित कालोनी में करीब 1800 मकान ईडब्ल्यूएस और 1800 सामान्य एलआइजी, एमआइजी व एचआइजी थे। ईडब्ल्यूएस आवासों को पारिजात व अन्य को गुलमोहर, लोटस, रोज, लिली, टिली, बीजी, डहलिया, आर्किड जूही, मोंगरा टाइप बनाए गए थे। इस पर लगभग 550 करोड़ रुपये खर्च किए गए, लेकिन इसमें सर्विस टैक्स में गड़बड़ी करने और गुणवत्ता खराब होने की शिकायत मिलने पर सीएजी (कैग) ने 2012 में जांच के बाद एक रिपोर्ट तैयार की थी। यह रिपोर्ट मार्च 2013 में सार्वजनिक हुई थी,जिसमें करीब 115 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया था।

जानकारों का दावा है घोटाला इससे कहीं ज्यादा का है। सीएजी की रिपोर्ट में निर्माण का काम एजेंसी मेग्नाटोस कोलकाता को जिस दिन दिया गया, उसी दिन मेग्नाटोस ने एसएस निर्माण नामक एजेंसी को काम दे दिया। इन दोनों एजेंसियों ने अधूरा निर्माण कर गड़बड़ी की। ए और बी टाइप के जनसामान्य के आवासों के निर्माण में अलग-अलग रेट कोट किया गया। बाद में जब मोंगरा व जूही आवासों का निर्माण हुआ, उनमें भी ए टाइप को छोडक़र बी टाइप के आवास का रेट कोट किया गया, जबकि पहले ए टाइप के निर्माण में 19 प्रतिशत तक की छूट का प्रावधान दिया गया था। बाद में बिना कारण के यह छूट नहीं दी गई। छूट की आड़ में बोर्ड के जिम्मेदार अफसरों पर करोड़ों का घोटाला करने का आरोप लगा है।

ठेकेदार को लाभ पहुंचा कर कमाया मुनाफा

भिलाई के रुआबांधा में तालपुरी इंटरनेशनल कालोनी के निर्माण कार्य में चार अधिकारियों द्वारा गड़बड़ी कर ठेकेदार को लाभ पहुंचाने का मामला उजागर हुआ था इस मामले में करीब 115 करोड़ की गड़बड़ी का पता चला है। छत्तीसगढ़ हाऊसिंग बोर्ड की विभागीय स्तर पर हुई जांच में भी चारों अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के साथ रकम वसूली की कार्रवाई करने की अनुशंसा की गई है। कॉलोनी में करीब 1800 मकान ईडब्ल्यूएस और 1800 सामान्य एलआईजी, एमआईजी व एचआईजी आवासों का निर्माण किया गया। ईडब्ल्यूएस आवासों को पारिजात व अन्य आवासों को गुलमोहर, लोटस, रोज, लिली, टिली, बीजी, डहलिया, आर्किड जूही, मोंगरा टाइप बनाया गया। इस पर लगभग 550 करोड़ रुपये खर्च किए गए। कॉलोनी का निर्माण करने कलकत्ता के मेकेरोज बर्न लिमिटेड को भवन निर्माण करने का ठेका दिया था, लेकिन ठेकेदार काम पूरा किए बिना गायब हो गया।

हाऊसिंग बोर्ड के चार अधिकारियों बीबी सिंह, तत्कालीन कार्यपालन अभियंता, हर्ष कुमार जोशी, एमडी पनारिया और एचके वर्मा ने इसका लाभ उठाया। ठेकेदार अगर कार्य अपूर्ण स्थिति में छोड़ता है तो अन्य एंजेसी-ठेकेदार से कार्य पूर्ण कराया जाता है। कार्य पर होने वाले अतिरिक्त व्यय की वसूली संबंधित ठेकेदार से की जाती है और शेष कार्य के लिये निविदा आमंत्रित किया जाता है। अंतर की राशि की कटौती इनके बिलों से करके ही शेष धनराशि का भुगतान किया जाता है। जिम्मेदार अधिकारियों ने शेष कार्य पूर्ण कराने बिना पंचनामा किये निविदा निकाले बिना ही अपने चेहते ठेकेदार से कार्य पूर्ण कराया। प्रथम ठेकेदार से 18 प्रतिशत ब्याज दर से राशि की वसूली करने की बजाय उसे 11 प्रतिशत ब्याज दर से राशि वसूल किया गया। यानी सीधे सीधे ठेकेदार को लाभ पहुंचाया गया। इसका खुलासा तब हुआ जब भवन बुक कराने वाले लोगों से 15 करोड़ का सर्विस टैक्स वसूल कर ठेकेदार को दे दिया गया। उच्च कार्यालय से सर्विस टैक्स वसूलने के लिए मना किया गया था। चारों अधिकारियों ने प्रथम ठेकेदार और द्वितीय ठेकेदार दोनों को अनुचित आर्थिक लाभ पहुंचाया। इस प्रकार शासन को भी आर्थिक क्षति पहुंचाई गई। सर्विस टैक्स वसूले जाने के बाद इस मामले की शिकायत राजधानी में की गई। इसकी जांच कर ली गई है। जांच रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि चारों अधिकारियों से 15 करोड़ रुपए वसूल किया जाना चाहिए। चारों के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की अनुशंसा भी की गई है। जांच रिपोर्ट में साफ लिखा गया है कि ठेकेदार को लाभ पहुंचाने के लिए शर्तों में भी बदलाव किया गया है। इसके सबूत मिटाने के लिए कार्यालय से दस्तावेज भी गायब कर दिये गए।

256 हितग्राहियों को 3.65 करोड़ रुपए लौटाया

छग हाउसिंग बोर्ड के खिलाफ तालपुरी इंटरनेशनल कॉलोनी के लोगों को बड़ी जीत मिली है। मकान सौंपने में विलंब, मूल्य वृद्धि, सर्विस टैक्स, अधूरा निर्माण और सुविधाओं में कमी को लेकर दायर सामूहिक याचिका पर जिला उपभोक्ता फोरम दुर्ग ने 256 हितग्राहियों को लगभग 3.65 करोड़ रुपए भुगतान करने का आदेश जारी किया। सर्विस टैक्स की वापसी, ब्याज, मानसिक उत्पीडऩ व वाद व्यय के रूप में प्रत्येक हितग्राही को 50 हजार से लेकर 3.5 लाख रुपए मिले। अलग-अलग समूह में राशि का भुगतान किया गया है।

वर्ष 2015 में छग हाउसिंग बोर्ड की कथित मनमानी से क्षुब्ध होकर कॉलोनी के 21 लोगों ने सबसे पहले जिला उपभोक्ता फोरम में याचिका दायर की। उन्हें राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग तक लड़ाई लडऩी पड़ी। सर्विस टैक्स, मकान सौंपने में विलंब, दोनों ब्लॉक ए और बी के अधूरे क्लब हाउस व गार्डन, ए ब्लॉक में स्वीमिंग पूल जैसे मुद्दे पर हितग्राहियों की जीत हुई। इससे न सिर्फ बाकी सभी के लिए सर्विस टैक्स वापसी का मार्ग खुला बल्कि बोर्ड को दोनों ब्लॉक में क्लब हाउस भी निर्माण करना पड़ा। ए ब्लॉक में स्वीमिंग पुल अभी निर्माणाधीन है। सुनील चौरसिया ने बताया कि इस फैसले के आधार पर हाउसिंग बोर्ड को पत्र लिखकर आग्रह किया कि प्राकृतिक न्याय के आधार पर तालपुरी के अन्य सभी हितग्राहियों को भी सर्विस टैक्स की राशि लौटाने आदेशित कर दें।

ताकि लोगों को जिला उपभोक्ता फोरम न जाना पड़े। इससे मंडल को ब्याज, मानसिक उत्पीडऩ व वाद व्यय आदि के रूप में लाखों रुपए की बचत हो जाएगी। बोर्ड के इंकार करने पर 256 लोगों ने सामूहिक रूप से फोरम में याचिका दायर की। इन सभी को सर्विस टैक्स की राशि ब्याज सहित लौटाई गई है।

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