नुआखाई की शोभायात्रा पहली बार रायपुर में निकली

Update: 2024-09-03 11:46 GMT

नुआखाई पर पहले छोटी -छोटी शोभायात्रा निकाली जाती थी, इस बार पिछले की अपेक्षा में भव्य शोभायात्रा निकली, शहर के चौक-चौक में स्वागत भी हुआ

रायपुर raipur news। नुआखाई की शोभायात्रा रायपुर में पहली बार निकली. जिसमें भारी संख्या में लोग शामिल हुए। तेलीबांधा से अंबेडकर चौक तक नुआखाई की शोभायात्रा निकाली गई. ऐसा माना जाता है कि नुआखाई उत्सव सबसे पहले वैदिक काल में शुरू हुआ था जब ऋषियों ने पंचयज्ञ पर विचार-विमर्श किया था.पंचयज्ञ का एक हिस्सा प्रलम्बन यज्ञ था जिसमें नई फसलों की कटाई और उन्हें देवी माँ को अर्पित करने का उत्सव मनाया जाता था तबसे नुआखाई मनाने की परंपरा चली आ रही है.लोग आज अपने घरों में नए फसल का स्वागत करते हैं और नए फसल से पकवान बनाकर पूजा पाठ करते है.पकवान में मुख्यताः अरसा बनाते है इसे भाजा भी कहते है जिसे चावल के आटे से बनाया जाता है. Nuakhai 2024  

chhattisgarh news नवाखाई दो शब्दों नवा + खाई से मिलकर बना है जिसका अर्थ है नया खाना. नवाखाई मुख्यतः किसानों का त्योहार है, जिसे नए फसल के स्वागत के लिए मनाया जाता है. नुआखाई गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद मनाया जाने वाला यह त्योहार पश्चिमी ओडिशा का सबसे शुभ और महत्वपूर्ण सामाजिक त्योहार है.बता दें कि नुआखाई का इतिहास उड़ीसा से जुड़ा हुआ है या यूं कहें कि नुवाखाई की शुरुवात उड़ीसा से हुई है तो ये गंवारा न होगा .कुछ इतिहासकार जनश्रुतियों का उल्लेख करते हुए पश्चिम ओड़िशा में नुआखाई की परम्परा शुरू करने का श्रेय बारहवीं शताब्दी में हुए चौहान वंश के प्रथम राजा रमईदेव को देते है. वह तत्कालीन पटना (वर्तमान पाटनागढ़) के राजा थे. chhattisgarh

पाटनागढ़ वर्तमान में बलांगीर जिले में है. कुछ जानकारों का कहना है कि पहले बलांगीर को ही पाटनागढ़ कहा जाता था.रमईदेव ने लोगों के जीवन में स्थायित्व लाने के लिए उन्हें स्थायी खेती के लिए प्रोत्साहित करने की सोची और इसके लिए धार्मिक विधि-विधान के साथ नुआखाई पर्व मनाने की शुरुआत की. कालान्तर में यह पश्चिम ओड़िशा के लोकजीवन का एक प्रमुख पर्व बन गया.
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