- कोरोना काल में अस्पतालों की लापरवाही, स्वास्थ्य अमला भी असंवेदनशील
- बीते कुछ दिनों में 7 नवजात की मौत की खबर, मचा बवाल
- स्वास्थ्य मंत्री संज्ञान में लेकर विभाग को अस्पतालों की मानिटरिंग करने का निर्देश दे तथा जनता की जान से खिलवाड़ करने वाले अधिकारियों को तत्काल बर्खास्त करे
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के जिला अस्पताल में देर शाम 8 बजे के बाद अचानक तीन बच्चों की मौत के बाद बवाल हो गया। परिजनों ने चिकित्सकों पर लापरवाही का आरोप लगाया। घनश्याम सिन्हा नाम के एक पिता ने दावा किया कि उसके बच्चे की स्थिति बिगडऩे के बाद डॉक्टरों ने एक प्राइवेट अस्पताल ले जाने को कह दिया। बच्चे की स्थिति गंभीर थी उसे ले जाने के लिए ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत पड़ती। ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं दिया गया वह लगातार अस्पताल प्रबंधन के लोगों से बहस करते रहे। इस अफरा तफरी के बीच उनके बच्चे की मौत हो गई।
इस दौरान पिछले कुछ दिनों से इलाज करा रहे गंभीर रूप से बीमार दो और बच्चों की मौत हो गई और परिजनों का गुस्सा डॉक्टरों पर फूट पड़ा। हंगामे के हालात ऐसे बिगड़े की पंडरी थाने से पुलिस बुलानी पड़ी। काफी देर तक बवाल होता रहा। परिजनों को कोई सही जवाब नहीं दे रहा था। परिजन परेशान थे और बच्चों के इंटेंसिव केयर यूनिट काफी देर तक हंगामा होता रहा। लगभग 2 से ढाई घंटे तक चले बवाल के बाद पुलिस के दखल की वजह से परिजन शांत हुए। रात 11 बजे तक तीन बच्चों के शवों के साथ घरवाले लौट गए। अस्पताल प्रबंधन के लोग दूसरे परिजनों को समझाने में लग गए और माहौल शांत हुआ। पूरे घटनाक्रम के बाद अस्पताल प्रबंधन की तरफ से कहा गया कि बच्चों की मौत सामान्य थी, मगर मौके पर मौजूद बच्चों के परिजन बड़ी लापरवाही की का खुलासा कर रहे थे। बताया जाता है कि आंबेडकर अस्पताल के कोई वरिष्ठ चिकित्सक ड्यूटी पर नही थे हालांकि चिकित्सकों का दावा है की बच्चा प्री मेच्योर था। इधर, एक प्री मेच्योर बच्चे की मौत दोपहर में हुई थी। चिकित्सकों ने बताया जन्म के बाद दोनों की स्थिति खराब थी। एक सप्ताह में इस तरह की यह चौथी मौत बताई जा रही है।
घटना की जांच जारी : मंगलवार शाम पंडरी के इस जिला अस्पताल कैंपस में हुए इस बवाल की आंतरिक तौर पर जांच की जा रही है। स्वास्थ्य अधिकारियों ने डॉक्टर से इस पूरी घटना की जानकारी मांगी है। बुधवार शाम तक अस्पताल प्रबंधन की तरफ से इस मामले में कुछ और तथ्य सामने आ सकते हैं। हालांकि अब तक इस घटना में डॉक्टर की लापरवाही मानने को अस्पताल तैयार नहीं है।
निजी अस्पतालों में मची थी लूट : कोरोना काल में मनमाना ढंग से निजी अस्पतालों लूट मची हुई है, शहरभर में कोरोना का कहर बढऩे के साथ निजी अस्पताल में मरीजों को लूटने के लिए नए-नए हथकंडे अपना लिए थे। बीमार होने पर भी मरीज से एडवांस रकम जमा कराने के बाद ही अस्पताल में भर्ती करना। राजधानी के कई निजी अस्पताल जिसने मरीज़ की मौत के बाद भी उसके परिजनों से पैसे जमा कराने के लिए अस्पताल प्रबंधन द्वारा ज़ोर दिया गया। जब परिजन नहीं माने तो उनको मृतक के शव को देने से मना कर दिया जाता था। इलाज के लिए सरकारी दर निर्धारित होने के बावजूद अस्पताल वाले मनमाना फीस वसूल रहे है। दवाइयों के नाम पर भी लाखों के बिल थमाए जा रहे है। फीस नहीं दे सकने की स्थिति में इलाज में कोताही एवं मरीज़ की मौत होने की स्थिति में शव रोकने जैसा अमानवीय कृत्य भी किया जा रहा है। वही राजधानी अस्पताल के अग्निकांड के बाद भी स्वास्थ्य विभाग और पुलिस किसी तरह से नींद से जगी नहीं है। कोरोना महामारी को लोगों ने अवसर बनाकर इंजेक्शन की कालबाज़ारी से लेकर मनमाना रकम वसूली तक अस्पतालों द्वारा किया गया है। परिजनों के पास पैसे नहीं होने की वजह से मरीज़ के शव को अस्पताल में ही रोक दिया जाता है। कोरोनाकाल में मेडिकल इमरजेंसी बनी हुई है वहीं, कमाई के चक्कर में कुछ निजी अस्पतालों के बाहर बेड के दलाल सक्रिय हो गए है।
कोविड मरीज़ों के इलाज के नाम पर निजी अस्पतालों में कालाबजारी के साथ-साथ कुछ बेड दलालों का भी गोरखधंधा चल रहा है। किसी अस्पताल में अगर बेड खाली नहीं होता है सवाल उठता है कि बेड खाली नहीं होता तो दलाल ने कैसे दिला दते है। जब भी कोई मरीज़ निजी अस्पताल में कोरोना रोगी को लेकर आते है तो उसे परिसर में ही कोविड अस्पताल जाने को कहा जाता है। यहीं बेड के दलाल मरीज़ को पकड़ते है। उनके पास एंबुलेंस की भी सुविधा होती है और वे रोगी और उसके घरवालों को बहका कर निजी कोविड अस्पताल ले जाते हैं। दलाल कहते हैं कि निजी अस्पताल में जो आता है वो मर जाता है, उनके बताए अस्पताल में रोगी बच जाएगा। यहां भर्ती कराने के नाम पर 50 हजार रुपये तक मांगे जाते हैं।
गलत इंजेक्शन लगने से मासूम की हुई थी मौत
राजधानी के खरोरा में यशोदा हॉस्पिटल को लापरवाही बरतने पर सील कर दिया गया है। जानकारी है की तीन साल पहले की एक्सपायरी वैक्सीन एक साल के बच्चे को लापरवाहीपूर्वक लगाई गयी। इस बात जानकारी मिलने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने टीम गठित जांच शुरू कर दी थी। जांच रिपोर्ट में ख़ुलासा हुआ है की 2018 से एक्सपायरी वैक्सीन को 2021 मार्च में एक साल के छोटे बच्चे को वैक्सीन लगाया गया था। जाँच रिपोर्ट के आधार पर जुर्माना लगाने के साथ हॉस्पिटल को हमेशा के लिए सील करने के लिए ज़िला चिकित्सा अधिकारी ने कलेक्टर को भेजा लेटर जारी कर दिया है। गौरतलब है कि 4 सितंबर 2018 को गुढिय़ारी से गुप्ता परिवार के लोग ढाई साल के बच्चे अंशू गुप्ता को बुखार आने पर इलाज के लिए करीब रात 10 बजे अस्पताल लेकर पहुंचे थे। अस्पताल पहुंचने पर रात में कोई भी डॉक्टर वहां मौजूद नहीं था, बल्कि शुरुआती दवाई वहां के वार्डनों ने दिया था। इसके बाद रहीश बाघ नाम के डॉक्टर अस्पताल पहुंचे थे। बच्चे की बिना जांच किए उसे दवाई दी थी, जिससे बच्चा नॉर्मल हो गया था, लेकिन डॉक्टर हरीश बाघ ने बेरहमी से 5 से 6 इंजेक्शन लगा दिया, जिससे बच्चे की मौत हो गई थी। 2 साल बाद इस मामले में स्वास्थ्य विभाग नींद से जागा और अस्पताल को सील किया।