कोरिया जिले में शहद के उत्पादन से कृषकों के जीवन में आ रही नई मिठास

Update: 2021-02-08 10:28 GMT

कोरिया जिले में किसानों के आर्थिक संबल के लिए की गई अभिनव पहल के तहत दर्जन भर आदिवासी किसानों ने पहली तिमाही में ही एक लाख रूपए से ज्यादा राशि का शहद उत्पादित कर लिया है। आने वाली तिमाही में आदिवासी किसानों के द्वारा उत्पादित षहद से मिलने वाले लाभ की रकम दोगुनी होगी। अब इसे और व्यापक स्तर पर किए जाने की तैयारी है। इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत संचालित कृषि विज्ञान केंद्र-कोरिया के तकनीकी सहयोग से कोरिया जिले में मधुमक्खी पालन व शहद उत्पादन का कार्य आदिवासी कृषकों के समूह द्वारा किया जा रहा है। विदित हो कि कृषि विज्ञान केंद्र कोरिया के सलका प्रक्षेत्र में विगत वर्षों से मधुमक्खी पालन उन्नत वैज्ञानिक पद्धति से किया जा रहा है और जिले के किसानों को मधु क्रांति से जोड़कर आर्थिक संबल देने के लिए निरंतर इसके लिए प्रशिक्षण किसानों को प्रदान किया जा रहा है। कृषि विज्ञान केंद्र कोरिया में समूह के कृषकों ने वनतुलसी का 75 किलोग्राम शहद नवम्बर-दिसंबर माह में निकाला था।

कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक श्री राजपूत ने बताया कि प्रशिक्षण के बाद ग्राम पंचायत लोहारी के श्री सहदेव सिंग, श्री रामावतार सिंग, श्री इंद्रपाल सिंग, श्री जनसिंग, श्री राघो प्रताप तथा ग्राम पंचायत बरबसपुर के श्री सहदेव सिंग, श्री गयादीन, श्री उदित जैसे उद्यमी आदिवासी कृषकों ने केवीके के तकनिकी मार्गदर्शन में मधुमक्खी पालन षुरू किया। मधु निष्कासन की तकनिकी कार्यमाला का पालन करते हुए इन किसानों ने ग्राम लोहारी में 50 मधु पेटियों से माह जनवरी में कुल 45 किलोग्राम व माह फरवरी में कुल 50 किलोग्राम शहद उत्पादित किया। इसी तरह ग्राम बरबसपुर में इन किसानों ने 50 मधु पेटियों से माह जनवरी में कुल 40 किलोग्राम व माह फरवरी में कुल 45 किलोग्राम शहद निकाला। सभी कृषकों का शहद किसानों के उत्पादक संगठन कोरिया एग्रो प्रोडूसर कंपनी द्वारा खरीदकर उसे बाकायदा पैकिंग और मार्केटिंग की जा रही है। अब तक कुल 255 किलोग्राम शहद कृषकों ने वनतुलसी, सरसों व मुनगा के फूलों से प्राप्त किया है। उत्पादित शहद का मूल्य 410 रूपए की दर से लगभग एक लाख बारह हजार रूपए से ज्यादा है। श्री राजपूत ने बताया कि एफपीओ के माध्यम से किसानों द्वारा उत्पादित शुद्ध व गुणवत्तापूर्ण शहद को आकर्षक पैकिंग में ट्राईफेड, हस्तशिल्प विकास बोर्ड तथा खादी ग्रामोउद्योग को विपणन हेतु भेजा जा रहा है। तीसरे चरण में माह मार्च में अनुमानित 75-80 किलोग्राम पुनः शहद निकाला जायेगा। कृषकों दवारा 3 से 5 किलोग्राम मधु मोम का भी उत्पादन किया गया है जिसका बाजार में मूल्य 250 से 300 रूपए किलो ग्राम है। आगामी मार्च माह में ही मधु मक्खी की कॉलोनियों का विभाजन कर 50 नयी मधु पेटियों के साथ मधुमक्खी पालन कुल 150 मधु पेटियों से टेसू के फूलों में 2 से 3 चरणों में फारेस्ट हनी का 250 से 300 किलोग्राम उत्पादन लिया जायेगा ताकि आने वाले समय में कोरिया जिले में न सिर्फ मधुमक्खी पालन वरन मधु पेटियों, मधु कॉलोनियों, मधु मोम से कुटीर उद्योग की स्थापना की जा सके तथा मधु क्रांति से स्वरोजगार से स्व उद्यमिता की संकल्पना को साकार किया जा सके।

कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक विजय कुमार एवं डोमन सिंग टेकाम ने बताया की मधुमक्खी पालन शुरू करने के लिए किसान पहले पांच कालोनी यानि पांच बाक्स रख सकते हैं। एक बॉक्स में लगभग चार हजार रुपए की लागत अनुमानित है एैसे में किसान पांच बॉक्स खरीद कर बीस हजार रुपए से यह कार्य प्रारंभ कर सकते है। इनकी संख्या को बढ़ाने के लिए समय समय पर इनका विभाजन करने से एक साल में ही दो हजार (2000) बक्से तैयार किए जा सकते हैं। अनुमानतः एक बक्से की देखभाल पर प्रतिवर्ष 400-500 रूपये की लागत पड़ती है। प्रत्येक वर्ष मधुमक्खी परिवार की संख्या कम से कम दुगुनी हो जाती है। इस तरह से उत्पादित षहद एवं मधुमक्खी की कालोनी बेचकर कम से कम 5000-8000 रूपये प्रति बक्सा मुनाफा कमाया जा सकता है। जिनके पास 100 पेटिका मधुमक्खी है, वे साल भर में कम से कम 2 से 3 लाख रूपये तक कमा सकते हैं। गरीब एवं भूमिहीन किसान या उद्यमी भी इस व्यवसाय को 5 मधुमक्खी के बक्से से, कम से कम पूँजी में शुरू करके कुछ ही वर्षों के अन्दर 50-100 बक्सों के मालिक बन सकते हैं और प्रतिवर्ष मधुमक्खी, मोम एवं मधु बेचकर लाखों रूपये की आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।

मधुमक्खी बक्सों को खेत की मेड़, सड़क के किनारे, बगीचा या जहाँ फूलों की उपलब्धता हो, आदि स्थानों पर भी रखा जा सकता है। मधुमक्खी लगभग 3 किलोमीटर त्रिज्या क्षेत्र से अपना भोजन (पुष्परस एवं पराग) ले सकती है। बरबसपुर और लोहारी में किसानों को मधुमक्खी पालन में काम आने वाले औजार, बक्सा, मधु-निष्कासन-यंत्र इत्यादि के लिए कृषकों को जिला प्रषासन द्वारा आर्थिक सहयोग देकर यह कार्य प्रारंभ कराया गया। श्री राजपूत ने बताया कि इच्छुक किसान खादी और ग्रामोद्योग आयोग से अनुदान प्राप्त कर कुटीर उद्योग के रूप में विकसित करके आमदनी का नया साधन सृजित कर सकते हैं।

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