नेहरू-फिरोज परिवार कर रहे कांग्रेसियों का शोषण : पंकज कुमार झा

Update: 2024-12-30 11:32 GMT

रायपुर। कवासी लखमा ED की रडार में आने के बाद बुरी तरह फंस गए है। जिसे लेकर सीएम साय के मीडिया सलाहकार पंकज कुमार झा ने कहा, मनमोहन सिंह जी और कवासी लखमा जी!दोनों के साथ कांग्रेस का व्यवहार यह दिखाता है कि आप चाहे सर्वोच्च डिग्रीधारी हों या बिल्कुल निरक्षर। हर नेता अगर सहज-सरल है, तो नेहरू-फिरोज परिवार और उसके वफादारों द्वारा शोषण का शिकार होगा। जीवन और यश तबाह कर दिया जायेगा। उपयोग में बाद उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया जायेगा।

पहले बात कवासी जी की। ये पिछली सरकार में उद्योग और आबकारी मंत्री थे। शराबबंदी का वादा कर सत्ता में आयी कांग्रेस की भूपेश सरकार ने कवासी जी के कंधे का उपयोग कर शराब की होम डिलीवरी तक शुरू कर दी थी। हजारों करोड़ के शराब घोटाले हुए, ऐसा आरोप है। जांच एजेंसी की पड़ताल में यह साक्ष्य भी मिले हैं कि हर महीने 50 लाख रुपया कवासी जी के नाम पर लिये जाते थे।

लेकिन, इसके बारे में कवासी जी का कहना है कि वे निरक्षर हैं (शपथ भी वे नहीं पढ़ पाते लिखा हुआ। उन्हें बोल कर शपथ दिलवाना होता है, हालांकि वे कांग्रेस के तेज तर्रार नेता माने जाते हैं), अतः तब के अधिकारियों ने - जो लोग आज जेल में बंद हैं- कवासी जी के मंत्री रहते हुए जिन-जिन कागजातों पर हस्ताक्षर करने को कहा, वे करते गए। (जाहिर है, अधिकारियों ने प्रदेश के तब ने ‘किंगपिन’ के इशारे पर ही किया होगा।) अब छत्तीसगढ़ के घोटाले की कमाई से दिल्ली के जिन ‘सरगनाओं’ के लिए एटीएम खोला गया, वे तो मौज कर रहे हैं। कभी जनपथ तक शायद आंच पहुंचेगी भी नहीं लेकिन एक ऐसे आदिवासी नेता, जिनका जनाधार है लेकिन वे लिख-पढ़ नहीं पाते, उनके कंधे पर रख कर बंदूख चला दी गयी, जैसा अमूमन विद्वान से विद्वान और अल्पशिक्षित-अशिक्षित नेताओं तक सेकांग्रेस करती रही है। जैसा कि अति विद्वान मनमोहन सिंह जी के साथ भी किया गया। तुलसी बाबा ने मानस में कहा है - बड़ भल वास नरक कर ताता, दुष्ट संग जनि देहि विधाता। भले नर्क का वास करना पड़े, पर ऐसे दुष्ट संग से ईश्वर बचा कर रखें।  

यह उस जमाने की बात है, जब राज्यसभा से सदस्य होने के लिए आपको उसी राज्य का होने की अनिवार्यता थी। तब कांग्रेस मनमोहन सिंह जी को असम से राज्यसभा भेजना चाहती थी। लेकिन संवैधानिक प्रावधानों के तहत यह संभव नहीं था। तब रास्ता यह निकाला गया कि तब के असम के मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया का मनमोहन सिंह जी को ‘किरायेदार’ बनाया गया। हमेशा अफसोस रहेगा इस बात का कि ईमानदार माने जाने डॉक्टर सिंह ने इस अनैतिक और फर्जी काम को करना स्वीकार भी कर लिया। पता नहीं उनकी क्या विवशता थी। वे ‘किरायेदार’ फिर भारत के प्रधानमंत्री रहे 10 वर्ष!

उसके बाद तो खैर मनमोहन सिंह जी से ऐसे-ऐसे काम कराये गये, ऐसे ऐसे बयान दिलवाये गये, कि एक शानदार व्यक्ति का सारा व्यक्तित्व ही तहस-बहस कर दिया। बाद में तो खैर स्वयं पर उठे हजारों सवाल का जवाब डॉक्टर साहब ने अच्छी खामोशी में ही देना बेहतर समझा जिसने ‘उनके लोगों’ की इज्जत रक्खी।

ध्यान दीजिये :-

- विश्व का जाना माना अर्थशास्त्री यह बयान देते नजर आये कि भारत के संसाधन पर सबसे पहला अधिकार मुस्लिमों का है। अर्थशास्त्र की किस किताब में ऐसा लिखा होगा?

- देश के सबसे खुँखार आतंकियों में से एक से मनमोहन सिंह जी की गलबहियाँ करायी गयी। ऐसे आतंकी से जो हमारे अनेक सैन्य अधिकारियों तक का हत्यारा था।

- सबसे ईमानदार छवि रखने वाले से सबसे अधिक घोटाले कराये गये। डा. सिंह के नाम पर सारा गोरखधंधा कर उन्हें बदनाम किया गया।

- एक अत्यधिक विद्वान व्यक्ति के नेतृत्व में, उनके नाम पर संविधान की हत्या करायी गयी। पीएम से ऊपर एक एनएसी नाम की संस्था बना दी गयी जिसका प्रमुख सोनिया गांधी थी। अनेक संदिग्ध लोग उसके सदस्य बनाये गये।

- जब थोड़ा सा उन्हें लगा कि मनमोहन सिंह जी स्वयं निर्णय लेने लगे हैं, तब एक उजड्ड युवा रहे राहुल गांधी ने सार्वजनिक रूप से अध्यादेश फाड़कर उन्हें हैसियत दिखायी।

- जब आजिज आ कर मनमोहन सिंह जी इस्तीफा देने वाले थे, जैसी खबर थी, तो पता नहीं किन दबावों से उन्हें विवश कर मोहरा बनाये रखा गया….

अनंत श्रृंखला है ऐसे कृत्यों की। तुलसी बना को फिर उद्धृत करना चाहूँगा - बड़ भल वास नरक कर ताता, दुष्ट संग जनि देहि विधाता।

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