राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव: छत्तीसगढ़ सरकार की तैयारियां जोरों पर

Update: 2021-10-23 10:03 GMT

रायपुर। छत्तीसगढ़ में आदिवासी संस्कृति के संरक्षण संवर्धन और इसे राष्ट्रीय स्तर पर मंच प्रदान करने के उद्देश्य से राजधानी रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में 28 से 30 अक्टूबर तक राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया जाएगा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देशानुसार विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों और संस्कृति मंत्रियो को भी आमंत्रित किया गया है। छत्तीसगढ़ में आगामी दिनों में राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के दौरान देशभर से आये आदिवासियों को छत्तीसगढ़ की संस्कृति को भी नज़दीक से देखने का अवसर मिलेगा। इस आयोजन में छत्तीसगढ़ के साथ-साथ देश के विभिन्न राज्यों और विदेश के कलाकारों द्वारा भी आकर्षक सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तूति दी जायेगी। राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के आयोजन के लिए प्रारंभिक तैयारियां शुरू कर दी गई है। पिछले दिनों स्थानीय महंत घासीदास संग्रहालय में प्रदेश के सभी संभाग से आए दस द्वारा आदिवासी नर्तक दलों की प्रस्तुति दी गई। संस्कृति विभाग के अधिकारियों ने बताया कि संभाग स्तर पर चयनित अलग-अलग विधाओं के कलाकारों का चयन किया जाएगा। चयनित दलों को प्रदेश स्तरीय आयोजन में अपनी कला और संस्कृति की प्रस्तुति देने का मौका मिलेगा। आदिवासी नर्तक दलों की प्रस्तुति में गरियाबंद और धमतरी जिले के मांदरी नृत्य, भुजिया नृत्य, महासमुंद जिले के कर्मा नृत्य, भाटापारा-बलौदाबाजार जिले के सुवा नर्तक दल द्वारा प्रस्तुति दी गई।

आदिवासी संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित छत्तीसगढ़ सरकार के महत्वकांक्षी राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य में शामिल होने आए विभिन्न प्रांतों के कलाकारों को ऊंची स्तरीय मान सम्मान के साथ सारी सुविधा उपलब्ध करा कर भूपेश सरकार ने आदिवासी समाज के लिए अपनी पूरी ताकत और अपनी इच्छाशक्ति को प्रकट किया है, जो पूरे विश्व में आदिवासी समाज के लिए बड़े गौरव की बात मानी जाएगी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की इच्छा के अनुरूप आदिवासी नृत्य महोत्सव पूरे देश के गौरव और शान से हो. पूरे विश्व में आदिवासी समाज की अभूतपूर्व प्रतिभा को देश के नाम से रोशन करने का बीड़ा छत्तीसगढ़ सरकार ने उठाया। लोक कलाकार और विभिन्न जिलों से आए हुए सभी दल को उच्च स्तरीय सुविधा देकर उनका मान सम्मान के अनुसार उनको उच्च स्तरीय प्रदर्शन हेतु तैयार करने के लिए माध्यम बनाकर छत्तीसगढ़ सरकार लगातार प्रयास कर रही है. पूरे देश के विभिन्न प्रदेश के मुख्यमंत्री को विशेषकर आदिवासी समाज के बड़े नेताओं को और समाज के प्रमुखों को आमंत्रित कर भूपेश सरकार ने पूरे देश में एक मिसाल कायम की.

आगामी 28 तारीख से राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव को अंतिम तैयारी का रूप दिया जा रहा है. भव्य आदिवासी नृत्य महोत्सव के लिए प्रदेशभर से अलग-अलग नृत्य दल एवं मजरा टोला के प्रमुख और अपने गांव के कलाकारों के साथ सभी रायपुर अपनी आमद दे चुके हैं. कार्यक्रम की तैयारी अंतिम रूप में चल रही है. विभिन्न स्तर में नृत्य महोत्सव में भाग लेने वाले टोली अपना प्रदर्शन अच्छे से अच्छा करने के लिए प्रयास कर रहे हैं. और इस कार्यक्रम को सुचारू से संचालित करने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने विशेष अधिकारियों को ड्यूटी में लगाकर आदिवासियों के हितों की रक्षा करने का जी जान लगा दिया है. इससे आदिवासी समाज के सामाजिक संरचना पर ध्यान रखने वाले बड़े-बड़े विद्वान भी दांतो तले उंगली चबा चुके है.

गोजरी बैट नृत्य में सर्व धर्म सद्भाव की झलक

रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के अंतिम दिन गुजरात के जनजातीय कलाकारों ने मनोहारी डांग नृत्य प्रस्तुत किया। डांग नृत्य में बस्तर के जनजातीय समुदाय द्वारा किए जाने वाले नृत्य की झलक दिखाई दी। डांग नृत्य गुजरात में होली एवं अन्य त्यौहार के अवसर पर किया जाता है। डांग नृत्य तेज गति से किए जाने वाला नृत्य है। गुजरात के आदिवासी लोक नृत्य डांग उनके पारंपरिक विधा पर आधारित है।

महोत्सव में जम्मू-कश्मीर के कलाकारों द्वारा गोजरी बैट नृत्य प्रस्तुत किया गया। गोजरी बैट नृत्य श्री राम जय राम जय जय राम, अल्लाह हो अकबर और सत्यनाम वाहेगुरू के बोल पर भांगडा नृत्य के तर्ज में जम्मू-कश्मीर के कलाकारों ने किया। गोजरी बैट नृत्य में सर्व धर्म सद्भाव की झलक दिखाई दी। गोजरी बैट नृत्य को दर्शकों ने खूब पंसद किया। जम्मू-कश्मीर के बकरवाल समुदाय के कलाकारों ने बकरवाली नृत्य प्रस्तुत किया। यह नृत्य विवाह संस्कार पर आधारित था। नृत्य में कलाकारों ने विवाह होने और बिदाई के क्षण का जीवंत अभिनय कर प्रस्तुत किया।

त्रिपुरा के कलाकारों ने संगाई नृत्य प्रस्तुत किया। त्रिपुरा में उत्सव के समय यह नृत्य किया जाता है। कलाकारों ने रंग बिरंगी छतरी के साथ नृत्य प्रस्तुत किया। नृत्य में जन्म से लेकर पूरे जीवन को एक उत्सव के रूप में बताया गया। नृत्य में सोला श्रृंगार की भी झलक दिखी। संगाई नृत्य में गायक कलाकारों ने बुद्धम शरणम गच्छामि, धम्म शरणम गच्छामि और संगेरे चलव रे के मुधूर गीत के साथ नृत्य का आनंद और बढ़ गया।

महोत्सव में हिमांचल प्रदेश के कलाकारों ने हरनातर नृत्य प्रस्तुत किया। इस नृत्य में राक्षसों को भगाने का अभिनय किया गया। असम के कलाकारों ने बारदो शुक्ला नृत्य प्रस्तुत किया। इस नृत्य में धरती माता की वंदना की गई। इस नृत्य में स्त्रियों के सम्मान की सीख दी गई। बारदो शुक्ला असम के बोड़ो जनजातियों का पारंपरिक नृत्य है। सिक्किम के कलाकारों ने फसल कटाई के समय किए जाने वाला नृत्य लेचा प्रस्तुत किया। लद्दाख के कलाकारों ने लद्दाखी गजल नृत्य प्रस्तुत किया। यह नृत्य लद्दाख में होने वाले मेला मड़ाई के समय किया जाता है। अरूणांचल के कलाकारों ने इडू नृत्य प्रस्तुत किया। मध्यप्रदेश छिंदवाड़ा के जनजातीय कलाकारों ने पारंपरिक नृत्य शैला गेंडी प्रस्तुत किया। शैला गेंडी नृत्य में पुरूष कलाकारों ने गेंडी पर चढक़र नृत्य किया। महिला कलाकारों ने सिर पर दोहरी तीहरी गगरी रखकर आकर्षक नृत्य प्रस्तुत किया। कर्नाटक के कलाकारों ने बंजारा सुगाली नृत्य प्रस्तुत किया।












 



 








 



 



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