निकाय चुनाव: कांग्रेस के विकास के तीर से विपक्ष घायल

Update: 2021-12-06 06:20 GMT

आज नाम वापसी का अंतिम दिन

राजनीतिक संवाददाता

रायपुर। छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय चुनाव का की तिथि का ऐलान होने के बाद सम्बह्वित प्रत्याशियों की धड़कने तेज हो गई है। आज नाम वापसी की अंतिम दिन है फिर मैदान में वही प्रत्याशी बचेंगे जीने पार्टी अधिकृत करेगी, लेकिन कुछ लोग पार्टी की टिकट नहीं मिलने के कारण निर्दलीय के रूप में भाग्य आजमाएंगे। और पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों की नींद खऱाब करेंगे। कुछ वोट कटवा भी खड़े होंगे। आज के बाद जिनका मान मनव्वल शुरू होगा। भूपेश सरकार को लगभग तीन साल होने जा रहे है और देखा जाये तो छत्तीसगढ़ की जनता विशेष रूप से भूपेश सरकार के कामकाज से खुश ही दिख रही है। जनता से रिश्ता के राजनीतिक संवाददाता पिछले दिनों कई नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायत का दौरा कर चुके हैं। मतदाताओं से बातचीत के दौरान मतदाताओं ने स्पष्ट रूप से चुनाव के बारे में कुछ नहीं बोले, कौन प्रत्याशी चुनाव जीत रहा इस प्रश्न पर भी खुल कर कुछ नहीं बोले लेकिन मतदाताओं ने यह जरूर कहा कि जिस पार्टी की सरकार है उस पार्टी के जीतने पर क्षेत्र का विकास तेजी से होता है। समय समय पर सरकारी फंड की कमी भी नहीं होती वैसे भी भूपेश बघेल की सरकार ने छत्तीसगढ़ के विकास में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। अधिकतर जगहों में लोगो ने यही कहा कि सरकार के साथ रहने में ही अपने क्षेत्र की भलाई है। देखा ये जा रहा है कि कांग्रेस ने मजबूत प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतरा है वहीँ भाजपा अपेक्षाकृत कमजोर और अप्रोच वाले प्रत्याशियों को उतारा है। साथ ही स्थानीय नेताओ को जिम्मेदारी देने के बजाय बाहर के नेताओ और चुनाव हारे हुए को चुनाव संचालन की जिम्मेदारी दी है ऐसा आरोप भाजपा के स्थानीय लोग लगा रहे हैं। अभी नाम वापसी हुई नहीं है और सर फुटौव्वल की स्थिति भाजपा में बन गई है। स्थानीय भाजपा नेताओ ने कहा कि भाजपा ने कांग्रेस के मुकाबले कमजोर प्रत्याशियों को चुनावी समर में उतार दिया है, ऐसा लग रहा है कि भाजपा ने अभी से हार मान ली है। एक भाजपा कार्यकत्र्ता ने तो यहाँ तक कह दिया कि भाजपा के बड़े नेता एक दूसरे को निपटाने और पटखनी देने के चक्कर में अभी से मुकाबले से बाहर हो गये हैं। आरएसएस के बड़े नेता जिनके निर्देशन में भाजपा चुनाव लड़ती है और चुनाव का संचालन कमोबेश उन्हीं के हाथ में होती है, उनके द्वारा भी इस बार कोई दिशा निर्देश नहीं मिला है। प्रत्याशियों को खुद फंड जुटाकर चुनाव लडऩे की भी हिदायत देने की खबर आ रही है। आलाकमान ने फंड की भी कमी बता दी है। उक्त कार्यकत्र्ता ने यह भी कहा कि ऐसा लग रहा है भाजपा इस चुनाव को मजबूरी में लड़ रही है। तभी तो कमजोर प्रत्याशियों को उतारने के साथ फंड की कमी की समस्या ने कार्यकर्ताओ को हलाकान कर दिया है। सूत्रों का मानना है कि भाजपा वाले खर्च करने में इसलिए कोताही बरत रहे है कि इन सबको देखते हुए भाजपा के स्थानीय नेता और कार्यकत्र्ता यह नहीं समझ नहीं पा रहे हैं कि चुनाव प्रभारी के साथ जाएँ या बड़े नेता के साथ जाएँ। बाहरी नेताओ को चुनाव की जिम्मेदारी देने के बाद भाजपा के स्थानीय नेता असहाय होकर असमंजस की स्थिति में हैं। जबकि भूपेश बघेल ने सरकार बनने के बाद ग्रामीण लोगो को धयान में रख कर ग्रामीणों और किसानो से सम्बंधित विकास कार्य की शुरुआत कर ग्रामीण क्षेत्र और शहर से लगे आसपास के क्षेत्रों में अपनी पैठ बनाई है, जिसका फायदा उन्हें मिलते स्पष्ट रूप से दिख रहा है। चुनावी क्षेत्र के मतदाताओं से चर्चा करने पर उन्होंने इस बात की तस्दीक भी की है। उसे देखकर भाजपा कार्यकत्र्ता लगभग घर बैठ गए नजऱ आ रहे हैं। सत्तारूढ़ पार्टी के चुनाव जीतने की अधिक सम्भावना को ध्यान में रखकर भाजपाई भी थोड़ा सुस्त नजऱ आ रहे हैं। जिस प्रकार कवर्धा में आसपास के लोगो की भीड़ इकठ्ठा कर माहौल को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे थे उसमे भी इनको झटका लगा है। प्रदेश की जनता साम्प्रदायिक तनाव को ध्यान न देकर विकास पर ध्यान दे रही है। रहा सहा कसर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कई केंद्रीय मंत्रियो द्वारा भूपेश सरकार की योजनाओ की दिल खोलकर की गई तारीफ ने कर दिया।

भाजपा के बड़े नेता जो 15 साल सत्ता का सुख भोगकर अब यह कहते नहीं थक रहे हैं कि भूपेश बघेल की किस्मत चमक रही है। जनता से रिश्ता ने मतदाताओं से बात करने पर पाया की सभी निकायों में कांग्रेस ही जीत रही है इस बात को भाजपा के कार्यकत्र्ता और ग्रामीण भी मान रहे हैं। 

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