रायपुर। राजधानी में आज मुहर्रम जुलूस निकाला गया है। राजधानी के विभिन्न इलाकों में कर्बला के 72 शहीदों की याद में यौम-ए-आशूरा का जुलूस निकाला गया। इस दौरान मौजूद अजादारों के साथ-साथ छोटे-छोटे बच्चें भी खुद को लहूलुहान कर रहे थे। मोहर्रम में इस बार भी कोविड गाइडलाइन का पालन करते हुए लोगों ने जुलुस निकाला है। मुस्लिमो का मानना है कि मुहर्रम इस्लामी महीना है और इससे इस्लाम धर्म के नए साल की शुरुआत होती है।
मान्यता है कि इस महीने में इमाम हुसैन की शहादत हुई थी, जिसके चलते इस दिन को रोज-ए-आशुरा कहते हैं। मुहर्रम का यह सबसे अहम दिन माना गया है, इस दिन जुलूस निकालकर हुसैन की शहादत को याद किया जाता है।
मुहर्रम के मातम का वीडियो
इस बार रायपुर में पहले जैसे मुहर्रम का मातम दिखा है लोगों ने इस बार ताजिया का आकार छोटा और सामान्य रखा है। ताजिया निकालने के दौरान कई लोग सम्मिलित हुए है। मुस्लिमों ने ताजिया का जुलूस निकालते हुए कर्बला के 72 शहीदों को याद करते हुए इबादत करते भी दिखे।
आज का दिन मुस्लिमों के लिए सबसे अहम और पवित्र है। आज मुहर्रम की दसवीं तारीख है। मुहर्रम की 10वीं तारीख को यौम-ए-आशूरा कहा जाता है। आशूरा के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग मातम मनाते हैं। इसके अलावा आज के दिन ताजिया और जुलूस निकाले जाते हैं।
जिसमें लोग इमाम हुसैन और उनके साथ शहीद हुए लोगों को याद कर खुद को जख़्मी भी कर लेते हैं।ताजिया हजरत इमाम हुसैन की कब्र के प्रतीक के रूप में होता है। आपको बता दें कि मोहर्रम के महीने में ही पैगंबर मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन कर्बला की जंग में शहीद हुए थे।
इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, आज से 1400 साल पहले कर्बला की लड़ाई में मोहम्मद साहब के नवासे (बेटी का बेटा,नाती) हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथी शहीद हुए थे ,ये लड़ाई इराक के कर्बला में हुई थी। लड़ाई में इमाम हुसैन और उनके परिवार के छोटे-छोटे बच्चों को भूखा प्यासा शहीद कर दिया गया था।
इसलिए मोहर्रम में सबीले लगाई जाती है,पानी पिलाया जाता है,भूखों को खाना खिलाया जाता है। इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, कर्बला की लड़ाई में इमाम हुसैन ने इंसानियत को बचाया था, इसलिए मोहर्रम को इंसानियत का महीना माना जाताहै।। इमाम हुसैन की शहादत और कुर्बानी की याद में मोहर्रम मनाया जाता है। इमाम हुसैन की शहादत की याद में ताज़िया और जुलूस निकाले जाते हैं।