मालदीव के आदिवासी कलाकारों ने 'कजरा मोहब्बत वाला' गाना गाया

छग

Update: 2022-11-03 15:48 GMT
रायपुर। रायपुर में मालदीव के आदिवासी कलाकारों ने 'कजरा मोहब्बत वाला' और 'लाल मेरी पत' गाना गाया। ये कलाकार राष्ट्रीय जनजातीय नृत्य महोत्सव में भाग ले रहे हैं।

मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिला डिंडौरी से पहुंचे कलाकारों ने छत्तीसगढ़ की याद दिला दी। करमा नृत्य की प्रस्तुति ने सबका मन मोह लिया। कृषि कर्म प्रधान नृत्य करमा फसल कटाई और कृषि पर आधारित है। यह बैगा जनजाति का लोकप्रिय नृत्य है।

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मांदर की थाप पर ,सिर में रंगीन पगड़ी और मोरपंख से सुसज्जित, लाल व काला परिधान से उत्साह के साथ प्रस्तुति दिए। इनके नृत्य में छत्तीसगढ़ के करमा नृत्य की झलक साफ दिखाई देती है। महिलायें गहरी नीली साड़ी पहने और सिर में कलगी लगाए आदिवासी परम्परा की पहचान को सरंक्षित कर सामूहिक, सामजंस्य और एकता का संदेश देते हुए नृत्य किये। वाद्य यंत्रों में भी छत्तीसगढ़ की झलक मिली। निशान बाजा, मोहरी, मांदर, टीमटिमी बाजा का प्रयोग करते हुए कर्णप्रिय संगीत के साथ सुंदर प्रस्तुति थी।

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आज राज्योस्तव के तृतीय दिवस के पहले कालखंड में देश की चारों दिशाओं से कला और जनजातीय संस्कृति की छटा बिखरी। पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश, देश के पश्चिमी राज्य गुजरात, उत्तर पूर्व में बसे असम, झारखंड, दक्षिण पूर्व में बसे राज्य आंध्रप्रदेश, दक्षिण पश्चिम में बसे गोवा राज्य की नृत्य शैली की शानदार प्रस्तुति हुई। पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश के आदिवासी समाज द्वारा किये जाने वाले सैताम नृत्य का सुंदर प्रस्तुति की गयी है।महिलाएं लाल और हरा के सुंदर परिधान पहनकर नृत्य करती हुई खूबसूरत लग रही थी। धुन और ताल के साथ गजब का जुगलबंदी देखने को मिला। बांसुरी की मधुर धुन, नगाड़ा की थाप पर मंत्रमुग्ध कर देने वाली नृत्य शैली। यह मध्यप्रदेश में फसल कटाई और विभिन्न पर्वों के शुभ अवसर पर किया जाता है। ढोल, नगाड़ा, बांसुरी का अद्भुत सामन्जस्य से जो संगीत निकल रहा है वह दर्शकों को झूमने को मजबूर कर दिया। मध्यप्रदेश के सागर से है यह टीम पहुंची है।
गुजरात के राठवां नृत्य आकर्षक चटकदार रंग बिरंगी परिधानों से सुसज्जित होकर यहां की महिलाओं द्वारा किया जाता है। वे एक घुमक्कड़ जनजाति से सम्बद्ध रखते हैं। वेश-भूषा में कांच, दर्पण के टुकड़ों का उपयोग करते हैं। हाथी दांत की चूड़ियाँ, कलाई की शोभा बढ़ाते हैं। कृषि में जब समृद्धि आती है, तब खुशी से महिलाएं यह नृत्य करती हैं। विदित हो कि आदिवासियों की एक जनजाति है राठवां, जो मूल रूप से गुजरात के उदयपुर जिले में रहते हैं। इस जनजाति का एक खास लोक नृत्य है, जिसे 'राठवां नृत्य' के नाम से जाना जाता है। कभी अपने क्षेत्र विशेष में सिमटा इनका यह डांस कुछ वर्षों से समूचे देश में विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए विशेष पहचान बना चुका है। एक बार इस लोकनृत्य को देखने वाला इस कला का मुरीद हो जाता है। यहाँ इनकी आकर्षक प्रस्तुति दी गयी।
तत्पश्चात कुनबी नृत्य की प्रस्तुति दी गयी। यह गोवा के बसने वाले कुनबी, मुख्य रूप से यहां के प्रांत में बसे एक आदिवासी समुदाय हैं, जो यहाँ की सबसे प्राचीन लोक परंपरा को सरंक्षित रखता है। कुनबी महिलाओं के नर्तकों के एक समूह द्वारा किया जाने वाला तेज और सुरुचिपूर्ण नृत्य, पारंपरिक लेकिन साधारण पोशाक पहने हुए, यह जातीय कला के रूप में एक सन्देश है। यह महिलाओं द्वारा किये जाने वाले सामुहिक नृत्य है। अगले क्रम में बेहद सादगी और साधारण वेश भूषा के साथ अपनी जनजातीय परम्परा के अनुरूप झारखंड प्रदेश का हो नृत्य समृद्धि और उन्नति के प्रतीक के रूप में प्रस्तुति दी। मांदर की थाप पर कदमताल मिलाते हुए शनै-शनै नृत्य ने लोगों का मोह लिया। संगीत के उतार चढ़ाव के साथ कलाकारों की सुंदर अभिव्यक्ति के साथ दर्शकों ने खूब प्यार दिया।
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