घर को बनाएं स्वर्ग-सा सुंदर

Update: 2022-09-12 03:51 GMT

रायपुर। राष्ट्रसंत ललितप्रभ सागर जी की त्रिदिवसीय विराट प्रवचन माला रविवार को पूर्ण हो गई। देवेंद्र नगर श्री संघ ने 1008 आयम्बिल महातप कि तपस्या की आराधना की। बताया गया कि राष्ट्रसंत के सोमवार से राजेंद्र नगर स्थित महावीर जैन मंदिर में तीन दिवसीय (12,13, 14 सितम्बर 2022) प्रवचन माला सुबह 9:00 से 10:30 तक आयोजित होगी।

राष्ट्र-संत श्री ललितप्रभ जी महाराज ने कहा कि किसी भी घर की ताकत दौलत और शौहरत नहीं, प्रेम और मोहब्बत हुआ करती है। प्रेम के बिना धन और यश व्यर्थ है। जिस घर में प्रेम है वहाँ धन और यश अपने आप आ जाता है। उन्होंने कहा कि जहां सास-बहू प्रेम से रहते हैं, भाई-भाई सुबह उठकर आपस में गले लगते हैं और बेटे बड़े-बुजुर्गों को प्रणाम कर आशीर्वाद लेते हैं, वह घर धरती का जीता-जागता स्वर्ग होता है। उन्होंने कहा कि अगर भाई-भाई साथ है तो इससे बढ़कर माँ-बाप का कोई पुण्य नहीं है, और माँ-बाप के जीते जी अगर भाई-भाई अलग हो गए तो इससे बढ़कर उस घर का कोई दोष नहीं है।

श्री ललितप्रभ जी रविवार को राजेंद्र नगर के शीतलनाथ जैन मंदिर में आयोजित तीन दिवसीय प्रवचन माला के समापन पर श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अगर आप संत नहीं बन सकते तो सद्गृहस्थ बनिए और घर को पहले स्वर्ग बनाइए। जो अपने घर-परिवार में प्रेम नहीं घोल पाया वह भला समाज में क्या प्रेम रस घोल पाएगा? जो अपने सगे भाई को सहारा बनकर ऊपर उठा न पाया, वह समाज को क्या ऊपर उठा पाएगा? मकान, घर और परिवार की नई व्याख्या देते हुए संतश्री ने कहा कि ईंट, चूने, पत्थर से मकान का निर्माण होता है, घर का नहीं। जहाँ केवल बीबी-बच्चे रहते हैं वह मकान घर है, पर जहाँ माता-पिता और भाई-बहिन भी प्रेम और आदरभाव के साथ रहते हैं वही घर परिवार कहलाता है। चुटकी लेते हुए संतश्री ने कहा कि लोग सातों वारों को धन्य करने के लिए व्रत करते हैं, अच्छा होगा वे आठवां वार श्परिवार्य को धन्य करे, सातों वार अपने आप सार्थक हो जाएंगे।

राष्ट्र-संत ने कहा कि हम केवल मकान की इंटिरियर डेकोरेशन पर ही ध्यान न दें, अपितु मकान में रहने वाले लोगों के बोलचाल और बर्ताव सब कुछ सुन्दर हो। उन्होंने माता-पिता को बुढ़ापे में सम्हालने की सीख देते हुए कहा कि जीवन भर वे हमारा पालन पोषण करते हैं, हममें ही अपना भविष्य देखते हैं अपनी सारी शक्ति और औकात हमारे लिए लगाते हैं, अगर वे सरकारी कर्मचारी हैं, तो रिटायर्ड होने पर आने वाली एक मुश्त राशि भी हम पर खर्च करते हैं और मरने के बाद भी अपना सारा धन और जमीन जायजाद बच्चों के नाम करके जाते हैं और स्वर्ग चले जाएँ, तो भी वहाँ से आशीर्वाद का अमृत अपने बच्चों पर बरसाते हैं।

राष्ट्र-संत ने हर श्रद्धालु को पारिवारिक प्रेम के प्रति मॉटिवेट करते हुए कहा- अकेले हम बूँद हैं, मिल जाएँ तो सागर हैं। अकेले हम धागा हैं, मिल जाएँ तो चादर हैं। अकेले हम कागज हैं, मिल जाएँ तो किताब हैं। अकेले हम अल्फाज हैं, मिल जाएँ तो जवाब हैं। अकेले हम पत्थर हैं, मिल जाएँ तो इमारत हैं। अकेले हम हाथ हैं, मिल जाएँ तो इबादत हैं।

घर को मंदिर बनाने की प्रेरणा देते हुए संतश्री ने कहा जहां हम आधा-एक घंटा जाते हैं, उसे तो मंदिर मानते हैं, पर जहाँ 23 घंटे रहते हैं उस घर को मंदिर क्यों नहीं बनाते हैं। उन्होंने कहा कि घर का वातावरण ठीक नहीं होगा तो मंदिर में भी मन में शांति नहीं रहेगी पर हमने घर का वातावरण अच्छा बना लिया तो हमारा घर-परिवार ही मंदिर-तीर्थ बन जाएगा।

संतश्री ने कहा कि घर का हर सदस्य संकल्प ले कि वह कभी किसी का दिल नहीं दुखाएगा। हम किसी के आँसू पौंछ सकते हैं तो अच्छी बात है, पर हमारी वजह से किसी की आँखों में आँसू नहीं आने चाहिए। अगर हमारे कारण माता-पिता की आँखों में आँसू आ जाए तो हमारा जन्म लेना ही बेकार हो गया। उन्होंने कहा कि हमसे धर्म-कर्म हो तो अच्छी बात है, पर ऐसा कोई काम न करें कि जिससे घर नरक बन जाए।

घर को स्वर्ग बनाने के लिए संतश्री ने कहा कि घर के सभी सदस्य एक-दूसरे के काम आए। घर में सब आहूति दें। घर में काम करना यज्ञ में आहूति देने जितना पुण्यकारी है। संतश्री ने घर को स्वर्ग बनाने के सूत्र देते हुए कहा कि घर के सभी सदस्य साथ में बैठकर खाना खाएं, एक-दूसरे के यहाँ जाएं, सुख-दुरूख में साथ निभाएं, स्वार्थ को आने न दें, भाई-भाई को आगे बढ़ाए, सास-बहू जैसे शब्दों को हटा दें। जब बहू घर आए तो समझे बेटी को गोद लिया है और बहू ससुराल जाए तो सोचे मैं माता-पिता के गोद जा रही हूँ। इस अवसर पर सैकड़ों भाई बहनों ने आई एम बिल की सामूहिक तपस्या करने का लाभ लिया।

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