महाशिवरात्रि विशेष आलेख

Update: 2023-02-16 03:56 GMT

भारतीय पर्वों में महापर्व का दर्जा महाशिवरात्रि को प्राप्त है। प्रत्येक वर्ष फाल्गुन माह की चतुर्दशी तिथि पर इस पर्व को मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिवस पर शिवजी ने वैराग्य का त्याग किया और पार्वती के संग विवाह करके गृहस्थ जीवन आरंभ किया था।ऐसी मान्यता है कि सृष्टि का प्रारंभ भी इसी दिवस से हुआ था। शिव जी को आदि देव भी कहा जाता है।आदि का अर्थ है आरंभ।उन्होंने ही जनजीवन का निर्माण संरक्षण और संहार का कार्य किया।सुर- असुर दोनों के प्रिय हैं शिव। इसलिए उन्हें देवों के देव महादेव कहते हैं। प्रेम और क्रोध दोनों ही उनके भीतर चरम में समाया हुआ है।वे ऐसे देव है जो कि रावण को भी और राम को भी वरदान देते हैं। सृष्टि के शिव भक्तों में गिरीजन वनवासी समाज इन्हें बूढ़ादेव के रूप में सर्वोच्च देव मानता आया है।

भोलेनाथ जिन्हें त्रिलोकी नाथ भी कहा जाता है, निर्विकार निष्काम है।एक लोटा जल,धतूरा,बेल पत्र जैसे साधारण सहज उपलब्ध वस्तुओं से ही भोलेनाथ प्रसन्न हो जाते हैं। बड़े-बड़े राक्षसों का वध करके संसार में सुख समृद्धि को बनाए रखने का दायित्व निर्वहन करने वाले भगवान शिव के अस्त्र-शस्त्र और श्रृंगार बड़े ही अनूठे हैं।

*सिर पर चंद्रमा है सुशोभित*

भगवान शिव के माथे पर त्रिपुंड चंदन टीका तथा सिर पर अर्ध चंद्र सुशोभित है।इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है।पौराणिक कथानुसार महाराजा दक्ष की सत्ताईस कन्याओं का विवाह चंद्रमा के साथ ही हुआ था,पर चंद्रमा का पवित्र प्रेम रोहिणी के साथ था।इसकी जानकारी पाने पर क्रोधित होकर दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग ग्रस्त होने का श्राप दे दिया था। इस श्राप से मुक्ति पाने चंद्रमा ने भगवान शिव की घोर तपस्या की।जिससे प्रसन्न होकर शिव जी ने चंद्रमा को क्षय रोग से मुक्त करके साथ सदा सदा के लिए अपने माथे पर सुशोभित किया।

*शेर खाल का धारण-आसन*

महाशक्तिशाली जीव शेर की खाल को भगवान शिव अपने आसन और वस्त्र के रूप में धारण करते हैं।इसके पीछे यह संकेत निहित है कि वे परमवीरता,पुरुषार्थ और दयालुता के देव हैं। हिमशिखर पर्वतों में निवासरत गिरीजन कड़कड़ाती ठंढ से बचने जीव जंतुओं की खाल को धारण करते हैं,भोले को भी शेर की खाल ठंढकता से सुरक्षित रखता है।

पूजा अनुष्ठान के दौरान भक्तों का संपर्क धरती से निषिद्ध माना गया है। इसीलिए पुष्प प्रसाद यदि धरती पर गिर जाते हैं तो उन्हें प्रभु को अर्पित नहीं किया जाता। इसी धार्मिक मान्यता अनुसार सीधे धरती पर बैठने के बजाए बाघ- हिरण जैसे प्राणियों की खाल को शिवभक्त आसनी के रूप में उपयोग करते हैं।

*गले का आभूषण है नाग सर्प*

देवाधिदेव महादेव के गले में आभूषण की तरह लिपटे हुए नाग सर्प दिखाई देते हैं। जिनका नाम राज वासुकी है। वे शिव जी के परम भक्त थे। जब सागर का मंथन हुआ तो सुर और असुरों के हाथों में रस्सी बनकर नागराज वासुकी ने हीं समुद्र मंथन का कार्य किया था। तब शिव जी ने उन्हें सदा सदा के लिए अपने गले का आभूषण रहने का वरदान देकर धारण किया। शिव के गले में 108 मुंडमाला भी गहनों की तरह सुशोभित होते हैं। रुद्राक्ष की माला भी शिव जी के गले में सुशोभित होते हैं।

*त्रिदेव शक्ति युक्त त्रिशूल*

भगवान शिव का त्रिनेत्र ही उनका सबसे बड़ा अस्त्र है। उनके प्रमुख अस्त्र शस्त्र में धनुष 'पिनाक' चक्र 'भवरेंद्र तथा तीर की तरह दिखने वाला महाविध्वंशक शस्त्र 'पाशुपतास्त्र' और रुद्रास्त्र हैं। जिन्हें असुरों अत्याचारियों का वध करने के लिए विष्णु, दूर्गा, श्री राम,अर्जुन आदि को उन्होंने प्रदान कर दिया था।

वे केवल त्रिशूल धारण करते हैं।शास्त्रानुसार यह दैहिक,भौतिक और दैविक कष्टों का निवारक है।सृष्टि की संरचना के साथ तम,रज और सत गुणों की भी उत्पत्ति हुई है।इनमें संतुलन बनाए रखने हेतु त्रिशूल के रूप में शिवजी ने इन्हें धारण किया। त्रिदेव की शक्तियों का प्रतीक त्रिशूल को माना जाता है। इसके तीन नोक को क्रमशः निर्माण (ब्रह्मा) संरक्षण (विष्णु) और संहार (शिव) प्रतीक माना जाता है।

*वाद्ययंत्र डमरू धारी*

भगवान शिव के हाथ में वाद्य यंत्र डमरु भी सदैव दिखाई देता है‌। रेत घड़ी की बनावट सदृश आदि वाद्य यंत्र डमरु सकारात्मक ऊर्जा का संचालक है।इसलिए डमरु को घर पर रखना शुभ माना जाता है।शास्त्रोक्तानुसार सृष्टि में विद्या देवी सरस्वती के प्रकाट्य के साथ ही उनकी वीणा से ध्वनि की उत्पत्ति हुई।जिसे संगीतमय बनाने के लिए लय,ताल,सुर को समाहित करने का कार्य शिव वाद्ययंत्र डमरू ने किया। अपने नटराज रूप में भगवान शिव डमरु वादन करते हुए नृत्य करते परिलक्षित होते हैं।

*शिव श्रृंगार -पूजा में वर्जित*

भगवान शिव वनस्पत्तियों के देव कहे जाते हैं ।वे भांग धतूरा,शमी,मदार,बिल्वपत्र कनेर,चिटचिड़ा,के श्रृंगार से गदगद होते हैं।उनकी पूजा में केतकी पुष्प,नारियल का पानी,हल्दी,कुमकुम,काला तिल का उपयोग वर्जित है।शिवपूजन के समय शंख भी नहीं बजाया जाता है। सर्वशक्तिमान होने के बावजूद सहज बनकर रहने और शक्ति का सदुपयोग असुर प्रवृत्ति को आमूलचूल उखाड़ फेंकने का संदेश भगवान शिव देते हैं। महाशिवरात्रि पर उनके गुणों का अनुसरण ही उनकी सच्ची आराधना होगी।ओम नमः शिवाय।

विजय मिश्रा 'अमित'

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