महासमुंद। देश-दुनिया के लोग प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग और पर्यावरण को बचाने के लिए चिंतित है। प्लास्टिक का उपयोग नहीं करने और पर्यावरण को बचाने के लिए हर छोटा कदम खास अहमियत रखता है। धीर-धीरे आपका यह एक कदम एक दिन बड़ा बनता है और लोग फिर आपकी सराहना करते हैं। ऐसा ही कुछ किया महासमुंद ज़िले की गाँव रायतुम कृष्णा विकास स्व-सहायता समूह महिलाओं ने। जिन्होंने शादी के फंक्शन में अक्सर लोगों को प्लास्टिक के ग्लास और थालियां इस्तेमाल करते देखा। जिसके बाद उन्होंने किराए पर बर्तन देने (बर्तन बैंक) की सोची।
आसपास के गाँवों में शादी समारोह सहित अन्य कार्यक्रमों में थर्माकोल की प्लेट और डिस्पोजल के बढ़ते उपयोग को रोकने में ये समूह की महिलाएॅ महती भूमिका निभा रही है। प्लास्टिक का उपयोग न हो उन्होंने विकल्प के रूप में स्टील के बर्तन जमा कर बैंक बनाया है। बहुत कम किराए पर इन्हें ये लोगों को मुहैया कराते हैं। आसपास और मिलने जुलने वाले लोग धीरे-धीरे थर्माकोल, कागज व प्लास्टिक के बर्तनों का इस्तेमाल करना छोड़ रहे है। जब भी किसी के यहां जन्मदिन, किटी पार्टी सहित धार्मिक व सामाजिक आयोजन होते हैं तो लोग बर्तन बैंक के दरवाजे पर पहुंच जाते हैं। स्टील की थालियां, गिलास, चम्मच, कटोरियां सहित अन्य बर्तन ले जाते हैं। आयोजन के बाद बर्तनों को साफ कराकर बर्तन बैंक में जमा कर देते हैं। यदि कोई बर्तन खो जाता है तो संबंधित से उसका चार्ज लिया जाता है, ताकि जरूरत के मुताबिक दूसरा बर्तन खरीदा जा सके। गाँव भी प्लास्टिक मुक्त बन रहा है। विगत दिवस महासमुंद में आयोजित बिहान मेला में समूह द्वारा स्टाल लगाया।
समूह की अध्यक्ष श्रीमती रेश्मा साहू बताती है कि लगभग 2 वर्ष पहले बिहान योजना से जुड़े। उन्होंने 12 हज़ार रुपए से छोटे कार्यक्रम आयोजन ले लिए बर्तन ख़रीद कर कम दाम पर किराए पर बर्तन देने की शुरुआत की। कोरोना के चलते कार्यक्रम आयोजन कम होने पर उम्मीद से ज्यादा लाभ नहीं हुआ। लेकिन अब कोरोना की रफ़्तार धीमी पड़ने से अब लाभ की पूरी उम्मीद है। फिर कार्यक्रम होने पर 5-6 हज़ार रुपए हर माह कमा लेती है। उनकी आमदनी में इज़ाफ़ा हो रहा है। उन्होंने बताया कि उनका 8 महिलाओं का समूह है। इसके अलावा वे मशरूम, अगरबत्ती, मुरकु, बड़ी, पापड़, अचार के साथ सेनेटरी पेड आदि जरुरत की सामग्री बनाती है। जिनकी अच्छी बिक्री स्थानीय बाज़ार और हाट बाज़ार में हो जाती है।