महालेखाकार नहीं अब स्थानीय निधि संपरीक्षक करेगा वित्तीय आडिट
भ्रष्टाचार-घोटालों पर परदा डालने हाउसिंग बोर्ड संचालक मंडल का फैसला
बड़े घोटाले को उजागर किया था महालेखाकार ने
हाउसिंग बोर्ड के तालपुरी प्रोजेक्ट के साथ हिमालयन हाइटस और बिलासपुर के अभिलाषा परिसर में हुए घोटालों पर भी जताई गई आपत्तियों पर नहीं हुई जांच
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। भ्रष्टाचार और अपने अधिकारियों की अनियमितताओं से हमेशा चर्चा में रहने वाले छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड ने अपने भ्रष्टाचारों पर परदा डालने के लिए एक और फैसला लिया है। विगत दिसंबर महीने में आयोजित संचालक मंडल की बैठक में बोर्ड की इकाई कार्यालयों का वित्तीय आडिट नियंत्रक एवं महालेखाकार छत्तीसगढ़ की जगह स्थानीय निधि संपरीक्षक से कराए जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में इसका खुलासा हुआ है। उल्लेखनीय है कि महालेखा परीक्षक ने हाउसिंग बोर्ड में व्याप्त भ्रष्टाचार और अनियमितताओं पर लगातार सवाल उठाए हैं, जिससे अधिकारियों की भर्राशाही और मनमानी उजागर होते रहे हैं। हालाकि सरकार की अनदेखी और बोर्ड में अध्यक्ष के तौर पर काबिज होने वालों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा और कमीशनखोरी की प्रवृत्ति के चलते भ्रष्टाचार और घोटाले के किसी भी मामले की आज तक किसी स्वतंत्र एजेंसी जांच नहीं कराई गई। परिणाम विभागीय जांचों को रसूखदार अधिकारी प्रभावित कर खूद को पाकसाफ साबित कर प्रमोट होते रहे।
गौरतलब है कि बोर्ड की पूर्ववर्ती संचालक मंडल ने 2012-13 से मंडल के कार्यालयों की वित्तीय आडिट महालेखाकार छत्तीसगढ़ से कराने का प्रस्ताव पारित किया था। जिसके बाद से कैग द्वारा बोर्ड की वित्तीय आडिट की जा रही है लेकिन दिसंबर 2020 में आयोजित संचालक मंडल की बैठक में इस प्रस्ताव को उलटते हुए वित्तीय आडिट स्थानीय निधि संपरीक्षक से कराए जाने का निर्णय लिया गया। कैग ने अपने आडिट रिपोर्ट में कई बार अनियमितताओं का जिक्र किया है। 2012-13 में ही चर्चित तालपूरी प्रोजेक्ट में 100 करोड़ के भुगतान पर भी कैग ने सवाल उठाए थे।
अध्यक्ष ने सशर्त दी जमीन, शर्त का उल्लंघन कर हो रहा पक्का निर्माण
हाउसिंग बोर्ड के अध्यक्ष ने दिसंबर में आयोजित संचालक मंडल की बैठक में नेशनल एसोसिएशन फार द ब्लाइंड रायपुर को बोर्ड की आधिपत्य की जमीन एक रुपए की दर से पक्का निर्माण नहीं करने की शर्त पर देने का निर्णय लिया था। निर्णय के बाद हीरापुर रायपुर स्थित जमीन संस्था को हस्तांतरित भी कर दिया गया लेकिन जानकारी मिली है कि संस्था द्वारा शर्त का उल्लंघन करते हुए उक्त जमीन पर पक्का निर्माण कराया जा रहा है। अध्यक्ष द्वारा उक्त जमीन संस्था को आबंटित करने पर पहले भी सवाल उठ रहे थे। दरअसल हाउसिंग बोर्ड को सरकार की अनुमति के बगैर आबंटन का अधिकार नहीं है। बोर्ड सिर्फ भूमि लीज अथवा रेंट पर दे सकती है। आबंटन अथवा बेचने के लिए सरकार के परमिशन की जरूरत होती है। बावजूद बोर्ड अध्यक्ष ने महज एक रुपए के दर पर उक्त भूमि आवंटित करने की अनुमति दे दी। बाकायदा इसके लिए विगत 9/12/20 को संपन्न हुई संचालक मंडल की बैठक में इस एजेंडे पर प्रस्ताव पारित कर दिया गया। संचालक मंडल की बैठक में एजेंडा क्रमांक-11 संकल्प क्र-1854/11/66/12/2020 में दृष्टिबाधितों के लिए नेशनल एसोसिएशन फार द ब्लाइंड रायपुर को मंडल के आधिपत्य में हीरापुर रायपुर स्थित रिक्त भू-खंड क्षेत्रफल 605.17 वर्गमीटर(6511.63 वर्गफीट) भूमि मात्र रु-1/-पर आबांटित करने की स्वीकृति के साथ केवल बाउंड्रीवाल के निर्माण व किसी पक्के निर्माण नहीं करने की शर्तों के साथ हस्तांतरित करने का फैसला लिया गया था।
सामाजिक संगठनों और संस्थाओं ने इस पर सवाल उठाया था कि इस बैठक के एजेंडा 7 में एक प्रस्ताव के जरिए छत्तीसगढ़ शासन आवास एवं पर्यावरण विभाग के एक आदेश के परिपालन में मंडल और राजस्व विभाग के आदेश को छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मंडल में लागू कर समस्त आवासीय एवं व्यवसायिक भूखंडों/भवनों में प्रचलित गाईड-लाइन का 2 प्रतिशत संपरिवर्तन शुल्क एवं 10 वर्षों का अग्रिम भू-भाटक राशि लिया जाकर फ्री-होल्ड के रूप में संपरिवर्तन किए जाने/फ्री होल्ड पर विक्रय किए जाने के प्रस्ताव पर मुहर लगाते हुए प्रकरण को छत्तीसगढ़ शासन को भेजे जाने के लिए आयुक्त को अधिकृत किया गया है। इससे साफ है कि शासन की अनुमति और आदेश के अनुसार ही बोर्ड को सरकारी भूमि को उपयोग में लाने की अनुमति है। भूखंड को बेचने, लीज अथवा रेंट पर देने से पहले राज्य शासन की अनुमति जरूरी है लेकिन इस मामले में भूमि आबंटन के लिए शासन की अनुमति नहीं ली गई और बोर्ड ने पद के अधिकार क्षेत्र से आगे जाकर भूखंड आबंटित कर दिया।
हाउसिंग बोर्ड की 66 कालोनियां होंगी नगर निगम के हवाले
छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड की रायपुर समेत 14 जिलों में निर्मित 66 कालोनियों का स्थानीय नगरीय निकायों में हस्तांतरण करने की तैयारी की गई है। यह फैसला बोर्ड की बैठक में लिया गया। बोर्ड ने प्रस्ताव भी तैयार कर लिया है। जल्द ही इसे नगर निगमों को
सौंप दिया जाएगा। इनमें रायपुर जिले की आठ, नवा रायपुर की दो, आरंग एक, दुर्ग की दो समेत 14 जिलों की कालोनियां शामिल हैं। निगम में इन कालोनियों के शामिल होने से वहां रहने वाले हजारों रहवासियों को पानी, बिजली, साफ-सफाई समेत अन्य मूलभूत सुविधाएं निगम की तरफ से मुहैया कराया जाएगा। इससे लोगों को काफी लाभ मिलेगा, लेकिन इसके एवज में पैसा भी खर्च करना पड़ेगा। अभी इन कालोनियों के बोर्ड के अधीन होने से अधिकांश सुविधाएं नदारद हैं। न तो साफ-सफाई और न ही पीने के लिए साफ
पानी लोगों को मिल पा रहा है। रायपुर समेत जिन 14 जिलों की 66 कालोनियों को नगर निगम को सौंपने का प्रस्ताव हाउसिंग बोर्ड ने तैयार किया है, उनमें रायपुर, नवा रायपुर, आरंग, दुर्ग, भिलाई, चरोदा, कुम्हारी, राजनांदगांव, खैरागढ़, जगदलपुर, बिलासपुर, कोरबा, कटघोरा, रायगढ़, अंबिकापुर, जगदलपुर, बेमेतरा आदि जिले की कालोनी हैं।