बिलासपुर। उत्पादन बढ़ाने के लिए बड़ी तादाद में थाईलैंड मोंगरी और बिग हैड जैसी प्रजाति के मछली पालन पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है. विदेशी प्रजाति की ये मच्छलियां मांस भक्षी होते है इसलिए अन्य जीवों की हानि हो रही है, इसको देखते हुए बिग हैड और थाईलैंड मोंगरी मछली पालने वालों को 10 हजार रूपए या एक वर्ष की जेल हो सकती है. मछली उत्पादन हाईब्रिड नश्लों का उपयोग हो रहा है. मछली पालन के लिए बिग हैड एवं थाईलैंड मोंगरी मछलियों का पालन किया जाता है.
दोनों प्रजाति की मछलियां मुख्य रूप से मांस भक्षी होते है, इसलिए इसका पालन करने से भारतीय प्रजाति की मछलियां और जलचर अन्य जीवों को ये खा जाती है. इसके कारण भारतीय किस्म की मछलियां और अन्य मानव मित्र कहे जीने वाले कीटों का अस्तित्व समाप्त होने की आशंका है. इसको देखते हुए शासन ने बिग हैड , मांगुर मछलियां , मत्स्य बीज उत्पादन , संवर्धन आयात निर्यात परिवहन तथा विपणन को प्रतिबंधित किया गया है. इसका उलंघन करने वालों पर एक वर्ष की जेल और 10 हजार रूपए का जुर्माना ठोंका जा सकता है.
भारत में मांगुर मछली बेचना तो दूर उसे पालना भी कानून अपराध
प्रदेश सहित राजधानी के आसपास ग्रामीण क्षेत्रों में कृत्रिम तालाब बनाकर मत्स्य पालन के नाम पर बड़ी संख्या में प्रतिबंधित मांगुर मछली का उत्पादन हो रहा है। जिसे मछली उत्पादक मोंगरी के नाम में बेच कर लोगों को धामी जहर दे रहे है। मांगुर मछली खाने के लोगों को कई तरह की बीमारियों का पता चलने के बाद से सरकार ने मांगुर मछली के उत्पादन और बचने पर प्रतिबंध लगा दिया था। यह भाजपा शासनकाल के समय से पिछले 7-8सालों से प्रतिबंध लगा हुआ है। अधिक कमाई के लालच में मछली उत्पादक चोरी छिपे मांगुर का उत्पादन कर मोंगरी के नाम से बड़ी आसानी से मार्केट में बेच रहे है। जिसे तस्करी के रास्ते एक राज्य से दूसरे राज्य में पहुंचाया जा रहा है। हाल ही में इसका खुलासा कोंडागांवमें हुआ जहां एक मछली से भरे वाहन के दुर्घटनाग्रस्त होने पर उसमें परतिबंधित मछली मांगुर मिले जिसे प्रशासन ने तत्काल नष्ट कराया। राजधानी में स्वास्थ्य अमले को मछली मार्केट में जाकर जांच करनी चाहिए कि कहीं मोंगरी ने नाम पर यहां भी मांगुर तो नहीं बेचा जा रहे है। भारत सरकार ने मांगुर के उत्पादन और पूरी तरह बैन लगा रखा है उसके बाद भी छुटभैया नेता और मांगुर माफिया तस्करी के रास्ते लोगों को मांगुर परोस कर गंबी्र बीमारियों से पीडि़त कर रहे है।
कोण्डागांव के चिखलपुटी में अग्रवाल पेट्रोल पम्प के सामने प्रतिबंधित हाइब्रिड मांगुर मछली रखकर आंध्रप्रदेश से रायपुर की ओर जाते हुए बोलेरो पिकअप वाहन क्रमांक एपी 16 टीएस 2504 अचानक अनियंत्रित होकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। वाहन में रखी मांगुर मछलियां आसपास बिखर गयी थी जिसे देखते स्थानीय लोगों द्वारा प्रशासन को सूचना दी गयी। जिसमें अधिकारियों द्वारा जांच में 4-5 क्विंटल प्रतिबंधित मांगुर मछलियों के परिवहन की बात सामने आयी। जिस पर पुलिस विभाग द्वारा पता किये जाने पर वाहन मालिक आंध्रप्रदेश के ग्राम ऐलुरू निवासी एम दुर्गा राव पिता एम रामा राव का होने की बात सामने आयी तथा वाहन चालक किरन राव पिता भास्कर भी उसी गांव का है। घटनास्थल पर दोनों के द्वारा अवैध रूप से परिवहीत की जा रही 4-5 क्विंटल प्रतिबंधित हाइब्रिड मांगुर पायी गयी थी। जिससे नियमानुसार मत्स्य विभाग द्वारा शासकीय मत्स्य बीज प्रक्षेत्र कोपाबेड़ा में राजस्व, मत्स्य एवं पुलिस विभाग के अधिकारियों की उपस्थिति में नष्ट कर दिया गया। इस अवसर पर सहायक संचालक मत्स्य पालन एम एस कमल, सहायक मत्स्य अधिकारी योगेश देवांगन, मत्स्य निरीक्षक हरिश पात्र, थाना प्रभारी कोण्डागांव भीमसेन यादव, प्रधान आरक्षक पन्नालाल देहारी, रामचन्द मरकाम, आरक्षक लोकेश शोरी सहित राजस्व विभाग से हलका नम्बर 15 के पटवारी झनकलाल समरथ भी उपस्थित रहे।
थाईलैंड में विकसित थाई मांगुर पूरी तरह से मांसाहारी मछली है। इसकी विशेषता यह है कि यह किसी भी पानी (दूषित पानी) में तेजी से बढ़ती है, जहां अन्य मछलियां पानी में ऑक्सीजन की कमी से मर जाती है, लेकिन यह जीवित रहती है। मछली का सेवन स्वास्थ्य के लिए बेहतर माना जाता है, पर यह खबर आपको सावधान करने के लिए है। क्योंकि राज्य के मछली बाजारों में मांगुर मछली की बिक्री बेरोक टोक जारी है। थाईलैंड की प्रजाति होने के कारण इसे थाई मांगुर कहा जाता है. डॉक्टर मानते हैं कि मांगुर मछली खाने से कैंसर हो सकता है। मछली पर बैन होने के बावजूद यह खुलेआम बाजार में बेची जा रही है। राजधानी के थोक मछली बाजार में यह मछली जिंदा बेची जाती है. दुकानदार हाइब्रिड मांगुर को देसी मांगुर या बॉयलर मांगुर बता कर बाजार में बेच रहे हैं। जबकि रांची में समेत पूरे राज्य में इसकी बिक्री पर बैन लगा हुआ है।
गौलतरब है कि भारत सरकार में साल 2000 में ही थाई मांगुर नामक मछली के पालन और बिक्री पर रोक लगा दी थी, लेकिन इसकी बेखौफ बिक्री जारी है। इस मछली के सेवन से घातक बीमारी हो सकती है. इसे कैंसर का वाहक भी कहां जाता है। ये मछली मांसाहारी होती है, इसका पालन करने से स्थानीय मछलियों को भी क्षति पहुंचती है. साथ ही जलीय पर्यावरण और जन स्वास्थ्य को खतरे की संभावना भी रहती है।
थाईलैंड की थाई मांगुर मछली के मांस में 80 प्रतिशत लेड और आयरन की मात्रा होती है। इसलिए इसका सेवन करने से कई प्रकार की इस मछली को खाने से लोगों में गंभीर बीमारी हो सकती है. बता दे की मांगुर मछली मांसाहारी मछली है, यह मांस को बड़े चाव से खाती है। सड़ा हुआ मांस खाने के कारण इन मछलियों के शरीर की वृद्धि एवं विकास बहुत तेजी से होता है. यह कारण है क्य ह मछलियां तीन माह में दो से 10 किलोग्राम वजन की हो जाती हैं। इन मछलियों के अंदर घातक हेवी मेटल्स जिसमें आरसेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, मरकरी, लेड अधिक पाया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत अधिक हानिकारक है। थाई मांगुर के द्वारा प्रमुख रूप से गंभीर बीमारियां, जिसमें हृदय संबंधी बीमारी के साथ न्यूरोलॉजिकल, यूरोलॉजिकल, लीवर की समस्या, पेट एवं प्रजनन संबंधी बीमारियां और कैंसर जैसी घातक बीमारी अधिक हो रही है।
थाईलैंड में विकसित थाई मांगुर पूरी तरह से मांसाहारी मछली है. इसकी विशेषता यह है कि यह किसी भी पानी (दूषित पानी) में तेजी से बढ़ती है, जहां अन्य मछलियां पानी में ऑक्सीजन की कमी से मर जाती है, लेकिन यह जीवित रहती है. थाई मांगुर छोटी मछलियों समेत यह कई अन्य जलीय कीड़े-मकोड़ों को खा जाती है. इससे तालाब का पर्यावरण भी खराब हो जाता है. पिछले दिनों धनबाद के मैथन में पुलिस ने चार टन प्रतिबंधित थाई मछली को जब्त किया था. इसके बाद भी रोजाना प्रदेश में थाई मछली का खेप पहुंच रहा है।
भारत में थाई मांगुर, बिग हेड और पाकु विदेशी नक्सल की हिंसक मांसाहारी मछलियों की बिक्री पर रोक लगी हुई है। उनका भारत में अवैध तरीके से प्रवेश हुआ है. भारत सरकार ने 2020 में इन तीनों प्रजाति की मछलियों की बिक्री पर पूरी तरह से रोक लगा दिया है। कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और केरल उच्च न्यायालय, ग्रीन ट्रिब्यूनल के द्वारा थाई मांगुर के पालन पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया है।