दुनिया में कैसे जीना है यह भगवान श्रीकृष्ण से सीखें

Update: 2022-08-20 04:16 GMT

रायपुर। ''परिवार में कैसे जीना है, अगर ये सीखना है तो भगवान श्रीराम से सीखो। दुनिया में कैसे जीना है, अगर ये सीखना है तो भगवान श्रीकृष्ण से सीखो और मुक्ति का मार्ग कैसे हासिल करना है, अगर ये सीखना है तो भगवान श्रीमहावीर से सीखो। हम लोग दिमाग में सोच बना लेते हैं- ये मेरे भगवान, ये तेरे भगवान। भगवान किसी धर्म के नहीं, भगवान तो सबके और पूरी मानवता के होते हैं। हर धर्म के भगवान और गुरुओं ने जो भी बातें कहीं, वे पूरी धरती के लिए, अखिल ब्रह्माण्ड के लिए और पूरी मानवता के लिए कहीं। आगमों में जो जीने की बातें कहीं गई हैं तो वो केवल जैनियों के लिए नहीं कही गई और गीता में जो बातें कहीं गर्इं वे केवल हिंदुओं के लिए नहीं कही गई हैं, पूरी मानवता के लिए कहीं गई हैं। दुनिया के सारे शास्त्रों में अच्छी बातें होती हैं, तय हमें करना है कि हम श्रोता बनकर सुनते हैं, कि सरोता बनकर। श्रद्धा और विवेकपूर्वक जो जीवन में क्रियाओं को संपादित करता है उसका नाम श्रावक है। जैन वो है जो जयनापूर्वक, अहिंसापूर्वक जीवन जीता है, जैन वो है जो इंसानियत के साथ जीता है और जो नवकार मंत्र का जाप करने वाला होता है। भगवान श्रीमहावीर कहते हैं- जन्म से कोई भी व्यक्ति न तो जैन होता है, न ब्राह्मण होता है, न क्षत्रिय होता, न वैश्य होता है और न ही शूद्र। आदमी जो भी होता है अपने कर्म से होता है। केवल अपने नजरिए को बड़ा करना होता है। । ''

ये प्रेरक उद्गार राष्टसंत श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग जीने की कला के अंतर्गत अध्यात्म सप्ताह के पांचवे दिन शुक्रवार को 'एक घंटे में समझें आगमों और गीता का रहस्य' विषय पर व्यक्त किए। भक्तिगीत 'रोज थोड़ा-थोड़ा प्रभु का भजन कर लैं, मुक्ति का प्यारे तू जतन कर लै...' के मधुर गायन से अपूर्व भक्तिभाव जागृत करते हुए उन्होंने कहा कि एक ऐसे देवदूत का आज जन्म दिन है जिनका जन्म तो कारागार में हुआ था, और जब दुनिया से गए तो अपने जीवन के दिव्य गुणों की छाप छोड़ इस दुनिया के दिलों पर राज करके चले गए। जीवन इसी का नाम है कि उन्होंने पूरी जिंदगी मुस्कुराते-हंसते हुए, खिलते और आनंद से जीकर और धरती को स्वर्ग बनाकर जिया। और हाथ में एक ऐसी चीज ले ली, वो थी बांसुरी। बांसुरी बड़ी गजब की चीज होती है, उसकी पहली खासियत होती है- बिना बुलाए वो कभी बोलती नहीं। उसकी दूसरी खासियत है- वो जब भी बोलती है तो मीठी बोलती है। प्रकृति से उन्हें कैसा प्रेम भरा रहा कि सिर पे लगाया तो कोई सोने का मुकुट नहीं लगाया, मोर पंख लगा दिया जिससे प्रकृति का लगाव बना रहा। हाथ में जिंदगी में कभी धनुष-बाण नहीं उठाया, हाथ में बांसुरी लेकर हमेशा धरती पर मधुर तान बिखेरने में लगे रहे।

संतप्रवर ने आगे कहा कि श्रीकृष्ण का जन्म ऐसे कुल में हुआ, जहां उन्होंने दोनों परम्पराओं में राज किया। यह कहते हुए गौरव है कि भगवान श्रीनेमिनाथ और भगवान श्रीकृष्ण दोनों सगे चचेरे भाई थे। दोनों ने ही भगवत्ता को हासिल किया, एक जैन धर्म के तीर्थंकर हुए और एक हिन्दू धर्म के भगवान बने। और श्रीकृष्ण की खासियत तो देखो वे हिन्दू धर्म के तो भगवान हैं और आने वाली चौबीसी में वे जैन धर्म के भी भगवान बनने वाले हैं। ये ऐसे महापुरुष हैं, जिन्होंने धरती को हंसता-खिलता, मुस्कुराता हुआ जीवन दिया।

आज की तारीख में धर्मक्षेत्र और कुरुक्षेत्र आदमी के भीतर है

संतप्रवर ने कहा कि अगर हम सभी लोग अपने नजरिए को बड़ा लेकर चलते हैं तो तय मानकर चलना दुनिया में कोई भी धर्म में भेद नहीं है, केवल हमें हमारी मानसिकता को पॉजीटिव बनाना है। दुनिया के हर धर्म में अच्छी बातें कहीं गर्इं हैं, जिन्हें हमें सीखने की सतत् कोशिश करनी चाहिए। गीता का जन्म धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र में हुआ था। आज की तारीख में भी धर्मक्षेत्र, कुरुक्षेत्र है और वह कोई बाहर नहीं आदमी के अपने भीतर है। आज की तारीख में भी महाभारत है, वह कहीं बाहर नहीं आदमी के अपने ही घर, मकान, जिंदगी और दुनिया में है। शांतिदूत बनकर भगवान कृष्ण गये थे, उन्होंने कभी-भी युद्ध की प्रेरणा नहीं दी, वे तो हमेशा कहा करते थे- जंग केवल एक मसला है, जंग क्या खाक मसलों का समाधान करेगी। इसीलिए शमां जलती रहे तो बेहतर है, हमारे-तुम्हारे घर में शांति बनी रहे तो बेहतर है। दुनिया में कभी भी लड़ाई और जंग से मसलों का हल नहीं होता, मसलों का हल जब भी होता है तो प्रेम और शांति से होता है।

गीता की मानवता को दी गई प्रेरणाएं

संतश्री ने बताया कि गीता की मानवता को तीन प्रमुख प्रेरणाएं हैं- उनमें पहली है निष्काम कर्मयोग। बिना किसी कामना के जीवन में कर्म करते रहो, ये मत सोचो कि मेरे काम से मेरा समाज में नाम हुआ या नहीं, मेरा सम्मान-यश हुआ या नहीं। क्योंकि जिंदगी में सच्चा कार्यकर्ता वही होता है जिसका कार्य तो दिखता है पर कर्ता कभी नहीं दिखता। गीता का अखिल मानवता को यह संदेश है कि हर व्यक्ति कर्मशील रहे वह कभी भी निठल्ला होकर न बैठ। मरने से पहले आदमी को कभी बूढ़ा नहीं होना चाहिए। कर्म किए जा फल चिंता मत कर रे इंसान, ये है गीता का ज्ञान। जिंदगी में कर्मयोग से कभी जी मत चुराओ। जिंदगी में वो नहीं हारता जो हार जाता है, जिंदगी में वो हारता है जो हार मान जाता है। क्योंकि हर हार में जीत छिपी हुई है। लगन से आदमी लगा रहा तो आज नहीं तो कल वह परिणाम जरूर पाता है लेकिन जिंदगी में वो आदमी क्या परिणाम पाएगा जो कभी लगे रहने को भी तैयार नहीं होता। हमेशा याद रखें-शरीर श्वांस से चलता है पर जिंदगी में आदमी आत्मविश्वास से चलता है। गीता का हमें दूसरा मार्गदर्शन है- ज्ञानयोग, अर्थात् ज्ञान का पक्ष हमारा सदा मजबूत रहना चाहिए। जिंदगी में आदमी को जैसे ही जीवन जीने का विवेक मिल जाता है फिर कभी वह गलत राहों पर नहीं चलता। इसीलिए हमेशा जीवन में कम से कम रोज आधे घंटा अच्छे शास्त्रों का अध्ययन जरूर करना चाहिए। गीता की तीसरी महान प्रेरणा है- भक्ति योग। मरने के वक्त आत्मा के साथ कुछ भी जाने वाला नहीं है केवल भगवान की भक्ति ही साथ जाने वाली है।

आगमों की तीन महान प्रेरणाएं

संतप्रवर ने बताया कि आगमों की हमें तीन महान प्रेरणाएं हैं- अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांतवाद। पहली बात आगम हमें कहते हैं- धर्म उत्कृष्ट मंगल है। जीवन में क्या करना है, अगर ये सीखना है तो रामायण से सीखो। जीवन में क्या नहीं करना है, अगर ये सीखना है तो महाभारत से सीखो। और जीवन को कैसे जीना है, अगर ये सीखना है तो भगवान श्रीमहावीर के आगमों से सीखो। जिसका मन अहिंसा-सयंम और तप के धर्म में रमण करता है, उसको देवता भी नमस्कार करते हैं। आगम हमें आगे कहते हैं- जो तुम अपने लिए चाहते हो, वही तुम सबके लिए चाहो। जो तुम अपने लिए नहीं चाहते, वो किसी के लिए भी मत चाहो।

आगम और भगवान हमसे यह चाहते हैं

संतप्रवर ने कहा कि भगवान हमें कहते हैं- हे जीव तू अभय बन, तेरे द्वारा किसी को भय ना मिले और तू भी किसी से भयभीत न बने। जीवों को हमेशा तू अभयदान देता रह। इस अनित्य जीवन में तू बेवजह अहिंसा के कर्मों को क्यों बढ़ा रहा है। भगवान कहते हैं, चार चीजों से बचो, पहला- क्रोध से, क्योंकि क्रोध से प्रीति का नाश होता है। दूसरा- मान से बचो, क्योंकि मान यह विनय का नाश करता है। तीसरा- माया कभी मत करो, क्योंकि माया से आज नहीं तो कल मित्रता का नाश हो जाता है। चौथा- लोभ मत करो, क्योंकि लोभ के वशीभूत हो किसी के धन को दबाकर रखना और किसी का दिल दुखाना यह सबसे बड़ा पाप और बहुत बड़ी हिंसा है। लोभ करने से सर्वनाश हो जाता है। भगवान हमें कहते हैं- जो जगे वह धन्य है और जो अधार्मिक है वो सोया रहे। जो धार्मिक है वो हमेशा जागा रहे।

ज्ञान, दर्शन चारित्र व तप को अपनाएं

संतप्रवर ने विषय को गति प्रदान करते कहा कि भगवान हमें कहते हैं- चार मार्गों को जीवन में जरूर अपनाएं। नंबर एक- ज्ञान, ज्ञान से जीव धर्म रीति, तपों को जानता है। नंबर दो- दर्शन। दर्शन से व्यक्ति सत्य की व्याख्या करता है। नंबर तीन- चरित्र। चरित्र से व्यक्ति पूर्वोपार्जित कर्मों का नाश करता है। और नंबर चार- तप। तप से आदमी अपनी आत्मा को शुद्ध करता है। आगम हमें कहते हैं- तुम सुनकर सत्य को जानों, और सुनकर असत्य को जानो, फिर जो तुम्हें अच्छा लगे वही जीवन में आचरण करो। भगवान कहते हैं- केवल बाल मूंढाने से, लोच करने से आदमी कोई साधु-संत, श्रमण नहीं हो जाता, जो समता रखता है वह श्रमण है। जो ब्रह्मचर्य का पालन करता है वो ब्राह्मण है। जो ज्ञानी होता है वो मुनि है। और जो तपस्वी होता है वही तो तापस है। भगवान कहते हैं- तुम यत्ना से चलो, यत्ना से बोलो, यत्ना से खाओ-पियो और विवेकपूर्वक जीवन जिओ। जिंदगी जीने के छोटे-छोटे मंत्र प्रदान करते हुए संतश्री ने कहा कि जहां आगम नहीं हो-वहां जाना मत। जो सुनता नहीं है, उसे समझाना मत। जो पचता नहीं हो-उसे खाना मत। और जो सत्य बात कहने पर भी रूठ जाए, उसे कभी मनाना मत।

महापुरुषों के चरित्रों का श्रवण कर करें

चरित्र निर्माण: डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागर

सांवरी सूरत पे मोहन दिल दिवाना हो गया... इस भक्ति गीत से शुभारंभ करते हुए डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागरजी ने कहा कि महापुरुषों के जीवन चरित्र को हम इसीलिए सुनते हैं कि उनके जीवन से हम अपने चरित्र निर्माण की प्रेरणा प्राप्त करें। महापुरुषों का जीवन चरित्र हम इसीलिए सुनते हैं ताकि हमारे चरित्र का निर्माण सुंदर हो जाए। इंसान चेहरे से नहीं अपने अच्छे चरित्र से महान हुआ करता है। क्योंकि शास्त्रों में कहा गया है कि शास्त्र गया तो कुछ गया, धन गया तो बहुत बच गया लेकिन चरित्र चला गया तो सब कुछ चला गया। जो सद्चरित्रवान होते हैं वे हमेशा अपने चरित्र के प्रति हमेशा सजग-सावधान रहा करते हैं। मुनिश्री द्वारा श्रद्धालुओं को आज प्रभुश्री नेमीनाथ एवं श्रीकृष्ण वासुदेव के जीवन की घटनाओं का श्रवण कराते हुए प्राणिमात्र से प्रेम, करुणा, मैत्री, धर्मदलाली, शील-सदाचार, विनयशीलता व परोपकार को जीवन में अपनाने की प्रेरणा दी गई। आज धर्मसभा को साध्वी श्री सिद्धोदयश्रीजी ने संबोधित करते हुए श्रद्धालुओं को भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से प्रकृति प्रेम, योग और नैतिकता के गुणों को आत्सात व चरितार्थ करने की प्रेरणा दी।

राधा-कृष्ण व राजुल-नेमी बने नन्हें बच्चों ने किया मंत्रमुग्ध

दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया, महासचिव पारस पारख व प्रशांत तालेड़ा, कोषाध्यक्ष अमित मुणोत ने बताया कि शुक्रवार को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर श्रीकृष्ण-राधा एवं राजुल-नेमी की वेशभूषा धारण कर आए नन्हे-मुन्ने बच्चों ने श्रद्धालुओं का मन मोह लिया। राष्टसंतों के आजू-बाजू मंच पर बैठे राधा-कृष्ण, ग्वाल-बाल, मैया यशोदा बने इन नन्हें बच्चों की वेशभूषा देखते ही बन रही थी। प्रवचन के उपरांत मधुर भजन- हे श्याम तेरी मुरली पागल कर देती है..., कभी राम बनके कभी श्याम बनके चले आना..., आनंद-उमंग भयो जय हो नंदलाल की...आदि भक्तिगीतों के गायन के साथ सभी श्रद्धालुओं को बालकृष्ण भगवान श्रीकृष्ण के पालने को झुलाने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ।

राष्टÑसंत के आह्वान पर गौशालाओं के लिए

श्रद्धालुओं ने मुक्तहस्तों से दी दान राशि

जन्माष्टमी के प्रसंग पर राष्टसंत श्रीललितप्रभ सागरजी ने समस्त श्रद्धालुओं से आह्वान कर कहा कि भगवान श्रीकृष्ण गौभक्त-गौसेवक थे। हम उनके जीवन से प्रेरणा लेकर आज उनकी जयंती पर हम भी गौ सेवा के लिए संकल्प करें। गौ सेवा के लिए मैं अपनी झोली फैलाकर आप सबसे यही दक्षिणा मांगता हूं ऐसा कहते हुए उन्होंने अपना दुशाला श्रद्धालुओं के बीच भिजवाया, जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने मुक्तहस्त से यथासामर्थ्य दान राशि डाली। संतश्री ने सबके योगदान से एकत्र कर राशि का रायपुर संभाग की सभी गौशालाओं के लिए बराबर-बराबर का हिस्सा इस संवत्सरि तक भिजवाने की व्यवस्था करने की आज्ञा ट्रस्ट मंडल को दी। गौशालाओं के लिए दान पुण्य श्रद्धालुओं द्वारा कल शनिवार की धर्मसभा में भी किया जा सकेगा।

अक्षय निधि, समवशरण, विजय कसाय तप

एवं दादा गुरूदेव इकतीसा जाप जारी

श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली, ट्रस्टीगण तिलोकचंद बरड़िया, राजेंद्र गोलछा व उज्जवल झाबक ने संयुक्त जानकारी देते बताया कि आज दिव्य सत्संग में अक्षय निधि, समवशरण, विजय कसाय तप के एकासने के लाभार्थी कस्तूरचंद महावीरचंद प्रकाशचंद आनंदराज बुरड़ परिवार, प्रकाशचंद अंकुश विवेक गोलछा परिवार, श्रीमती कमलाबाई कन्हैयालाल पदमजी डाकलिया परिवार का श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट मंडल व दिव्य चातुर्मास समिति की ओर से बहुमान हुआ। आज की धर्मसभा में प्रवचन श्रवण व राष्टÑसंत के दर्शन लाभ हेतु पूर्व विधायक व संसदीय सचिव लाभचंद बाफना का आगमन हुआ, जिनका श्रीसंघ की ओर अभिनंदन किया गया। सूचना सत्र का संचालन चातुर्मास समिति के महासचिव पारस पारख ने किया। 21 दिवसीय दादा गुरुदेव इक्तीसा जाप का श्रीजिनकुशल सूरि जैन दादाबाड़ी में सोमवार से प्रतिदिन रात्रि साढ़े 8 से साढ़े 9 बजे तक जारी है।

आज भजन संध्या व कल श्रीसरस्वती महापूजन

दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया, महासचिव पारस पारख प्रशांत तालेड़ा व कोषाध्यक्ष अमित मूणोत ने बताया कि कल शनिवार, 20 अगस्त को 'गृहस्थ में कैसे जिएं आध्यात्मिक जीवन' विषय पर प्रवचन होगा। साथ ही शाम 8 से रात्रि 10 बजे तक स्टेडियम के विशाल पांडाल में भक्ति संध्या का आयोजन किया जाएगा, जिसमें अनतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गायिका सीमा शर्मा द्वारा प्रभु भक्ति से परिपूर्ण भजनों की संगीतमयी मधुर प्रस्तुतियां दी जाएंगी। रविवार, 21 अगस्त को प्रवचन के समय प्रात: 8.45 से 10.30 बजे तक ज्ञान की महत्ता-महानता पर राष्टÑसंत की वाणी से विशेष प्रवचन सहित बुद्धिदायिनी माँ श्रीसरस्वती का महापूजन किया जाएगा। जिसमें सभी 36 कौमों के हजारों श्रद्धालु पुण्यार्जन करेंगे। श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट व चातुर्मास समिति द्वारा सभी श्रद्धालुओं से पूजन के शुद्ध वस्त्रों में अपने साथ एक फल, एक मिष्ठान्न और अक्षत चावल साथ लाने का आग्रह किया है। अक्षत चावल श्रद्धालुजन अपने सामर्थ्य अनुसार अधिक मात्रा में भी ला सकते हैं। पूजन उपरांत दशांश भाग पुजारीजी को प्रदान कर शेष चावल, फल, मिठाई आदि नगर की झुग्गी बस्तियों व जरूरतमंदों के बीच जाकर बांट जाएगा।

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