कोण्डागांव: कोरोना काल में भी कलीपारा के बच्चों में विद्या के पुष्प खिला रही है 'वंदना'
कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौर में जहां सारी दुनिया रूक सी गई थी वहीं इस महामारी का सबसे अधिक प्रभाव बच्चों की पढ़ाई पर पड़ा है। जहां वे स्कूलों में जाने से वंचित हुए वहीं पढ़ाई करने की रूचि भी बच्चों में कम होती गई। ऐसी स्थिति को देखते हुए बच्चों में विद्या की अलख निरंतर जलाये रखने के लिए विकासखण्ड कोण्डागांव के ग्राम पंचायत कोकोड़ी के अंतर्गत आने वाली प्राथमिक शाला कलीपारा में सहायक शिक्षक के रूप में पदस्थ वंदना मरकाम द्वारा लगातार शिक्षा से जुड़े नवाचारों के माध्यम से बच्चों को पढ़ाने का प्रयास किया गया।
इस संबंध में शिक्षिका वंदना मरकाम ने बताया कि मार्च में लाॅकडाउन की शुरूवाती दिनों में वे बच्चों की पढ़ाई के लिए निरंतर चिंतित रहती थीं, परन्तु 'पढ़ई तुंहर द्वार' कार्यक्रम के शुरू होने से उन्होंने इसके माध्यम से पढ़ाना शुरू किया। नेटवर्क कनेक्टिविटी, जागरूकता की कमी एवं सभी के पास मोबाईल की अनुपलब्धता के चलते आॅनलाईन बच्चों को पढ़ाना एक कठिन कार्य साबित हुआ। जिसके पश्चात् उन्होंने ग्राम के पंचायत प्रतिनिधियों एवं पालकों से इस संबंध में चर्चा की एवं सभी ग्रामवासियों की एक संयुक्त बैठक आयोजित कर आॅफलाईन कक्षाएं (मोहल्ला क्लास) शुरू करने के लिए सम्पर्क किया। इसके पश्चात् संस्था में अध्ययनरत् विद्यार्थियों के पालकों से सहमति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के पश्चात् 11 जुलाई से कक्षाओं का संचालन प्रारंभ किया गया परन्तु आॅफलाईन कक्षाओं में सबसे बड़ी चुनौती कोरोना के संक्रमण के विस्तार के समय बच्चों को संक्रमण से बचाते हुए उन्हें प्रतिदिन कक्षाओं में आने के लिए प्रेरित करना था। इसके लिए विद्यालय में प्रवेश के पूर्व सभी बच्चों को मास्क, सेनेटाईजर एवं हाथ धोने के साबुन का प्रयोग अनिवार्य किया गया साथ ही बच्चों में नियमित दूरी बनाये रखने की सीख दी गयी। बच्चों की संख्या अधिक होने से सभी विषयों की कम बच्चों के साथ पढ़ाई कराना कठिन होता गया जिसे देखते हुए विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी द्वारा प्राप्त निर्देशानुसार कलीपारा, दर्शलीपारा, टेंगनापखना के बच्चों को एक ही स्थान पर इकट्ठा कर सामूहिक रूप से कक्षावार अलग-अलग समूह बनाया गया। तत्पश्चात् समूहों को विभाजित कर अलग-अलग विषयों का अध्यापन तीनों संस्थाओं के विषय शिक्षिकाओं अनिला बघेल, चंद्रिका यादव एवं वंदना मरकाम द्वारा ग्राम के चयनित स्थानों पर अध्यापन कार्य 02 अगस्त से प्रारंभ किया गया।
इस प्रकार सामूहिक अध्ययन से बच्चों में अध्ययन के प्रति रूचि, अधिगम कौशलों का विकास, नैतिक क्षमता में वृद्धि एवं टीम भावना का विकास भी हो रहा है और अंततः लाॅकडाउन में भी बच्चों की शिक्षा बाधारहित तरीके से निरंतर चलती रही।
खेल-खेल में ले रहे छत्तीसगढ़ की जानकारी
बच्चों में पढ़ाई के प्रति रूचि के विकास के लिए वंदना ने खेल-खेल में बच्चों को पढ़ाने के लिए नवाचारी तरीकों पर ध्यान दिया। इसके लिए उन्होंने कुछ कागज के गत्तों, कोरे पन्नों, गोंद, पेन एवं मार्कर की सहायता से फर्श पर छत्तीसगढ़ का नक्शा बना बच्चों को छत्तीसगढ़ की सामान्य जानकारियों से अवगत कराने का प्रयास किया। इसके लिए बच्चों को दिखाने के लिए सर्वप्रथम नक्शे को श्यामपट पर चित्रित कर उन्हें उसके विषय में बताया जाता है, तत्पश्चात् बच्चों को फर्श पर नक्शा बनाकर अलग-अलग राज्य एवं जिलों के रूप में पात्र बनाकर एक छोटे अभिनय के रूप में एक खेल खेला जाता है। जिसमें बच्चे जो खेल में सम्मिलित हैं वे अपने किरदार अनुसार छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्य अथवा जिले अथवा शहर के रूप में अपने-अपने स्थानों पर नाम लिये जाने पर नक्शे की स्थिति अुनसार खड़े हो जाते हैं एवं अन्य बच्चें जो खेल को देख रहे हैं वे शिक्षक द्वारा पूछे गये सवालों के जवाब देते हैं जैसे छत्तीसगढ़ की राजधानी क्या है? छत्तीसगढ़ की आकृति कैसी है? छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण स्थान, पड़ोसी राज्य, नदी-नालों की अवस्थिति आदि सवालों को नाटकीय रूप में बच्चों को पढ़ाया जाता है जिससे बच्चे ना केवल अपने राज्य, जिले, पर्वत-पठार, नदी-नालों के संबंध में जानकारी प्राप्त करते हैं, बल्कि खेल-खेल में वे अपने पढ़ाई के मानसिक तनाव को भूल जाते हैं। इस प्रकार वंदना द्वारा खेलों के द्वारा बच्चों को पढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है।
जाहिर है इस विषम कोरोना काल में इस प्रकार के अभिनव शैक्षणिक गतिविधियों के माध्यम से ही बच्चों में शिक्षा के प्रति लगन को बरकरार रखा जा सकता है और इस अभियान में वंदना मरकाम जैसे कई शिक्षक, शिक्षिकाएं वास्तव में अपनी सराहनीय भूमिका बखूबी निभा रहे हैं।