रायपुर। ''क्षमा रूपी अमृत के स्वाद को वही व्यक्ति जानता है जो इसको जीवन में जीता है। क्रोध करने वाला व्यक्ति कभी महान नहीं होता, क्षमा को धारण करने वाला ही महान होता है। विपरीत वातावरण होने पर भी जब आदमी प्रेम और क्षमा को बनाए रखता है वही महान है। एक बात हमेशा याद रखें कि आलोचना में कभी उबलना मत और सफलता में कभी पिघलना मत। क्योंकि ये तो वक्त-बेवक्त बदलते रहते हैं। आज कोई व्यक्ति तुम्हारा अपना बना है तो वह तुम्हारी प्रशंसा कर रहा है और कल किसी बात को लेकर उसी व्यक्ति से तुम्हारी अनबन हो गई तो वह तुम्हारी प्रशंसा नहीं आलोचना करने लग जाएगा। इसका मतलब प्रशंसा और आलोचना की स्थितियां बदलती रहती हैं। पर एक बात हमेशा ध्यान में रखना चाहिए कि हमें इन बदलती परिस्थितियों में अपनी क्षमा भावना सदा बनाए रखना चाहिए।''
ये प्रेरक उद्गार राष्ट्रसंत श्रीललितप्रभजी ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में शनिवार को दिव्य सत्संग के अंतर्गत पर्युषण पर्व के चतुर्थ दिवस सूत्र शिरोमणि कल्पसूत्र पर आधारित 'प्रभु महावीर की भव-यात्रा' विषय पर व्यक्त किए।
जीवन में जोड़ें ये चार सद्गुण क्षमा, विनम्रता, मैत्री व संतोष
संतप्रवर ने आगे कहा कि पर्युषण पर्व के आज चौथे दिन हमें अपने जीवन से चार चीजों को हटाना है। वे हैं- क्रोध, मान, माया और लोभ। पर्युषण पर्व का यह चौथा दिन हमें कहता है- ये चार हमारे जिंदगी में जहर हैं, इनको जिंदगी से निकालो। जब जहर को निकाला है तो जीवन में अमृत को ग्रहण करना होगा। क्रोध अगर पहला जहर है तो प्रेम और क्षमा जिंदगी का पहला अमृत है। अहंकार अगर जहर है तो विनम्रता यह हमारे भीतर का अमृत है। माया अगर जहर है तो मैत्री हमारे जीवन का अमृत है। लोभ अगर जहर है तो संतोष हमारे जीवन का अमृत है। क्षमा-प्रेम, विनम्रता, मैत्री भावना और संतोष को हमें अपने जीवन से जोड़ना है। और ऐसे ही चार संकल्प हम और करेंगे। वे हैं- दान, शील, तप और भाव।
संतश्री ने आगे कहा कि खौलते-उबलते पानी में जब आपका चेहरा भी नजर नहीं आता तब आप उबलते गुस्से में होंगे तो दूसरे लोग आपको कहां से पसंद करेंगे। सम्राट के क्रोध से भी ज्यादा महान एक भिखारी की क्षमा होती है। मिठास हो जहां, वहां पर चीटियां भी आती हैं और जहां खटास हो वहां चींटियां भी आना पसंद नहीं करतीं। जिंदगी में कभी भी आदमी अपने रंग से महान नहीं होता है, आदमी जब भी महान होता है तो अपने जीवन जीने के ढंग से महान होता है। आदमी सूरत से नहीं सीरत से महान होता है। भगवान महावीर मंदिरों में इसीलिए पूजे जा रहे हैं कि उनका चरित्र सुंदर था। यह पयुर्षण पर्व हमें प्रेरणा देता है कि जीवन में क्षमा और प्रेम की ज्योति जलाइए। जो क्षमाशील होता है सभी उसे पसंद करते हैं। दंड देने वाले को दुनिया में कोई याद नहीं करता, माफी देने वाले को दुनिया में सब याद किया करते हैं। जिंदगी कितनी गजब की है कि लोग वर्षों पुराने कैलेण्डर घर में नहीं रखते लेकिन वर्षों पुराने बैर-विरोध को अपने मन में पाल कर रखते हैं। आदमी को मन में बैर-विरोध, कलुषता की गांठें बांधकर नहीं रखनी चाहिए।
पर्युषण के चौथे दिन चार सद्गुण और अपनाएं- दान, शील, व्रत और भाव
संतप्रवर ने कहा कि पर्युषण पर्व का यह चौथा दिन हमें चार सद्गुणों को जीवन में जोड़ने का संदेश दे रहा है। पहला है- क्षमा का अमृत। भगवान ने कहा है, जो आराधना के साथ-साथ क्षमा को धारण करता है तो उसकी आराधना सफल है। और अगर मन में बैर-विरोध है तो उसकी आराधना भी विफल है। दूसरा है- विनम्रता, सरलता। तीसरा- मैत्री और चौथा सद्गुण है- संतोष की वृत्ति। आज के दिन यह संकल्प भी लें कि चार सद्गुण मैं अपने जीवन में और जोड़ता हूं। पहला- मैं रोज यथा शक्ति दान जरूर करुंगा। दूसरा- मैं शील व्रत अर्थात् शीलवान बनकर नैतिक नियमों का पालन जरूर करुंगा। तीसरा- मैं यथासामर्थ्य तप को जरूर अपनाउंगा। साधना तभी सफल होती है जब व्यक्ति तप को अपने जीवन में जोड़ना है। चौथा है- भाव। अर्थात् मैं अपने भावों अर्थात् मन की दशाओं को हमेशा शुद्ध-पवित्र रखुंगा।
आचार्यश्री भद्रबाहु स्वामी रचित कल्पसूत्र पर आधारित दुर्लभ प्रवचन के अंतर्गत संतश्री द्वारा आज श्रद्धालुओं को भगवान महावीर के 18वें भव के आगे के भवों का श्रवण कराया गया । जिसमें उन्होंने भगवान महावीर के 27वें भव में पृथ्वीलोक में मानवता का कल्याण करने के लिए अवतरित होने का विस्तृत प्रसंग सुनाया। भगवान के च्यवन कल्याणक, दस आश्चर्यों का वर्णन और माता त्रिशला की कुक्षी में भगवान की आत्मा के प्रवेश होने पर माता को दिखाई दिए चौदह महास्वप्नों तक के प्रसंगों को अक्षरस: सुनने पूरे समय हजारों श्रद्धालु प्रवचन पांडाल में अविचल उपस्थित रहे।
आज हर्षोल्लास से मनाया जाएगा 'प्रभु महावीर का जन्मोत्सव'
0 चौदह दिव्य महास्वप्नों बधाया जाएगा, जन्म वाचन महोत्सव
दिव्य चातुर्मास समिति के महासचिव प्रशांत तालेड़ा व कोषाध्यक्ष अमित मुणोत ने बताया कि रविवार 28 अगस्त को पर्वाधिराज पर्युषण पर्व आराधना के पंचम दिवस प्रात: ठीक 8.30 बजे से कल्पसूत्र आधारित प्रभु महावीर का जन्मोत्सव हर्षोल्लास से मनाया जाएगा। इस पावन ऐतिहासिक प्रसंग पर भगवान की माता त्रिशाली रानी को दिखाए दिए चौदह महास्वप्नों को सौभाग्यशाली श्रद्धालुओं द्वारा बधाया जाएगा, तदुपरांत जन्म वाचन महोत्सव मनाया जाएगा। यह पहला ऐतिहासिक अवसर होगा जब आउटडोर स्टेडियम में एक साथ 36 कौम के लोग भी पुण्यदायी-कल्याणकारी स्वप्न दर्शन का लाभ लेंगे और भगवान के जन्म वाचन प्रसंग के साक्षी बनेंगे। समापन से पूर्व सभी श्रद्धालुओं को गुरु गौतम प्रसाद अर्थात् भोजन प्रसाद का लाभ भी प्राप्त होगा।
तपस्वियों के एकासने के लाभार्थी हुए सम्मानित
श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली, ट्रस्टीगण तिलोकचंद बरड़िया, राजेंद्र गोलछा व उज्जवल झाबक ने संयुक्त जानकारी देते बताया कि आज श्रद्धालुओं को राष्ट्रसंत श्रीचंद्रप्रभ रचित टेबल कैलेंडर भेंट करने के लाभार्थी देशभर में ज्ञान का दीप पहुंचाने वाले आनंद ज्वेल्स के संचालक गौरव आनंद का ट्रस्ट मंडल द्वारा बहुमान किया गया। वहीं अक्षय निधि, समवशरण, कसाय विजय तप के एकासने के लाभार्थी नरेश बुरड़ परिवार, धनराज बैद परिवार, प्रकाश पारख परिवार, राजेश नरेश बुरड़ परिवार का बहुमान किया गया। नन्हे बालक पे्रयांश बोथरा ने गुरु महिमा पर मधुर भजन की प्रस्तुति दी। सूचना सत्र का संचालन चातुर्मास समिति के महासचिव पारस पारख ने किया। 21 दिवसीय दादा गुरुदेव इक्तीसा जाप का श्रीजिनकुशल सूरि जैन दादाबाड़ी में बड़ी संख्या में गुरुभक्तों की सहभागिता में प्रतिदिन रात्रि साढ़े 8 से साढ़े 9 बजे तक जारी है। शनिवार रात्रि दादाबाड़ी में राजा बाफना-राजनांदगांव द्वारा प्रभु भक्ति में संगीतमयी मधुर प्रस्तुति दी गई। पयुर्षण पर्व की आराधना के अंतर्गत महिलाओं का पौषध आराधना हॉल सदरबाजार में एवं पुरुषों का पौषध व्रत दादाबाड़ी में किया जा रहा है। पर्युषण पर आंगी समिति सदरबाजार द्वारा प्रभु परमात्मा की प्रतिमाओं की मनोहारी आंगी सजाई सदर जैन मंदिर में सजाई जा रही है।