जैसे कुम्हार मिट्टी को गढ़कर एक नया रूप देते हैं, उसी तरह हमारा भी नारा है 'गढ़बो नवा छत्तीसगढ़'- मुख्यमंत्री भूपेश बघेल

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Update: 2022-08-26 17:23 GMT

रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आज राजधानी रायपुर के इंडोर स्टेडियम में आयोजित कुम्हार समाज के सम्मान समारोह कार्यक्रम में शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने समाज के उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्तियों को अपने हाथों से सम्मानित किया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपनी बात की शुरुआत सिंधु घाटी सभ्यता से की। उन्होंने कहा कि जब सिंधु घाटी सभ्यता के रहस्य जानने के लिए खुदाई का काम शुरू हुआ तो वहां हजारों साल पुराने मिट्टी के खिलौने, मिट्टी की मूर्तियां, मिट्टी के बर्तन बड़ी संख्या में मिले। आज भी छत्तीसगढ़ में भी जब किसी ऐतिहासिक स्थल पर खुदाई का काम होता है तो वहां यही चीजें मिलती हैं। यह ऐतिहासिक तथ्य बताता है कि मानव सभ्यता की शुरुआत से ही कुम्हार समाज इस सभ्यता का अभिन्न हिस्सा रहा है। मानव समाज के विकास में कुमार समाज का बहुत बड़ा योगदान है। घर बनाने से लेकर अंतिम यात्रा तक इंसान की जिंदगी में कुम्हारों का योगदान होता है। बिना कुम्हारों के आज भी कोई भी सामाजिक, पारिवारिक कार्यक्रम संपन्न नहीं होते। अध्यात्म की बातों में भी कुम्हारों के जीवन दर्शन का उल्लेख सुनने को मिलता है। संत महात्माओं ने कुम्हारों की माटी कला के उदाहरणों के माध्यम से समाज को कई शिक्षाएं दी हैं।

मानव जीवन का सार भी माटी कला की तरह ही है। बाल्यकाल में बहुत से बच्चों को समाज के द्वारा सम्मानित किया जाता है। माता-पिता के आशीर्वाद और गुरुजनों की प्रेरणा के साथ-साथ समाज के सकारात्मक रवैया से प्रभावित होकर बच्चे आगे बढ़ते हैं और समाज को तरक्की की ओर ले जाते हैं। इससे पूरा समाज गौरवान्वित होता है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने संबोधन में आगे कहा कि, जैसे कुम्हार मिट्टी को गढ़कर एक रूप देते हैं उसी तरह हमारा भी नारा है 'गढ़बो नवा छत्तीसगढ़'। हम भी अपनी सरकार के माध्यम से आज एक नया छत्तीसगढ़ गढ़ने की कोशिश में जुटे हुए हैं। पिछले साढे 3 साल से, जब से हमारी सरकार बनी है, किसान, मजदूर, गरीब, वनवासीयों के हित में कई बड़े फैसले हुए हैं। हम इनके जीवन में बदलाव लाने के लिए तत्परता के साथ काम कर रहे हैं। गोधन न्याय योजना, राजीव गांधी किसान न्याय योजना, राजीव गांधी ग्रामीण भूमिहीन किसान मजदूर न्याय योजना के साथ-साथ शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में लगातार काम किए जा रहे हैं।
स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल राज्य के सभी विकास खंडों में खोले गए। बच्चे स्कूल की शिक्षा पास कर ले तो इसी तरह के उत्कृष्ट कॉलेजों में उन्हें आगे की शिक्षा मिले इसके लिए कॉलेज भी खोले जा रहे हैं। हमारा सबसे बड़ा मकसद ही एक सुखद भविष्य को गढ़ना है। जब हम बच्चों के भविष्य को अच्छे से करेंगे तो एक मजबूत छत्तीसगढ़, सुंदर छत्तीसगढ़ गढ़ा जाएगा और यह सभी के सहयोग से मिलकर ही संभव होगा। आधुनिकीकरण के दौर में बहुत सी नई चीजें सामने आईं। पहले मिट्टी के बर्तनों में चावल- सब्जी पकाई जाती थी। फिर एलमुनियम जैसी धातु के बर्तन आने लगे। इसके बाद प्लास्टिक का भी दौर आया। इस बदलते दौर में कुम्हारों के हाथों से उनकी रोजी-रोटी छीन ली। एक दौर तो ऐसा आया जब दीए भी चीन से आने लगे। हमने महसूस किया कि ऐसे काम नहीं चलेगा। तेलीबांधा में हमने दीपावली के मौके पर माटी के दीए वितरित कराए, ताकि लोगों के बीच इनका महत्व ऐसे ही बना रहे। दरअसल आधुनिकता से हमें प्रतिस्पर्धा करना है। आज मशीन का युग है।
इस दौर में हमें मशीन से स्पर्धा करनी है। निजीकरण के दौर ने पारंपरिक काम करने वालों के पेशे पर कब्जा जमा लिया है। बड़े-बड़े उद्योगपति आज पारंपरिक कारीगरों और काश्तकारों के काम कर रहे हैं। हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था इस प्रतिस्पर्धा के वजह से पीछे छूट रही है। इसे कैसे आगे बढ़ाना है, यह हमारे सामने सवाल था। इससे निपटने के लिए उत्पाद की खपत और आधुनिकीकरण दोनों बातों पर विशेष रूप से ध्यान देना है, जिससे हम प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ेंगे, उत्पादन आगे बढ़ेगा और सस्ती कीमतों पर एक सामान्य कारीगर अपने बनाए उत्पादों को बेच सकेगा। नई डिजाइन और तकनीकी का कौशल हासिल करना भी बेहद जरूरी है और यह शिक्षा के माध्यम से ही संभव होगा। जब एक कारीगर का बच्चा नई तकनीक के विषय में पढ़ेगा, तो वह अपने पारंपरिक- पुश्तैनी पेशे को आधुनिकीकरण की ओर आगे ले जा सकेगा। उन्होंने आगे कहा कि हमारी सरकार लगातार कुमार समाज के हित में काम कर रही है। समाज की ओर से कुछ मांगे सरकार के समक्ष रखी गई हैं, जिन पर निश्चित रूप से विचार किया जाएगा और समाज के हित में निर्णय लिए जाएंगे। कार्यक्रम के दौरान खनिज विकास निगम के अध्यक्ष गिरीश देवांगन, माटी कला बोर्ड के अध्यक्ष बालम चक्रधारी, बोर्ड के संचालक सदस्य बसंत चक्रधारी और पुनीता प्रजापति मुख्य रूप से उपस्थित रहे।
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