पापुनि की गड़बडिय़ों की जांच तो हाउसिंग बोर्ड के घोटालों की क्यों नहीं?

Update: 2021-03-23 05:42 GMT

भाजपा शासनकाल में घपले, शैलेष ने जांच का दिखाया दम

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। भाजपा शासन काल में सरकारी विभागों के साथ विभिन्न निगम-मंडलों में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं सामने आई थी जिसे लेकर तब के विपक्ष में रहे कांग्रेसी नेता आवाज उठाते रहे और जांच की मांग करते रहे। लेकिन सत्ता में आने के बाद उनकी आवाज बंद हो गई है। यहां तक कि आवाज उठाने वाले नेता ही कई निगम-मंडलों में अध्यक्ष उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं लेकिन पुराने घोटालों और गड़बडिय़ों की जांच कराने को लेकर वे कोई कदम नहीं उठा रहे हैं और न हीं इस पर बात कर रहे हैं। इस मामले पाठ्य पुस्तक निगम के चेयरमेन शैलेषनितिन त्रिवेदी ही अपवाद हैं जिन्होंने भाजपा शासन काल में निगम में हुई गड़बडिय़ों को परत-दर-परत उघाड़ते हुए न सिर्फ स्थानीय निधि संपरीक्षा से आडिट कराया बल्कि जांच के भी आदेश देकर दोषियों पर कार्रवाई करने की बात कही है। वहीं दूसरी ओर अपने घोटालों और अधिकारियों की मनमानियों के लिए चर्चित छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड में हुए घोटालों और घपलों की जांच को लेकर किसी तरह की गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है। जबकि हाउसिंग बोर्ड में घोटालों की फेहरिस्त लंबी और काफी बड़ी है। बोर्ड के घोटालों को लेकर लोक आयोग से लेकर ईओडब्ल्यू में भी शिकायत दर्ज हुई है जिस पर कार्रवाई तो दूर संज्ञान भी नहीं लिया जाता।

घोटालों की लंबी फेहरिस्त, जिसकी जांच जरूरी

हाउसिंग बोर्ड में घोटालों की लंबी फेहरिस्त है जिसकी जांच कराई जा सकती है। तालपुरी से लेकर परसदा, डुमरतराई, पुरैना, अभिलाषा और चिल्हाटी जैसे कई प्रोजेक्ट है जिसमें गड़बडिय़ां पाई गई हैं, जिसपर कैग ने भी आपत्ति जताई है, जिसके आधार पर ही बोर्ड का अध्यक्ष जांच की अनुशंसा कर सकता है। लेकिन जांच करा कर दोषियों पर कार्रवाई कराने और जनता की के पैसों की रिकवरी करने से स्वहित नहीं हो सकता, संभवत: यही कारण है कि हाउंिसग बोर्ड का अध्यक्ष और आयुक्त इन घोटालों पर चुप रहना ही मुनासिब समझते हैं।

भाजपा शासनकाल से जमे अफसरों का मायाजाल

हाउसिंग बोर्ड में भाजपाशासन काल से जमे अफसरों का ऐसा मायाजाल छाया हुआ है कि बोर्ड में अध्यक्ष और आयुक्त के पदों पर काबिज व्यक्ति उनके दिखाए स्वप्नजाल में उलझ जाते हैं और 15 वर्षों से हो रहे पुराने घोटालों-घपलों पर चर्चा करना तो दूर कुछ सुनना भी जरूरी नहीं समझते। बोर्ड कमाई करने वाली वो संस्था है जो अफसरों के साथ बोर्ड पर काबिज पदाधिकारियों और सरकार के लोगों को भी मालामाल करती है, ऐसे में कोई भी घोटालों के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई कर अपना नुकसान नहीं करना चाहता। यही कारण है कि पूर्ववर्ती भाजपा शासन काल में भी ये अफसर अपनी मनमानी करते रहे और अब कांग्रेस शासनकाल में भी बिना किसी भय और आशंका के निश्चिंत होकर अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं।

शैलेष ने उधेड़ा फर्जीवाड़ा: पापुनि में 500 करोड़ का हिसाब-किताब नहीं

छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम के चेयरमेन शैलेषनितिन त्रिवेदी ने निगम में भाजपा शासन काल में हुई अनियतिताओं की परतें खोलनी शुरू कर दी है। ुपिछले दिनों उन्होंने बताया था कि घोटालों से घिरे छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक निगम (पापुनि) में जैसे-जैसे आर्थिक अनियमितता की जांच आगे बढ़ रही है, घोटाले की रकम भी बढ़ती जा रही है। 18 मार्च की स्थिति में करीब 500 करोड़ रुपये का हिसाब- किताब नहीं मिल पाया था। त्रिवेदी के अनुसार पूर्ववर्ती सरकार के समय चार साल से निगम की सामान्य सभा नहीं बुलाई जा रही थी। अध्यक्ष पद संभालने के बाद उन्होंने सामान्य सभा बुलाई। सभा में निगम के वार्षिक लेखा का हिसाब-किताब पेश किया। हिसाब-किताब का मिलान नहीं होने पर आर्थिक अनियमितता का संदेह गहराने पर जांच कराई गई।

उन्होंने कहा कि निगम की आडिट चार स्तर पर चाटर्ड एकाउंटटेंट (सीए) के अलावा स्थानीय निधि संपरीक्षा और कैग से भी कराई जा रही है। क्लोजिंग और ओपनिंग बैलेंस में मिलान नहीं हो रहा है। एक प्रिटिंग प्रेस को बिना काम कराए निगम के अधिकारियों द्वारा आठ करोड़ 40 लाख रुपये का भुगतान कर दिया गया। मामला यहीं खत्म नहीं हुआ। जांच में 500 करोड़ रुपये का हिसाब किताब नहीं मिल रहा है। 12 मार्च को प्रिंटर को नोटिस दिया जा चुका है। जवाब मिलने पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।

80.98 करोड़ का चेक घोटाला

छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम में 80 करोड़ 98 लाख 35 हजार 600 रुपए का घोटाला सामने आया है। यह घोटाला पिछले दो वर्षों के दौरान जारी 250 से अधिक चेक में बिना संयुक्त हस्ताक्षर किये अंजाम दिया गया है। स्टेट ऑडिट की रिपोर्ट में इस घोटाले का खुलासा होने के बाद हड़कंप मचा हुआ है। राज्य संपरीक्षा के सीनियर ऑडिटर बीके साहू ने मंगलवार को छत्तीसगढ़ पाठ्य पुस्तक निगम के प्रबंध संचालक को पत्र लिखकर बताया, 4 अक्टूबर 2019 से 25 नवम्बर तक जारी चेक में जिम्मेदार अफसरों के संयुक्त हस्ताक्षर नहीं हैं। 6 दिसम्बर 2019 से पाठ्य पुस्तक निगम के जिम्मेदार दोनों अफसर फिर से संयुक्त हस्ताक्षर कर चेक जारी करने लगे थे। इसके बावजूद 28 दिसम्बर 2020 को केवल महाप्रबंधक के हस्ताक्षर से 8 करोड़ 92 लाख 98 हजार 821 रुपए का चेक जारी हो गया।

कोई काम कराये बिना प्रकाशक को दे दिए 8.20 करोड़

ऑडिट में एक और रोचक घोटाला पकड़ में आया है। निगम के अफसरों ने रायपुर के राजाराम प्रिंटर्स को 8 करोड़ 20 लाख रुपए से अधिक की राशि का भुगतान किया है लेकिन राजराम प्रिंटर्स से क्या काम कराया गया है, इसके कोई दस्तावेज निगम के पास मौजूद ही नहीं है। मामला सामने आने के बाद पाठ्य पुस्तक निगम ने प्रकाशक को पत्र लिखकर पूछा है कि उन्होंने निगम के लिए कौन का काम किया है। प्रकाशक से कार्यादेश, मुद्रित सामग्री और उसके परिवहन का विवरण भी तलब किया है। प्रकाशक से बिल, वाउचर, पावती और चालान की प्रति भी उपलब्ध कराने को कहा गया है।

स्वेच्छानुदान कोष से बंदरबांट

निगम के तत्कालीन अधिकारियों ने साल 2017-18 से 2019-20 तक निगम की राशि का विभिन्न व्यक्तियों और संस्थाओं के नाम पर पांच हजार रुपये से लेकर 50 हजार रुपये तक की राशि बांट दी है। पाठ्यपुस्तक निगम के पूर्व वित्ताधिकारियों ने स्वेच्छानुदान कोष से कितनों को कितनी राशि और किस मकसद से दी, इसका विवरण उपलब्ध नहीं है। फिलहाल तीन साल की सूची मिली है, जिसमें 400 से अधिक लोग ऐसे हैं जो निजी क्षेत्र के हैं और उनका निगम के कामकाज और बच्चों के शैक्षणिक गुणवत्ता से कोई लेना-देना तक नहीं है।

अध्यक्ष ने कहा, छोड़े नहीं जाएंगे दोषी

पाठ्य पुस्तक निगम के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा, मामले की जांच का आदेश दिया गया है। जांच में जो भी दोषी होगा उसके खिलाफ एफआईआर कराई जाएगी। त्रिवेदी ने बताया, निगम के सामान्य सभा की बैठक तीन साल से नहीं हुई है। इसकी वजह से बैलेंस शीट का मिलान नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा, निगम में आय-व्यय का पूरा ब्यौरा रखा जाता है, लेकिन संभवत: इस अनियमितता को छिपाने के लिए ही बैठक नहीं कराई गई है। उन्होंने कहा कि बदले की कार्रवाई करने पर विश्वास नहीं है। नोटिस जारी कर सभी पक्षों को सुनवाई का अवसर दिया जा रहा है। जांच में दोषी पाए जाने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। पांच-छह प्रिंटर को ब्लैक लिस्टेड किया जा चुका है। कुछ अधिकारियों-कर्मचारियों पर कार्रवाई की गई है। बैकों ने भी अपने कुछ कर्मचारियों के विरूद्ध कार्रवाई की है।

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