माहे रमजान में नन्हे रोजेदार भी डूबे हैं इबादत में

Update: 2021-05-11 12:47 GMT

भिलाई। माहे रमजान के दौरान बच्चे भी अपनी भूख-प्यास के भूल रोजा रख रहे हैं और नमाज व दीगर इबादत पूरी कर रहे हैं। इन बच्चों में ज्यादातर ऐसे हैं,जिन्होंने पहली बार रोजा रखा है लेकिन गर्मी के इस मौसम में इन्हें घर पर रहते हुए रोजा रखना मुश्किल नहीं लग रहा है। इन बच्चों का कहना है कि घर के बड़े लोगों को देखकर उनमें भी रोजा रखने का शौक पैदा हुआ और पूरी पाबंदी से इसे पूरा कर रहे हैं। ये बच्चे घरों में रहते हुए अपनी इबादतों में दुनिया में अमन व सलामती के साथ-साथ पूरी दुुनिया से कोरोना महामारी की खात्मे के लिए खास तौर पर दुआएं कर रहे हैं। सेक्टर-7 निवासी आबान खान और उनकी बहन अयाना खान बताते हैं कि रमजान में घर वालों के साथ सुबह सवेरे उठ कर सेहरी करना, नमाज पढ़ना और शाम को मिल कर इफ्तार करना उन्हें अच्छा लगता है। आबान का कहना है कि रोजे के दौरान उन्हें शुरू-शुरू में थोड़ी परेशानी लगी लेकिन फिर आदत हो गई और भूख-प्यास की तरफ ध्यान नहीं गया।

पुलिस लाइन दुर्ग निवासी अरमान खान और अलविना खान इस साल पाबंदी से रोजा रख रहे हैं। अरमान बताते हैं कि दोनों भाई बहन पूरे रोजे तो नहीं रख पाए और कुछ छूट भी गए हैं। फिर भी घर मेें सुबह सेहरी के वक्त से लेकर शाम को अफ्तार के वक्त तक और उसके बाद रात में भी इबादत सब मिलजुल कर किया करते हैं। दोनों भाई-बहन का कहना है कि रोजा रखने पर उन्हें भूख-प्यास की तरफ ध्यान नहीं जाता है, इसलिए पूरी पाबंदी के साथ रोजा रख पाते हैं। सेक्टर-7 निवासी अनाबिया शेख और इनाया शेख रोजा रखने के साथ-साथ नमाज भी पूरी पाबंदी से पढ़ रही हैं। अनाबिया-इनाया का कहना है कि माहे रमजान में रोजा रखने के अलावा तमाम इबादतों का भी ध्यान रखतीं हैं। वहीं शबेकद्र की रात जागकर भी दोनों ने खूब इबादत की है। दोनों का कहना है कि रोजा रखने पर उन्हें भूख-प्यास का एहसास नहीं होता है।

राजनांदगांव निवासी अनम खान और अजान खान को रोजा रखने के साथ-साथ परिवार के साथ मिलकर सेहरी व अफ्तार करना खूब भाता है। अनम बताती हैं कि दोनों भाई-बहन घर में मम्मी-पापा व दादी के साथ मिल कर इबादत करते हैं। अनम ने बताया कि उन्होंने शबेकद्र की रात भी इबादत की और बाकी दिनों में भी पूरी पाबंदी से इबादत करती हैं।

अपने रब को राजी करने शौक और हिम्मत से रोजा रखते हैं बच्चे:डॉ. इस्माइल

माहे रमजान के रोजे हर बालिग मर्द और ओरतों पर फर्ज है। इसके साथ ही इस महीने में बच्चे भी अपने रब को राजी करने हिम्मत ओर शौक से रोजा रखते है। इस बारे में वरिष्ठ होमियोपैथी चिकित्सक ओर सेवानिवृत्त बीएसपी कर्मचारी डा सैय्यद इस्माइल ने बताया कि हजरत मुहम्मद सल्ललाहो अलैहिस्लाम ने एक बेहतरीन मआशरा (समाज) के लिए हर तबके की जिम्मेदारी को बखूबी बयान करते हुए अल्लाह के एहकाम को उनके बारे में बताया कि जब बच्चे 7 साल के हो जाए तो उनके बिस्तर अलग करें, नमाज़ पढ़ना सिखाएं और 10 साल की उम्र मे उनको ऐसे नहीं करने पर खबरदार करें।

सैय्यद इस्माइल ने बताया कि रोजा रखने बचपन से आदत डालें और बालिग होने पर इसके लिए जरूर ताकीद करें। जिस तरह गरीब को भूख मे तकलीफ होती है वैसे ही रोजा रखने से हमे एहसास पैदा होता है कि भूख क्या चीज है। यह एहसास ऐसे बच्चों को भी होता है जो रोजा रखते हैं।

रोजा की हालत में झूठ,गीबत,गाली-गलौज,झगड़ा करना सख्त मना है। जिससे रोजा रखने वाला एक महीने के अंदर तक तमाम बुराईयों से बचकर उसका नफ्स इन बुरी बाते हरकतों से बचने की भरसक कोशिश करता है। इसलिए बचपन से बच्चो में अच्छी तरबीयत और सलीका पैदा करने का मकसद रोजा पूरा करता है। इससे उनके अंदर इंसानियत का दर्द,गम,भूख और प्यास का अहसास और एक अल्लाह के एहकाम मे जमने का इमान बनता है। अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद सल्ललाहो अलैहिस्लाम ने खुद कई कई दिन भूखे रहकर इंसानियत के दर्द समझने लोगो से यतीम,बेवा, गरीब, मिस्कीन और जरूरत मंदो पर खर्च करने ताकीद फरमाई। उन्होंने कहा कि जब बच्चे, जिनपर रोजा फर्ज नही है,वे रोजा रखते हैं तो फरिश्ते भी उन पर दुआएं भेजते है।

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