रायपुर। ''मन के प्रदूषण को मिटाने के लिए यह पर्युषण पर्व आता है। व्यक्ति के मन के भीतर पलने वाला पहला प्रदूषण है बैर-विरोध का प्रदूषण। दूसरा है- मन में लगी हुई द्वेष की गांठ। जिस आदमी के मन में गांठ बंध जाती है, उसकी जिंदगी रसमय होकर भी नीरस हो जाती है। जैसे मीठे रस से भरे हुए गन्ने में जहां-जहां गांठें होती है, वहां-वहां उसमें रस नहीं होता। आदमी कितना जबरदस्त है कि वह टूटने तैयार हो जाता है पर वह झुकने तैयार नहीं होता। याद रहे हम अरिहंतों की संतानें हैं तो इतने कमजोर भी नहीं हो सकते कि हम झुकने को भी तैयार न हों। अगर भूल-चूक कर भी आपकी किसी से बोलचाल बंद हो तो आज उस गांठ को खोल दें। उसका सर हमसे बड़ा होता है जो हमारे सामने झुका होता है। याद रखें कि अगर आपने रात को सोने से पहले किसी की एक गलती को माफ कर दिया तो भगवान सुबह आने से पहले ही आपकी सौ गलतियां माफ कर देता है।''
ये प्रेरक उद्गार राष्ट्रसंत श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग जीने की कला के अंतर्गत पर्युषण पर्व आराधना सप्ताह के द्वितीय दिवस गुरुवार को 'पर्युषण पर्व के संदेश एवं कर्तव्य' विषय पर व्यक्त किए।
कर्म के दो ही बीज, राग और द्वेष
विषयान्तर्गत संतप्रवर ने आगे कहा कि भगवान कहते हैं श्रावक घर में रहे कोई दिक्कत नहीं, पर श्रावक के अंदर घर न आ जाये। श्रावक घर में जिए कोई दिक्कत नहीं पर श्रावक की चेतना में घर न आ जाए। श्रावक संसार में रहे कोई दिक्कत नहीं पर श्रावक के भीतर संसार न आज जाए। पर्युषण पर्व के आज दूसरे दिन हम दो चीजें अपने जीवन से दूर करने का संकल्प लेवें पहला- राग और दूसरा- द्वेष । राग में हम जुड़ते हैं और द्वेष में हम टूटते हैं। पर एक बात तय है टूटकर भी आदमी जुड़ा है। आदमी उसको कम याद करता है जो उसका दोस्त है, आदमी उसको ज्यादा याद करता है जो उसका दुश्मन है। दोस्त को देखकर आपने कभी यह नहीं कहा होगा कि तुझे छोडुंगा नहीं पर दुश्मन को जरूर कहा होगा कि तुझे छोडुंगा नहीं। इसका मतलब है दोनों से ही हमें जुड़ाव है। जो राग-द्वेष को जीत लेता है, वो वीतरागी होता है। आदमी को रंग, स्वाद, जमीन, धन, नाम का बड़ा राग होता है। जो नाम काया को मिला, वह काया के साथ ही खत्म हो जाता है फिर भी आदमी अपने नाम का राग करता है। कर्म के दो ही बीज हैं- राग और द्वेष। यह पर्युषण पर्व स्वयं के अन्तरशोधन के लिए आया है।
सात जगहों पर कभी न करें गुस्सा
संतप्रवर ने सत्संगप्रेमियों को प्रेरणा प्रदान करते कहा कि सात जगहों पर हमें कभी गुस्सा नहीं करना चाहिए। पहला- सुबह आंख खुलते ही। दूसरा- जब नास्ता या खाना खाने बैठे हों। तीसरा- जब घर से बाहर निकल रहे हों। चौथा- जब बाहर से घर में आएं हों। पांचवा- जब धार्मिक क्रिया कर रहे हों या मंदिर, उपाश्रय-स्थानक में हों। छठवा- जब अपने शयन कक्ष में प्रवेश कर रहे हों। सातवा स्थान वह है जहां व्यक्ति को गुस्सा बिलकुल भी नहीं करना चाहिए वह है- जब कोई व्यक्ति फोन पर हो तुम्हारे सामने ना हो। यदि फोन आपने किसी के प्रति गुस्सा किया तो वह व्यक्ति न जाने कितनी देर तक और कितनी ही बददुआएं तुम्हें देता रहेगा।
हृदय को करें शुद्ध और मन को करो कसायमुक्त
संतश्री ने कहा कि यह पर्युषण पर्व दो कार्यों के लिए आता है। पहला कार्य है- अपने हृदय को शुद्ध करना और दूसरा है स्वयं को कसाय से मुक्त करना। कसाय वह है जो हमें कसता है, बंधन में बांध लेता है। पर्युषण पर दूसरों पर अंगुली उठाने के लिए नहीं स्वयं पर अंगुली उठाने के लिए अर्थात् दूसरों को नहीं स्वयं को देखने का पर्व है।
सॉरी कहना हो तो आज-अभी कह दें, कल पर ना टालें
''पर्व क्षमा का आया है, हम गीत क्षमा के गाएं। हम क्षमाशील बन जाएं...'' इस प्रेरणास्पद गीत से श्रद्धालुओं को क्षमाशील बनने की प्रेरणा प्रदान करते हुए संतश्री ने कहा कि यदि किसी को अपनी गलती के लिए सॉरी कहना हो तो उसे कल पर कभी न टालना, आज और अभी ही उसे सॉरी कह देना। और जब किसी पर गुस्सा करना हो तो उसे जरूर कल पर टाल देना । अपने मन को निर्मल व प्रसन्न करना यह जीवन की सबसे बड़ी शांति और उपलब्धि है।
पर्युषण में करणीय हैं ये कार्य
संतश्री ने पर्युषण में करणीय कार्यों की चर्चा करते बताया कि अष्टान्हिका प्रवचन में भगवान ने हमें पर्युषण पर्व में करणीय कार्य बताए हैं। ये वे सद्गुण हैं जो हमें आत्मकल्याण की ओर अग्रसर करते हैं। वे हैं- जिनेन्द्र पूजा। दूसरा- गुरुजनों का सत्संग उनकी सेवा। तीसरा- अनुकम्पा दान। जीवों के प्रति अनुकम्पा करना। आप दो हाथों से देते हैं पर जब ऊपर वाला आपको देता है तो हजार हाथों से देता है। जो दानशील होता है भगवान उसे ही देता है और वो जब देता है-छप्पर फाड़कर देता है। सुबह योग करो और दिन में दूसरों का सहयोग करो। योग से तुम्हारा शरीर स्वस्थ होगा और सहयोग से तुम्हारी आत्मा तंदरुस्त होगी। चौथा करणीय कार्य है- गुणीजनों का अनुराग अर्थात् गुणानुरागी बनो। पांचवा है- श्रुतिराग अर्थात् पवित्र शास्त्र का श्रवण करो। महापुरुषों की वाणी आज हमारे पास केवल शास्त्र रूप में है। भगवान कहते हैं कि जो व्यक्ति एकाग्रचित्त होकर एक बार कल्पसूत्र का श्रवण कर लेता है तो उसकी नर्क गति टल जाती है। छठवां करणीय है- तपस्या। पर्युषण में हमें तपस्या जरूर करनी चाहिए। तपस्या हमारे तन-मन की समस्या को मिटाती है। नये कर्मों का बंध न हो इसके लिए संयम स्वीकारते हैं और पूर्वोपार्जित कर्मों की निर्जरा के लिए तपस्या करते हैं। सात दिनों तक एकासना, व्यासना ओर संवत्सरि को तेले का उपवास जरूर करना चाहिए। पर्युषण के दो खास कार्य और हैं, पहला है- आलोयणा अर्थात् प्रायश्चित्त और दूसरा- क्षमापणा । वर्षभर में किए हुए किसी भी प्रकार के दोषों की निवृत्ति के लिए आलोयणा यानि प्रायश्चित्त किया जाता है। इसमें व्यक्ति अपनी आत्मप्रज्ञा अपने विवेक के द्वारा यह प्रण करता है कि मैं अपने दोषों के लिए प्रायश्चित्त करता हूं।
शोभायात्रा के साथ आज वोहराया जाएगा गुरुदेव को कल्पसूत्र
श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली, ट्रस्टीगण तिलोकचंद बरड़िया, राजेंद्र गोलछा व उज्जवल झाबक ने संयुक्त जानकारी देते बताया कि गुरुवार की धर्मसभा में गुरु भगवंत को कल्पसूत्र अर्थात् पोथाजी वोहराने का सौभाग्य अशोकजी पूर्वेशजी तातेड़ परिवार भिलाई-रायपुर ने प्राप्त किया। लाभार्थी तातेड़ परिवार द्वारा गुरुवार रात्रि दादाबाड़ी में दादा गुरुदेव इक्तीसा पाठ के उपरांत प्रख्यात भजन गायक नमन डाकलिया-जैनम द्वारा प्रभु भक्ति कराई गई। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने शामिल होकर पुण्यार्जन किया। लाभार्थी तातेड़ परिवार कल शुक्रवार को प्रात: 8.30 बजे कल्पसूत्र को बाजे-गाजे व शोभायात्रा के साथ लेकर प्रवचन स्थल में पहुंचेंगे, जिनकी अगुवानी के उपरांत सूत्रजी गुरु भगवंत को वोहराया जाएगा। साथ ही पांच ज्ञान की पूजा के लाभार्थी परिवार क्रमश: मति- सम्पतराज पारख परिवार, श्रुत- श्रीमती चंदरीबाई भंवरलाल पुत्र टोडरमल, सुरेश, विजय एवं अजीत कांकरिया परिवार, अवधि- श्रीमती सुंदरबाई पारख-खूबचंदजी, मनमोहनचंद पारख परिवार, मन:पर्यव- चंदनमल पुत्र- प्रकाशचंद, माणकचंद, अशोक, राजेंद्रजी सुराना परिवार एवं कैवल्य ज्ञान की पूजा कराने के लाभार्थी श्रीमती पानीबाई आसकरणजी भंसाली परिवार द्वारा ज्ञान पूजा की जाएगी। आज धर्मसभा में बोली सत्र का संचालन वरिष्ठ सुश्रावक सुपारसचंद गोलछा द्वारा किया गया। श्रद्धालुओं को ज्ञानपुष्प भेंट करने के लाभार्थी पृथ्वीराज तालेड़ा परिवार का बहुमान किया गया।
तपस्वियों के एकासने के लाभार्थी हुए सम्मानित
दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरड़िया, महासचिव पारस पारख व प्रशांत तालेड़ा, कोषाध्यक्ष अमित मुणोत ने बताया कि आज धर्मसभा में अक्षय निधि, समवशरण, कसाय विजय तप के एकासने के लाभार्थी- हुकुमचंदजी अशोकजी पटवा परिवार, हस्तिमलजी गुलाबजी खेमराजजी बैद परिवार, गौतमचंदजी निलेशजी बोथरा परिवार, योगीलालजी वढेर परिवार का बहुमान किया गया। सूचना सत्र का संचालन चातुर्मास समिति के महासचिव पारस पारख ने किया। 21 दिवसीय दादा गुरुदेव इक्तीसा जाप का श्रीजिनकुशल सूरि जैन दादाबाड़ी में पिछले सोमवार से प्रतिदिन रात्रि साढ़े 8 से साढ़े 9 बजे तक जारी है।
आज के प्रवचन का विषय 'कल्पसूत्र एवं अंतकृत सूत्र की शिक्षाएं'
दिव्य चातुर्मास समिति के महासचिव प्रशांत तालेड़ा व कोषाध्यक्ष अमित मुणोत ने बताया कि शुक्रवार 26 अगस्त को पर्वाधिराज पर्युषण पर्व आराधना के तृतीय दिवस प्रात: ठीक 8.40 बजे से 'कल्पसूत्र एवं अंतकृत सूत्र की शिक्षाएं' विषय पर विशेष प्रवचन होगा। जिसमें सूत्र पर आधारित प्रवचन के श्रवण का पुण्यलाभ प्राप्त होगा। महिलाओं का पौषध आराधना हॉल सदरबाजार में एवं पुरुषों का पौषध व्रत दादाबाड़ी में किया जा रहा है। पर्युषण पर आंगी समिति सदरबाजार द्वारा प्रभु परमात्मा की प्रतिमाओं की मनोहारी आंगी सजाई सदर जैन मंदिर में सजाई जा रही है।