जीवन को राममय बनाना है तो रामायण से सीखो

Update: 2024-08-03 02:53 GMT

रायपुर raipur news। दादाबाड़ी में चल रहे आत्मस्पर्शी चातुर्मास 2024 के प्रवचन श्रृंखला में शुक्रवार को दीर्घ तपस्वी विरागमुनि जी Viragmuni ji ने कहा कि जीवन को राममय बनाना है तो राम के आदर्शों को अपने जीवन में उतारना होगा, लक्ष्मण से सीखना होगा भाई के प्रति समर्पण, माता सीता से सीखना होगा उनका त्याग और रावण से सीखना होगा उनकी बेजोड़ अडिगता। वैसे ही हमें शिवाजी की माता जीजाबाई से भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है। शिवाजी जब अपनी माता के गर्भ में थे तो उस समय भारत में मुगल शासक औरंगजेब का शासन हुआ करता था। जीजाबाई औरंगजेब का मुकाबला करना चाहती थी और उसका शासन खत्म करना चाहती थी। वह अपने गुरु के पास जाती है और उनसे कहती है कि औरंगज़ेब का अत्याचार लगातार बढ़ता जा रहा है और मैं इसे खत्म करना चाहती हूं क्योंकि यह मुझसे देखा नही जा रहा है। गुरुजी मैं क्या कर सकती हूं, मुझे बताओ मैं तन-मन-धन से जो कर सकती हूं करूंगी। गुरु ने कहा अभी तुम गर्भवती हो तुम अभी कुछ मत करो लेकिन तुम्हारी आने वाली संतान को तैयार करो कि वह इस कुशासन से लड़ सके और इस अत्याचार को खत्म कर सके। जीजाबाई कहती है कि वह कैसे होगा। गुरु ने बोला कि तुम्हारे पास अभी 9 महीने हैं और इन महीनों में तुम मेरे पास आना मैं तुम्हें रामायण का पाठ सुनाऊंगा जिससे कि आने वाली तुम्हारी संतान वीरता और अदम्य साहस के साथ जन्मेगा। क्योंकि रामायण में राम का चरित्र अगर तुम्हारी संतान की शिक्षा में आ गया तो वह तुम्हारे सपने को आसानी से पूरा कर लेगा।

मुनिश्री कहते हैं कि आज तो दो-तीन साल के बच्चों को प्ले स्कूल में डाल दिया जाता है ताकि माता-पिता का बोझ कम हो जाए। बाद में वही बच्चा जब आपको बोझ समझेगा और आपको छोड़कर जाएगा तो आप पर क्या बीतेगी यह आप समझ लीजिए। वह कहेगा कि आपको तो अकेले रहना पसंद है तो अब रहिए। बच्चों को पढ़ने के लिए भी बाहर नहीं भेजना चाहिए क्योंकि फिर उन्हें बाहर की दुनिया अच्छी लगने लगती है। वहां ना कोई रोक-टोक होती है ना कोई देखने वाला होता है, बच्चा अपने मन की करता है और जब वह घर आता है तो उसे घर की बंदिशें पसंद नहीं आती है। तो बाहर भेज कर बच्चों को पढ़ाने की प्रथा बंद कीजिए क्योंकि ऐसा करके आप अपने कुल को बर्बाद कर रहे हैं।

माता-पिता के कर्तव्यों की बात बताते हुए मुनिश्री कहते हैं कि आज आत्मकल्याण के लिए बच्चों के साथ कोई नहीं बैठता है। बच्चों की पढ़ाई करने आप भले ही एक-दो घंटा उसके साथ बैठ जाएंगे लेकिन आत्मकल्याण के लिए नहीं। चातुर्मास के दौरान चल रही रविवारीय संस्कार शिविर में आज आप बच्चों को भेज रहे हैं लेकिन उनकी उपस्थिति हफ्ते भर नहीं होती है, यह चिंता का विषय है। आज लाखों-करोड़ों रुपए लोग खर्च कर रहे हैं, बच्चों को बाहर पढ़ने भेज रहे हैं लेकिन अगर बच्चों के अंदर संस्कार नहीं आता तो आपका करोड़ों रुपए किसी काम का नहीं है। अगर आपके बच्चों में संस्कार आ गया तो सूखी रोटी खाने में भी आपको मजा आ जाएगा।

आत्मस्पर्शी चातुर्मास समिति 2024 के अध्यक्ष पारस पारख और महासचिव नरेश बुरड़ ने बताया कि दादाबाड़ी में 8 अगस्त से 21 दिवसीय दादा गुरूदेव इकतीसा शुरू होने जा रहा है, जो 29 अगस्त तक चलेगा। गुरूवार, 8 अगस्त को सुबह 8 बजे गुरू प्रतिमा, कलश, अखंड दीपक एवं तोरण स्थापना होगी और प्रतिदिन रात 8.30 से 9.30 बजे तक गुरू इकतीसा जाप होगा। साथ ही प्रतिदिन 6 ड्रॉ निकाले जाएंगे, जिसमें 5 ड्रॉ के साथ 1 गोल्ड कॉईन बम्पर ड्रॉ होगा।

आत्मस्पर्शी चातुर्मास समिति 2024 के प्रचार प्रसार संयोजक तरुण कोचर और निलेश गोलछा ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि दादाबाड़ी में प्रतिदिन सुबह 8.45 से 9.45 बजे मुनिश्री की प्रवचन श्रृंखला जारी है, आप सभी धर्म बंधुओं से निवेदन है कि जिनवाणी का अधिक से अधिक लाभ उठाएं।

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