ठोकरें खाकर भी ना संभले तो मुसाफिर का नसीब, वरना पत्थरों ने तो अपना फर्ज निभा दिया है

Update: 2022-05-20 04:32 GMT

ज़ाकिर घुरसेना/ कैलाश यादव

द कश्मीर फाइल्स से कश्मीरियों को फायदा पहुंचा हो ऐसा तो नहीं दिख रहा है, लेकिन राजनीतिज्ञों ने जरूर जमकर फायदा उठाया है। कश्मीरी पंडित राहुल भट्ट की हत्या के बाद कश्मीरी पंडितों के हितों की रक्षा का संकल्प लेने वालों को विरोध का सामना करना पड़ा। अब सवाल ये उठता है कि अब कश्मीर केन्द्र सरकार के अधीन होने के बाद भी इतनी हत्याएं क्यों हो रही है? पहले सेना के जवान पुलिस और अब आम कश्मीरियों की हत्या हो रही है। हत्या के विरोध में सामूहिक इस्तीफा देते हुए प्रधानमंत्री पैकेज के तहत बसाये गए कर्मचारियों ने साफ कर दिया कि जब तक उनको उचित सुरक्षा मुहैया नहीं करवाई जाती, वो अपना आंदोलन जारी रखेंगे। बडगाम में कश्मीरी पंडितों ने प्रदर्शन किया, उन्हें समझाने के बजाए उन पर पुलिस को आंसू गैस के गोले दागने पड़े, और लाठी चार्ज कर उनको भगाया गया। कुछ को गिरफ्तार भी किया गया। बीजेपी नेताओं को भी विरोध का सामना करना पड़ा। कश्मीरी पंडितों ने भाजपाइयों के सामने ही पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के खिलाफ नारेबाजी की। जब मृतक ने असुरक्षित बता कर सुरक्षा की मांग की और अपना तबादला चाहा तो क्यों नहीं किया। शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा कि सरकार कड़े फैसले लेना छोड़ अपने फायदे के बातों पर ही ध्यान दे रही है और जनता ठोकर खा रही है। सरकार का कहना है हम अपना काम कर रहे है। समस्या का हल इससे नहीं होगा बल्कि जनता का ध्यान जरूर बांटा जा सकता है। किसी ने इस पर ठीक ही कहा है कि ठोकरंे खाकर भी ना संभले तो मुसाफिर का नसीब, वरना पत्थरों ने तो अपना फर्ज निभा दिया है।

चुनाव से पहले राजनीतिक दलों का शक्ति प्रदर्शन

छत्तसीगढ़ में भले ही चुनाव डेढ़ साल बाकी है लेकिन प्रदेश दो प्रमुख पार्टियों के साथ जोगी कांग्रेस की जगह लेने आमआदमी पार्टी ने सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। वहीं सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी भाजपा-आप सहित सभी छोटे-मोटे राजनीतिक पार्टियों को छत्तीसगढ़ में जमीन पर पैर रखने की जगह नहीं देने के लिए 90 विधानसभा में भेंट मुलाकात की शुरूआत कर सभी राजनीतिक दलों को चुनाव से पहले ही चारों खाने चित कर दिया है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि छत्तीसगढ़ में कका है तो कोनो सत्ता के तरफ झांक नहीं सके। भूपेश बघेल ने ऐसी राजनीतिक ेकिले बंदी की है कि सारे राजनीतिक पार्टियां अभिमन्यु बन जाए तो भी चक्रव्यूह को कोई भेद नहीं सकेगा।

फीस कमेटी बनी

आखिर कार प्रदेश के निजी मेडिकल और इंजीनियरिंग कालेजों में मनमानी फीस नहीं वसूली जा सकेगी जिसके लिए फीस कमेटी बनी है।फीस कमेटी पिछले दो साल से बनाने की कवायद की जा रही थी, अब ले-देकर बनी है। जनता में खुसुर-फुसर है कित पिछले कई सालों से जो मनमाना फीस वसूला है क्या उसे वापस कराएंगे।

अपराध रोकना है तो पुलिस को करो फ्री हैंड

शहर में हो रहे लूट, डकैती, चोरी, छिनताई, दुष्कर्म को रोकने के लिए थानेदारों को बदला जा रहा है। सवाल उठता है कि क्या थानेदारों की जगह बदलने से अपराध रूक जाएगा। जिस थानेदार को दूसरे जगह भेजा इसलिए भेजा गया कि उनके थाना क्षेत्र में अपराध नियंत्रित नहीं हो रहा था, क्या नए थानेदार के आने से वहां का अपराध बंद हो जाएगा। और जो यहां से गया है उसके क्षेत्र में अपराध बढ़ जाएगा। यदि पुलिस ठान ले तो शहर में गुंडागर्दी एक दिन में लगाम लगा सकती है। लेकिन उसके लिए उन्हें फ्री हैंड करना होगा, साथ ही राजनीतिक दखलंदाजी पूरी तरह बंद करनी होगी। क्योंकि सबसे ज्यादा अपराधी सिफारिशी ही होते है। जो छुटभैया नेताओं के आड़ में अपराध को अंजाम देते है।

कांग्रेस-भाजपा में चल रहा हार्दिक-बौद्धिक का खेल

देश की राजनीति अब गंभीरता और जनसेवा की जगह तमाशा का रूप ले लिया है। कांग्रेस छोड़कर जाने वाले को बौद्धिक कहा जाने लगा है और जो कांग्रेस में जमे हुए है उन्हें हार्दिक कहा जा रहा है। अभी तो गुजरात चुनाव होने की आहट से इतने सारे हार्दिक और बौद्धिक मिलेंगे कि पार्टी में जगह ही नहीं बचेंगी। हर पार्टी को अपने कार्यालय में लिखना पड़ेगा कि पहले आएं पहले पाएं, जगह मिलने पर ही साइड दी जाएगी जैसे ट्रकों के पीछे लिखा रहता है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि अभी तो शुरूआत आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में तो हार्दिक और बौद्धिक की बरसात होने वाली है। तब इसे कौन सी पार्टी इस बाढ़ के रूख को सत्ता में बदलने की ओर मोड़ेगी यह देखना होगा।

सरकारी अफसरों का घूस लेते वीडियो का नया जमाना

भूपेश सरकार जहां एक तरफ जनता जनार्दन की दु:ख पीड़ा कम करने 90 विधानसभा में साढ़े तीन साल में सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की समीक्षा कर रहे है वहीं कोताही बरतने वालों को सीएम भूपेश खुद निलंबित कर रहे, उसके बाद भी राज्य के जिलों में उच्च पदस्थ अधिकारियों की मनमानी और हेकड़ी के साथ घूस लेते वीडियो वायरल हो रहा है। इस मामले में डिप्टी कलेक्टर अनुराधा अग्रवाल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि मुझ पर लगाया गया आरोप बेबुनियाद है, इसे कांट-छांट एडिटिंग कर मेरी छवि धूमिल करने वीडियो वायरल किया गया है। इससे मेरा कोई लेना देना नहीं है। जनता में खुसुर -फुसुर है कि जो है नाम वाला वही तो बदनाम है। मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है वाला गाना यहां पूरी तरह चारितार्थ हो रहा है। वहां के कुछ छुटभैया नेताओं सरपंच-उपसरपंच सचिव काम निकलवाने दबाव बनाने इस तरह की अधिकारी का वीडियो बनाकर दबाव तो नहीं बना रहे है?

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