जी चाहता है सच बोलें, क्या करें हौसला नहीं होता...

Update: 2022-04-15 05:02 GMT

ज़ाकिर घुरसेना/ कैलाश यादव

सच बोलना या सच के साथ खड़े रहना आज के वक्त में जिगर वालों का काम हो गया है। जिधर देखो सच लिखने और बोलने वाले पत्रकार परेशान किये जा रहे हैं। योगी सरकार में मिड डे मील में रोटी और नमक की खबर चलाने पर एक पत्रकार को जेल का रास्ता दिखलाया था। साथ ही उत्तरप्रदेश में ही पेपर लीक मामले को उजागर करना पत्रकार दिग्विजय सिंह को भारी पड़ गया था। वहीँ अब मध्यप्रदेश में शिवराजसिंह के विधायक के खिलाफ खबर छापना सीधी के पत्रकार तिवारी को भारी पड़ गया यानी सरकार का सीधा सन्देश है कि सरकार के खिलाफ लिखने वाले किसी को भी बख्शा नहीं जायेगा। चाहे वह पत्रकार ही क्यों न हो। मध्यप्रदेश के सीधी जिले की पुलिस ने थाने में पत्रकारों के कपडे उतारकर जो अपनी छवि पेश की है यह शर्मनाक है। इसकी जितनी निंदा की जाये कम है। सिर्फ एक सत्ताधारी दल के विधायक के खिलाफ लिखने मात्र से मध्यप्रदेश की पुलिस इतनी बौखला गई या किसी के दबाव में बौखलाई थी कि प्रजातंत्र के चौथा स्तम्भ की ही दुर्गति कर दी। उन्हें किसी बात का डर भी नहीं है क्योकि उनके आका बैठे हैं जो उन्हें जरूर बचा लेंगे जिनको खुश करने के लिए ही ऐसा किया गया था। मध्यप्रदेश पुलिस ने सुको के न्यायाधीश द्रारा एक फैसले में लिखे शब्द को अक्षरश: चरितार्थ कर दिखाया। उन्होंने पुलिस के लिए अपने एक फैसले में लिखा था कि-ये वर्दी के पीछे छिपा अपराधियों का संगठित गिरोह है जिस पर लगाम कसने के लिए देश की न्यायपालिका को और भी सख्त होने की जरुरत है। राजनीतिक दल के आका पुलिस को अपने जरुरत के मुताबिक विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल करती है चाहे ये राजनितिक विरोधी हो या कलम वाले विरोधी। इस घटना से जाहिर होता है कि अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने के लिए पुलिसवाले किस हद तक जा सकते हैं. पुलिस के इस भयावह बर्ताव की घटना मीडिया की सुर्खियां बनने और देश के तमाम पत्रकार संगठनों द्वारा इसकी तीखी निंदा किये जाने के बाद राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी सरकार की इज्जत बचाने के लिए भले ही कुछ पुलिसकर्मियों को निलंबित करने की लीपापोती की है। इसी बीच छत्तीसगढ़ उपचुनाव प्रचार में पहुंचे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का भी किसी पत्रकार ने बहिष्कार किया और न ही इस विषय पर किसी ने कोई सवाल पूछा । मजे की बात है कि पत्रकार को थाने में कपडे उतरवाकर इस तस्वीर को थाने से ही वायरल कराया गया है। किसके इशारे पर ये सब किया गया। लोग इस तस्वीर को लेकर कह रहे हैं कि इस तस्वीर में मध्यप्रदेश की नंगी कानून व्यवस्था साफ दिख रही है। हद तो तब हो गई जब थानेदार ने इस मामले पर सफाई देते हुए कहा कि पकड़े गए लोग पूरे नग्न नहीं थे। सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें हवालात में डालने से पहले अंडरवियर में इसलिए रखते हैं ताकि कोई व्यक्ति अपने कपडो से खुद को फांसी ना लगा ले। इन सब घटनाओं और हालात को देखते हुए मशहूर शायर डॉ बशीर बद्र की एक शेर याद आया-जी चाहता है सच बोलें, क्या करें हौसला नहीं होता।

नीबू-मिर्ची पर मुनाफाखोरों की नजर

सबको नजर से बचाने वाले नीबू और मिर्ची पर मुनापाकोरों की नजर लग गई है। लगे भी क्यों नहीं जब राशन, दवाई,तेल, गैस, पेट्रोल डीजल सब पर मुनाफाखोरों की नजर है तो खरबूजा को देख कर खरबूजे ने रंग बदल दिया तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है। दलाल किसानों से 7 रुपए किलो नीबू खरीदकर 10 रुपए में एक नीबू बेच रहे है। मार्केट से नीबू और मिर्ची गायब हो गए है। छत्तीसगढ़ के बाजारों में नीबू की कीमतों में उछाल के बाद किसानों को तो बढ़े दामों का फायदा नहीं मिला अलबत्ता दलालों ने कोरोनाकाल की याद ताजा कर दी है। उस दौर में भी दलालों ने खूब चांदी काटी, अब भीषण गर्मी में लोगों की जरूरतों पर भी डाका डालना शुरू कर दिया है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि ये लोग नजर को नजरबंद करने वाले है। दुकानों कों बुरी नजर से बचाने के लिए हर शनिवार और मंगलवार को नीबू-मिर्ची टांगा जाता है। जबकि दैनिक उपयोग में रोज आता है। दलालों के मुंह में कोरोनाकाल काल का खून अब तक सूखा नहीं है। मौका मिलते ही लोगों की जेब में नजर लगा देते है।

चुनाव या पसंद

प्रदेश में 21 अगस्त से 20 सितंबर के बीच पीसीसी अध्यक्ष चुनाव होने के संकेत मिल रहे है। प्रदेश में नवंबर 2021 में सदस्यता अभियान की शुरूआत हुई थी, पीसीसी ने दस लाख सदस्य बनाने का टारगेट रखा था, लेकिन डिजिटल सदस्यता अभियान शुरू होने के बाद यह आंकड़ा दस लाख से पार हो गया है। कांग्रेस संगठन से जुड़े लोगों का कहना है कि सदस्यता अभियान अभी खत्म नहीं हुआ है। अभियान खत्म होने तक यह आंकड़ा 19 लाख के करीब पहुंच सकता है। 15 अप्रेल को सदस्यता अभियान खत्म होने के बाद 25 अप्रैल के बीच सदस्यों की सूची प्रकाशित की जाएगी। इसके बाद ब्लाक अध्यक्षों के चुनाव शुुरू होंगे। चुनाव अब 30 अप्रेल से शुरू होंगे। 10 जुलाई से 20 अगस्त तक पीसीसी का सामान्य सभा चुनी जाएगी। 21 अगस्त से 20 सितंबर के बीच पीसीसी अध्यक्ष का चुनाव होगा। जनता में खुसुर-फुसर है कि प्रदेश में कांग्रेस सरकार है तो सभी कांग्रेसी हो गए है। सदस्यता के आंकड़े मायने नहीं रखते लोग स्वत: ही कांग्रेस जुड़ गए है। वैसे भी कांग्रेस में पीससी अध्यक्ष के चुनाव प्रत्यक्ष रूप से कहां होते है जो सीएम की पसंद आ गया वो पीसीसी अध्यक्ष बन जाता है। अब मोहन मरकाम पर डिपेंड करता है कि वो बांसुरी से कितना भूपेश राग में बजाए है, अगर राग पसंद आया होगा तो सब कुछ ठीक ही होगा। नहीं तो मान कर चलिए कका की वक्रदृष्टि से कोई भी कांग्रेसी बच नहीं पाया है।

कर्ज पर फिर घेरा रमन ने

कर्ज लो और घी पियो राजनीति की दस्तूर और वक्त का तकाजा माना जाता है। जो सरकार कर्ज न ले तो उसे सरकार ही नहीं माना जाता। इसलिए हर सरकार को कर्ज लेकर लोगों को बताना पड़ता है कि हमारी सरकार है। पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमनसिंह वर्तमान मुख्यमंत्री के कर्ज को लेकर चिंतित नजर आ रहे है। अब चिंता सत्ता की दौड़ से पिछडऩे का है या प्रदेश में अकेले पड़ जाने का है, ये तो वो ही जाने। डा. रमनसिंह ने कहा कि हमारी सरकार ने 15 सालों में सिर्फ 39 हजार कोरड़ कर्ज लिया था, जबकि कांग्रेस सरकार ने साढ़े तीन साल में ही 81 हजार करोड़ कर्ज लिया और इस कर्ज का ब्याज प्रतिवर्ष 12 हजार करोड़ जमा करना पड़ रहा है। जो आर्थिक दिवालियापन है। कर्ज लेना बुरी बात नहीं है, विकास कार्य के लिए कर्ज लिए जाते है, मैं भी बोल रहा हूं कि सरकार कर्ज ले, लेकिन ऐसी योजनाओं के लिए जिससे लोगों का भला हो सके। जनता में खुसुर-फुसर है कि वाह डाक्टर साहब आपने जनता के लिए भला करने 400 करोड़ का प्लाई ओव्हर बनाया जो आज तक किसी के काम नहीं आया। एक तरह कहते है कर्ज में डूबी है सरकार और दूसरी तरफ कहते है कर्ज लेना बुरी बात नहीं है। क्या आपने कर्ज लेने से पहले सोचा था कि आपके जाने के बाद जनता पर कितना कर्ज होगा। डबल गेम खेलना बंद करो रमन साहब फिर चुनाव आने वाला है। आप कर्ज का हिसाब क्योंं नहीं मांगते, आपको डर लगता है कि आपसे भी हिसाब पूछा जा सकता है।

आईपीएल की तरह कलेक्टर -एसपी का आक्शन

पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमनसिंह ने भूपेश बघेल पर निशाना साधते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में कलेक्टर-एसपी की पोस्ंिटग के लिए आक्शन हो रहा है। कोरबा कलेक्टर के लिए सबसे बड़ी बोली लगती है। सरगुजा को जानबूझकर दो शीर्ष नेताओं ने अघोषित युद्धभूमि बना दिया है, विकास की बांट जोहते सरगुजा को साढ़े साल निकल गए मगर इन दोनों नेताओं की लड़ाई खत्म नहीं हो पाई जिसके कारण सरगुजा अपनी बदहाली का आंसू बहा रहा है। जनता में खुसुर-पुसुर है कि डाक्टर साहब आपने तो 15 साल तक आक्शन पर काम किया है। सीधे योग्यता के आधार पर कहां किसी की नियुक्ति हुई। आपने तो रायपुर पर पूरा ध्यान केंद्रीत कर रखा था, बस्तर सरगुजा पर ध्यान अब रख रहे है, उस समय रखते तो आज फिर आप सत्ता में होते। आपने ही प्रदेश में अफसरशाही को बढ़ावा दिया, उसी के नक्शे कदम पर हर सरकार को चलना मजबूरी है। सरकार तो आती-जाती है पर अफसरों का 30 साल तक टिके रहना तय है, नहीं तो अफसर बाजी पलटने में देर नहीं करते।

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