खाल, अंगों की तस्करी के लिए जानवरों का शिकार
शिकारियों को बरसों से अड्डे मालूम लेकिन अधिकारियों को भनक नहीं, वन विभाग अवैध शिकार रोक पाने में नाकाम
वन विभाग की प्लानिंग सफ़ेद हाथी साबित हो रहा
राजनांदगांव जिले में मादा तेंदुए को मार दिया गया,अधिकारी सिर्फ अफ़सोस जाहिर कर अपने कर्तव्य का कर रहे इतिश्री
वन विभाग बेखबर, कब जागेगा अपने मूल कर्तव्य को पूरा करने
जंगल में अवैध शिकार रुकने का नाम नहीं ले रहा
ज़ाकिर घुरसेना
रायपुर। प्रदेश के जंगल में अवैध शिकार का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। वन्यप्राणी अधिकारीयों की लापरवाही से अकाल कल की गाल में समां रहे हैं। मूक वन्यप्राणियों का कोई सुध लेने वाला नजऱ नहीं आ रहा है। इस सम्बन्ध में अधिकारियों से चर्चा करने पर अफ़सोस जता कर इतिश्री कर लेते हैं। मूक पशुओ का अवैध शिकार का सिलसिला कब तक चलेगा वन्यप्राणियों का अवैध शिकार कब रुकेगा अधिकारी बता नहीं पा रहे हैं। वन विभाग अपने कत्र्तव्य के प्रति लापरवाह नजऱ आ रहे हैं। लापरवाही का ये आलम है कि कोई इस बारे में ठोस जवाब नहीं दे पा रहे हैं। इस सम्बन्ध में कोई ठोस कार्ययोजना नजऱ नहीं आती। कल राजनांदगाव जिले के खैरागढ़ वन मंडल के अंतर्गत गंडई वन परिक्षेत्र के गांव मगरकुंड में एक मादा तेंदुए का शिकार तस्करों ने कर लिया। तस्करों ने उसके सामने के दोनों पैरों को काट लिया इतना ही नहीं तेंदुए के मुँह से पूरे दांत व उसके मूछ भी काट कर ले गए। वन विभाग के हरकत में आते तक देर हो चुकी थी हांलाकि तीन तस्करों को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ कर रही है। लेकिन उन्होंने अपना जुर्म कुबूल नहीं किया है। तस्करों ने बेदर्दी से तेंदुआ के जिस्म के अवशेष काट कर ले गए हैं। जिले से वेटनरी डाक्टरों की टीम भी मौके पहुँच कर परिक्षण किया जिसमें ज़हर देकर मारा गया की करंट से उक्त मादा तेंदुए को मारा गया है इसकी पुस्टि होना बाकी है। जिस प्रकार मृत तेंदुए के विभिन्न अंगों को शिकारी ले गए हैं उससे लगता है कि वन्य प्राणियों के तस्करों का गिरोह का हाथ इस घटना में हो सकती है। वन्य प्राणियों के संरक्षण और संवर्धन के नाम पर करोड़ों रूपये खर्च किया जाता है लेकिन अवैध शिकार को नहीं रोक पाने की स्थिति में सब बेकार है। वन विभाग द्वारा जंगलों में लाखों करोड़ों खर्च करके वाच टावर लगाया गया है जो पूरी तरह से नाकाम साबित हो रहा है। वाच टावर लगाने मात्र से वन्यप्राणियो की रक्षा नहीं होगी बल्कि सतत निगरानी करनी होगी। तब जाकर अवैध शिकार रोका जा सकता है सिर्फ कमरे में बैठ कर कागजी करवाई करने से अवैध शिकार नहीं रुक सकता। वन्यप्राणियों औसतन हर दिन वन्य प्राणी का शिकार किया जा रहा है। कभी करंट लगाकर तो कभी ज़हर देकर तो कभी फंदे का प्रयोग कर अवैध शिकार किया जा रहा है। वन अधिकारी और कर्मचारियों का खौफ लोगों के दिलो से हटते जा रहा है।
विपक्ष भी चुप्पी साधे हुए है एक के बाद एक वन्यप्राणियों शिकार हो रहा है इस मामले विपक्ष भी कुम्भकर्णी नींद में नजऱ आ रही है। अधिकारीयों की लापरवाही साफ नजऱ आती है लेकिन विपक्ष की चुप्पी समझ से परे है। वन मंत्री मोहम्मद अकबर के विधानसभा क्षेत्र के जिले के अंतर्गत सहसपुर लोहरा वन प्रक्षेत्र का है जहाँ भठेला टोला परिसर के कक्ष क्रमांक 305 में 15 फऱवरी को एक मादा तेंदुआ का शव मिला था जिसे करंट लगाकर मारा गया था। अब प्रदेश पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के विधानसभा जिले के अंतर्गत फिर अवैध शिकार कर मादा तेंदुए को मर कर उसे विभिन्न अंग तस्कर ले गए और क्षेत्र के नेता चुप है। इसके आलावा रोजाना वन्यप्राणियों का शिकार किया जा रहा है। प्रदेश के तेज तर्रार वन मंत्री मोहम्मद अकबर के इलाके का और पूर्व मुख्यमंत्री के विधानसभा जिले का ये हाल है तो प्रदेश के अन्य इलाकों का क्या हाल होगा अंदाजा लगाया जा सकता है। सूत्रों से पता चला है कि अफसरशाही अभी भी पुराने सरकार की कार्यप्रणाली के अनुसार ही चल रहा है। जंगलों में करंट लगाया जा रहा है,ज़हर दिया जा रहा है तथा फंदा लगाकर अवैध शिकार किया जा रहा है और वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारियों को इसकी भनक तक नहीं लग रही है। लगातार शिकारियों का हौसला बढ़ते जा रहा है । प्रदेश में पिछले एक साल में काफी तादात में वन्यजीवों का शिकार हुआ है।
वन्य ग्रामो को अन्यत्र बसाना होगा
वन क्षेत्रों में इंसानी बसाहट भी काफी हद तक इसका जिम्मेदार है। अक्सर देखा गया है की वन्यग्रामो के आसपास के लोग तस्करों से मिलकर इस काम को अंजाम देते हैं क्योंकि उनको जंगल की भौगोलिक स्थिति की भलीभांति जानकारी होती है। वनग्रामों को जब तक हटाया नहीं जायेगा तब तक शिकार पर प्रतिबंध लगना टेड़ीखीर साबित होगी । अधिकारी कमरे में बैठकर सिर्फ कार्य योजना बनाते है। जब तक उस कार्य योजना को धरातल पर उतरा नहीं जायेगा तब तक अवैध शिकार नहीं रुक सकता। अधिकारियों को जमीनी स्तर पर उतरना होगा तब जाकर अवैध शिकार रोका जा सकता है। पर सवाल ये उठता है कि जब तक अवैध शिकारियों पर शिकंजा नहीं कसा जाएगा सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा। अवैध शिकार पर कठोर कानून बने वन्य प्राणियॉं के अवैध शिकार पर कठोर कानून बनना चाहिए तब जाकर अवैध शिकार रोका जा सकता है।
आखिर सवाल उठता है कि इन दुकानदारों को वन्यप्राणियों के प्रतिबंधित अंग क्यों और कैसे मिल जाता है। क्या इनका कोई गिरोह जंगल में काम कर रहा या जंगल विभाग से मिली भगत है। इसकी गंभीरता से जांच किया जाए तो चौकाने वाले तथ्य सामने आ सकते है।
अधिकारी इस मामले में गंभीर नहीं
इस सम्बन्ध में वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक( वन्यप्राणी) पी वी नरसिम्हा राव से मोबाइल पर चर्चा हुई उन्होंने बताया कि रिपोर्ट मंगवाया है रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ कह पाउँगा। उन्होंने यह भी कहा कि अवैध शिकार की जानकारी मुझे मिली है। जाँच करवाते हैं। उनके जवाब से ऐसा लगता है की वन्यप्राणियों के अकाल मौत के प्रति विभाग गंभीर नहीं है। अधिकारी मैदानी इलाके में जाने से बच रहे हैं नतीजन वन्यप्राणी अकाल काल के गाल में समा रहे हैं अधिकारी अपने कार्य में गंभीर लापरवाही बरत रहे हैं तभी तो रोजाना वन्यप्राणियों को मारा जा रहा है। जब कभी इस बारे में चर्चा की जाती तो विभाग द्वारा किये जा रहे कामो का ब्यौरा दिया जाता है। जबकि हकीकत में विभाग काम फिसड्डी नजऱ आता है। वन्यप्राणियों के अवैध शिकार पर वनमंत्री को संज्ञान लेकर तत्काल इस पर करवाई करना होगा तब जाकर अवैध शिकार पर लगाम लगाया जा सकता है। साथ ही वन्य ग्रामों की अन्यत्र बसाहट पर भी गंभीरता से विचार करना चाहिए। वर्ना वन्यप्राणी शिकारियों के हाथों ऐसे ही मारे जाते रहेंगे।
कहीं अधिकारी और कर्मचारियों की मिलीभगत तो नहीं?
जिस प्रकार से रोजाना अवैध शिकार हो रहा है ऐसा महसूस होता है कि कहीं इसमें वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की मिली भगत तो नहीं? अवैध शिकार की आग ऐसी लगी है कि वन्यप्राणियों को जान बचाने का भी मौका नहीं मिल रहा है। विभागीय अधिकारी अवैध शिकार कैसे रोकें इस पर कागजी कार्ययोजना बना रहे है, लेकिन वन्य प्राणियों का जीवन सुरक्षित नहीं हो सका। लगातार शिकारी और तस्करों के जंगल में अनाधिकृत हस्तक्षेप वन्य जीवों के लिए मौत का फरमान बन चुका है।फऱवरी माह में एक बाघ और लगभग आधा दर्जन तेंदुए का शिकार हो चूका है इतना होने के बावजूद अधिकारियों कान में जूं नहीं रेंग रही है।
वन्य प्राणियों के प्रतिबंधित अंग आसानी से उपलब्ध
गोलबाजार रायपुर स्थित गुप्ता की दो अलग-अलग दुकान से तकरीबन दस करोड़ रुपये कीमती वन्यजीवों के अंग बरामद किए गए थे। इसमें हैदराबाद की फारेंसिंक लैब में जांच भी हो गई है। इसमें एक दुकान में मिले वन्यजीवों के अंग सही पाए गए हैं।कमोबेस यही स्थिति पुरे छत्तीसगढ़ की है जड़ी बूटियों की दुकानों में वन्यजीवो के प्रतिबंधित अंग आसानी से मिल जाते हैं। आखिर ये इनके पास आते कहाँ से हैं। किसी एजेंसी से जाँच कराये जाने पर वनजीवों के अंगों के खरीद फरोख्त में कहीं न कहीं विभाग के अधिकारी कर्मचारी की संलिप्तता नजऱ आएगी। बिना उनके मदद के शिकार कैसे किया जा सकता है? रिपोर्ट आने के बाद भी वन विभाग द्वारा कार्रवाई नहीं करना इस बात का धोतक है । वन विभाग के सूत्रों से जानकारी मिली है कि गोलबाज़ार रायपुर स्थित दुकान भाजपा नेता के भाई की है। यह भी देखा गया है कि रायपुर ही नहीं अधिकतर जगह जड़ीबूटी के नाम पर वन्य प्राणियों के प्रतिबंधित अंग नकली और असली दोनों बेचा जा रहा है।
शिकार की जानकारी मुझे भी मिली है। रिपोर्ट मंगवायी है , रिपोर्ट आने के बाद कुछ कह पाऊंगा। मामले में कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
पीवी नरसिम्हाराव,
प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी)
वन्य जीवों का अवैध शिकार चिंता का विषय सरकार को इस पर त्वरित कार्रवाई कर दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करें।
मो. फिरोज,
वन्य एवं पर्यावरण प्रेमी