रायपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने कोंडागांव पॉक्सो कोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें 21 वर्ष की उम्र पार कर चुके सामूहिक दुष्कर्म के दोषी को वयस्क जेल में भेजने का आदेश दिया गया था। कोर्ट ने नरम रुख अपनाने से इनकार करते हुए स्पष्ट किया कि ऐसे अपराधियों के प्रति रियायत समाज के लिए खतरा हो सकती है। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु ने पॉक्सो कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए दोषी को वयस्क जेल में स्थानांतरित करने का आदेश बरकरार रखा। याचिकाकर्ता की रिहाई ‘सकारात्मक सुधारात्मक प्रगति रिपोर्ट’ के आधार पर मांगी गई थी, जिसे कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि ऐसे जघन्य अपराधों में नरमी बरतने से समाज में इसी तरह के अपराधियों को प्रोत्साहन मिल सकता है। कोर्ट का मानना है कि कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए गंभीर अपराधों में कठोर सजा आवश्यक है।
यह मामला 2017 का है, जब एक 18 साल से कम उम्र के किशोर और पांच अन्य सह-आरोपियों पर सामूहिक दुष्कर्म का आरोप लगा था। नारायणपुर किशोर न्याय बोर्ड ने दोषी की आयु और अपराध की गंभीरता को देखते हुए उसका मामला पॉक्सो कोर्ट में स्थानांतरित किया था। पॉक्सो कोर्ट ने 2019 में उसे 20 साल की सजा और एक लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई।
जब दोषी की उम्र 21 वर्ष पूरी हुई, तब उसे किशोर गृह से केंद्रीय जेल, जगदलपुर स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया। दोषी ने इस निर्णय के खिलाफ सुधारात्मक प्रगति का हवाला देकर हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने उसकी प्रगति रिपोर्ट का अवलोकन किया, जिसमें दोषी के व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन दिखने की बात कही गई थी। इसके बावजूद कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए उसे रिहा करने का आदेश देने से इंकार कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसे गंभीर अपराधों में दोषियों के प्रति नरम रुख अपनाया गया, तो यह कानून और समाज के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है।