बीमा कंपनी को हाईकोर्ट ने लगाई फटकार, 6 फीसदी ब्याज के साथ 8 लाख मुआवजा देने के निर्देश
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दो वाहनों के बीच हुई दुर्घटना में मुआवजा आवेदन को अस्वीकार करने के अभिकरण के आदेश को निरस्त करते हुए दावे को आंशिक रूप से स्वीकार किया है। अदालत ने कहा कि जब दो वाहन दुर्घटना में शामिल होते हैं, तो किसी भी एक वाहन के मालिक को घायल वाहन के लिए मुआवजा का दावा करने का अधिकार है। अभनपुर जिला रायपुर के ग्राम गोतियारडीह निवासी त्रिभुवन निराला के पुत्र रजत कुमार की मौत 21 अप्रैल 2013 की शाम को हुई। रजत कुमार अपनी मोटर साइकिल क्रमांक सीजी-04 केपी-3270 पर अपने मित्र धृतलहरे के साथ अभनपुर जा रहा था। रास्ते में एक अज्ञात वाहन ने उनकी मोटर साइकिल को ठोकर मार दी, जिससे रजत गंभीर रूप से घायल हो गया और अगले दिन उसकी मृत्यु हो गई। पुलिस ने अज्ञात वाहन चालक के खिलाफ मामला दर्ज किया, लेकिन वाहन का पता नहीं चल पाने पर मामले को बंद कर दिया गया।
रजत के पिता त्रिभुवन निराला और उसकी दो बहनों ने बीमा कंपनी को पक्षकार बनाते हुए मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण में आवेदन दायर किया। अधिकरण ने अज्ञात वाहन को पक्षकार नहीं मानते हुए रजत के दावे को खारिज कर दिया। इसके बाद त्रिभुवन ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की। जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की बेंच में हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने दुर्घटना में दो वाहन शामिल होने पर मुआवजा दावे को अस्वीकार करने के आदेश को पलटते हुए दावे को आंशिक रूप से स्वीकार किया। कोर्ट ने कहा कि रजत एक तीसरे पक्ष के रूप में माने जाते हैं और उनके आय पर निर्भर थे, इसलिए बीमा कंपनी को मुआवजा देना आवश्यक है।
मामले में बीमा कंपनी ने तर्क दिया था कि दुर्घटना के समय रजत ने अपना वैध ड्राइविंग लाइसेंस प्रस्तुत नहीं किया था, जिससे वे दावा भुगतान के लिए जिम्मेदार नहीं थे। हालांकि, कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के आधार पर बीमा कंपनी को आदेश दिया कि वे मुआवजा राशि पहले जमा करें और बाद में मोटर साइकिल के मालिक से राशि वसूली कर सकते हैं।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि मोटर साइकिल सडक़ पर फिसलकर गिरने से हुई दुर्घटना में दो वाहन शामिल थे। कोर्ट ने मुआवजे के आधार पर कहा कि जब दो वाहन दुर्घटना में शामिल होते हैं, तो घायल वाहन के मालिक को मुआवजा का दावा करने का अधिकार होता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि मृतक के आय प्रमाणित न होने पर राष्ट्रीय मजदूरी के अनुसार 5000 रुपये मासिक को आधार मानते हुए, बीमा कंपनी को 8 लाख 26 हजार रुपये 6 फीसदी ब्याज सहित आवेदक के खाते में जमा करने का आदेश दिया गया है।