डिस्पेंशरी और निजी नर्सिंग होम वालों से भी तगड़ी वसूली की जाती है
विभागीय मंत्री को भी गुमराह कर रहे अधिकारी
पर्यावरण विभाग को जगाने के लिए हाई कोर्ट को लगाना पड़ता है फटकार
मछलियां और जल में रहने वाले जीवजंतु मौत के गाल में समा गए
देश में बढ़ते प्रदूषण को लेकर एनजीटी चिंतित, छग पर्यावरण मंडल इन सभी मामलों से बेखबर
छग पर्यावरण मंडल की कार्यशैली पर कई बार उच्च न्यायालय संज्ञान लेकर नोटिस दिया वह भी बेअसर रहा
दूषित पानी पीने से 18 से 20 गायों की मौत
20 हजार लोग भी प्रभावित
धान के पैदावार में गिरावट, जमीन हो रहा बंजर
रायपुर raipur news । देश में बढ़ते प्रदूषण को लेकर भले ही एनजीटी चिंतित है लेकिन Department of Environment पर्यावरण विभाग पूरी तरह निष्क्रिय हैं। सरगांव के पास शराब की फैक्ट्री से निकल रहे गन्दा पानी जिसे नदी में छोड़ा जाने से हजारों की तादात में मछलियां और जल में रहने वाले जीवजंतु अकाल काल के गाल में समा गए जिसकी चिंता न तो फैक्ट्री मालिक को है और न ही पपर्यावरण विभाग को। हद तो तब हो जाती है जब पर्यावरण विभाग के अधिकारियों को कुछ मालूम ही नहीं था की शराब फैक्ट्री से निकलने वाले जहरीला पानी को नदी में प्रवाहित किया जा रहा है। नदी का पानी जहरीला होने से सिर्फ मछलियां ही नहीं बल्कि लगभग 15 से 20 गायों की भी मौत हो गई है। लोग नदी के पानी को उपयोग करने और नहाने से भी डरने लगे हैं। शराब फैक्ट्री से निकलने वाले जहरीला धुंआ और पानी से वहां आसपास के रहने वाले लोगों को कई समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। लोगों की मानें तो उनके घरों में इस प्रदूषण युक्त धुंए और पानी के जाने से उनका दम तक घुटने लगता है, लेकिन पर्यावरण विभाग इस ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रहा है। हाई कोर्ट की फटकार के बाद भले ही पर्यावरण विभाग जागा है लेकिन जवाब देते नहीं बन रहा है। गौरतलब है कि एक समय में देश की राजधानी दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को लेकर 2 सप्ताह के लिए स्कूल कॉलेज बंद कर दिए गया था। इन सबसे सबक लेने के बजाय पर्यावरण विभाग कुम्भकर्णी नींद में सोया हुआ है। पर्यावरण विभाग के हिटलर शाही रवैया से लगभग लाखों आबादी की जिंदगी खतरे में पड़ गई है।
environmental protection board पर्यावरण संरक्षण मंडल के दांत ही नहीं
पर्यावरण संरक्षण मंडल बना सफेद हाथी। काम के नाम पर हाथी के दांत की तरह प्रदर्शन हो रहा है यानी खाने के दांत अलग और दिखाने के दांत अलग। पिछले कुछ सालों में वायु प्रदूषण लोगों के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बनकर सामने आया है। आधुनिकीकरण की अंधी दौड़ में तेजी से बढ़ते पेट्रोल-डीजल चलित वाहनों की संख्या, निर्माण स्थलों से उठने वाली धूल के अति सूक्ष्म कण, कारखानों की चिमनियों से निकलने वाले धुएं, ठोस कचरे और फैक्ट्रियां एवं अन्य कई कारणों से वैश्विक आबोहवा बिगड़ती जा रही है। जिसकी वजह से लोगों का सांस लेना भी दूभर होता जा रहा है। वायु प्रदूषण के मामले में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर देश के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में शुमार है। यहां तेजी से बढ़ते औद्योगिकीकरण के कारण प्रदूषण का ग्राफ भी तेजी से बड़ा है। नतीजा यह है कि पर्यावरण विभाग के लापरवाह अधिकारीयों की अकर्मण्यता से छत्तीसगढ़ की आधी आबादी कई बीमारियों की चपेट में है।
इतना ही नहीं यही हाल राजधानी के आसपास का भी है। जब राजधानी का ये आलम है तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि औद्योगिक क्षेत्र में दूरस्थ वनांचलों में क्या हालात होती होगी। प्रदेश में संचालित बड़े -बड़े औद्योगिक घराने बिना एनओसी के फैक्ट्री चला रहे है। पर्यावरण मंडल सारी अनियमितताओं को देखते हुए अनदेखी कर मोटी फीस लेकर मामले को वारे न्यारे कर रहा है। नियमत: पर्यावरण विभाग के अधिकारियों को समय समय पर छत्तीसगढ़ में संचालित फेक्ट्रियों का निरीक्षण करना चाहिए। जनमानस में एक ही सवाल उठ रहा है की क्या वजह है जिससे पर्यावरण विभाग के अधिकारी निरीक्षण नहीं करते और उद्योगों को वातावरण प्रदूषित करने की खुली छूट दे देते हैं। राजधानी के आसपास में ज्यादातर फैक्ट्री और पावर प्लांट स्थापित है। जिस वजह से पूरा इलाका ही प्रदूषण का दंश झेल रहा है, लेकिन इसके अलावा भी यहां शहर के बीचों बीच फैक्टरियां, कारखाने है। इन कंपनी की चिमनियों से उगलता धुआं इलाके के घरों में घुसकर दीमक की तरह लोगों की जिंदगी को धीरे-धीरे खोखला कर स्लो-पॉयजन का काम कर रहा है। इस जहरीले धुएं से अपनी जान बचाने के लिए इन फ्लैटों के लोगों को अपनी खिड़कियां हमेशा बंद रखनी पड़ती हैं। धुएं से निकलने वाले जानलेवा काले कण खाने-पीने के बर्तनों और घरों में रखे सामानों पर भी जम जाते हैं। पर्यावरण एवं प्रदूषण नियंत्रण विभाग की निगाह भी संभवत: इन कंपनियों से निकलने वाले जहरीली धुएं पर नहीं पड़ रही है।
आबोहवा प्रदूषित: हाई कोर्ट को संज्ञान लेना पड़ा
मौसम के बदले रूख और बढ़ी आद्रता के बीच जिले की हवा खराब होती जा रही है। फैक्टरी और विद्युत उत्पादक कंपनियां प्रदूषण का प्रमुख कारण माना जा रहा है। एप पर जारी रिकॉर्ड के मुताबिक, 1 नवंबर को वायु गुणवत्ता इंडेक्स 300 के करीब दर्ज किया गया है। इसे सबसे खराब स्थिति माना जा रहा है।
कई बार लगा चुके हैं फटकार
विभागीय मंत्री ने अफसरों, उद्योग संचालकों को प्रदूषण की समस्या को लेेकर कई बार फटकार लगा चुके हैं लेकिन स्थिति जस की तस है। लोगों को अभी तक प्रदूषण की समस्या से निजात नहीं मिली है जिसके चलते गंभीर रूप से बीमार होते जा रहे हैं।
देखा जा रहा है कि छग में राजधानी सहित कई शहरों के नजदीक औद्योगिक क्षेत्र होने के कारण कारखानों की चिमनी से निकलने वाले जहरीले धुंए से परेशान है। इस पर हाई कोर्ट को संज्ञान लेना पड़ा। कितनी फैक्ट्रियों ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए मशीन लगाई हुई है और उनकी स्थिति क्या है। क्या पर्यावरण विभाग को मालूम है?
प्रदेश का पर्यावरण मंडल का कानून नहीं चलता
हर साल रिनिवल के मांगे जाते है लाखों रुपए
लाइसेंस का पैसा सभी उद्योग के लिए अलग-अलग
उद्योग भौतिक सत्यापन नहीं करने के पीस लाखों रूपए
पर्यावरण मंडल के सांठगांठ से चल रहा लिखा-पढ़ी को गड़बड़ घोटाला
0पिछले 20 सालों से किसी भी राइस मिल, बिजली निर्माता कंपनियों, प्लास्टिक उत्पाद करने वाली कंनियों का सालाना निरीक्षण ही नहीं हुआ
0 अधिकारी फैक्ट्री में व्याप्त अनियमितताओं को नियमितता लिखने के लेते है करोड़ों रूपए