प्रदेश सरकार का नाम खराब कर रहा स्वास्थ्य अमला

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Update: 2021-02-26 17:01 GMT

स्वास्थ्य अमले का फेल होने का प्रमुख कारण

राजनेता और रसूखदार अधिकारियों के निजी अस्पतालों का प्रदेश में जाल बिछा।

प्रदेश सरकार का नाम खराब कर रहा स्वास्थ्य अमला।

मुख्यमंत्री की योजनाओं पर स्वास्थ्य अमला ने पतीला चढ़ाया, कहां गई मुख्यमंत्री स्लम बस्ती स्वास्थ्य योजनाओं की गाड़ियां ?

एमरजेंसी सर्विस की 108 नंबर की गाडी कहा गई ?

सरकारी अस्पताल में मरीज़ों को जबरदस्ती इलाज के गफलत में रखकर निजी अस्पतालों के सुझाव दिए जाते है।

कमोबेश शहर के कई निजी अस्पताल छुटभैय्या नेताओं और आईपीएस अधिकारियों के है।

बड़े छुटभय्ये नेताओं की और बड़े अधिकारियों के अपने निजी अस्पतालों के होने से सरकारी अस्पतालों में मरीज़ों का ना होना।

मरीज़ों का सबसे बड़ा हब है मेकाहारा अस्पताल, जहां मरीज़ों को निजी अस्पताल में धकेलने के लिए डॉक्टर मजबूर करते है।

निजी अस्पतालों का जितना बड़ा एमरजेंसी वार्ड उतना ही बड़ा बनता बिल।

कोरोना आपात काल का हवाला देकर निजी अस्पतालों को तर्जी दी गई।

कोरोना काल में सरकारी अस्पताल में मरीज़ों को कोरोना का भय दिखाकर का इलाज नहीं किया गया, बल्कि इलाज करवाने के लिए निजी अस्पतालों के मेनुकार्ड का लिस्ट थमाया गया।

किसी भी तरह का बहाना बताकर एन केन प्रकारेण का तरीका अपनाकर मरीज़ों को निजी अस्पतालों धकेला।

रायपुर। राजधानी के सबसे बड़े अस्पताल मेकाहारा को अव्यवस्थाओं का मर्ज लग गया है। यही मर्ज मरीज और उनके परिजनों को दर्द दे रहा है। हद देखिए कि इमरजेंसी में आए मरीजों को स्ट्रेचर तक नहीं मिल पाते। जो स्ट्रेचर हैं भी वो टूटे-फूटे हैं। लगभग दो माह पहले ही 20 स्ट्रेचर और 20 व्हीलचेयर अस्पताल में भेजा गया था, लेकिन यह ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। मेकाहारा अस्पताल शहर के सबसे बड़े अस्पतालों में शुमार है। यहां न केवल शहर बल्कि पहाड़ के दूरस्थ इलाकों से और छत्तीसगढ़ के नक्सली इलाकों तक के मरीज इलाज के लिए यहां आते हैं। लेकिन, जब से अस्पताल को मेडिकल कॉलेज में तब्दील किया गया है, व्यवस्थाएं चौपट होती दिख रही है। इनमें स्टे्रचर व व्हील चेयर की कमी भी शामिल है। राजधानी के सबसे बड़े अस्पताल मेकाहारा की दुर्गति बनी हुई है। जहां स्ट्रेचर टूटे हुए है और मरीज़ों को दर बदर की ठोकरें खानी पड़ रही है। मरीज़ों के परिजनों का कहना है कि अस्पताल में समय पर सही उपचार नहीं मिलने से बीमारी गंभीर हो रही है। इलाज की पूरी जिम्मेदारी प्रशिक्षु डॉक्टरों पर है। केस बिगडऩे पर ही सीनियर डॉक्टर मरीजों को देखते हैं।

जिला अस्पताल बना कबाड़ खाना

जिला अस्पताल में डॉक्टरों के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। यहां मरीजों के लिए वार्ड में में लगे बिस्तर कबाड़ हो रहे हैं और स्ट्रेचर टूटे हुए पडे़ हैं। स्ट्रेचरों के अभाव में मरीजों को यहां गोद में उठाकर लाना पड़ता है। देखरेख के अभाव में इमरजेंसी कक्ष के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। जिला अस्पताल परिसर में मरीजों की बढ़ती तादात को देखते हुए तकरीबन दो साल पहले नवीन इमरजेंसी कक्ष का निर्माण कराया गया था। मरीजों को बेहतर चिकित्सीय सेवाएं मुहैया हो सकें, इसके लिए इमरजेंसी परिसर में चार अत्याधुनिक स्ट्रेचर और मरीजों को आपातकाल में भर्ती किए जाने के लिए आधुनिक सुविधाओं वाले बिस्तर मंगाए गए थे। विकलांग मरीजों को आसानी से उपचार के लिए चिकित्सक के पास तक ले जाया जा सके, इसके लिए बाकायदा रैंप बनवाकर व्हील चेयर मंगाई गई थी। देखरेख के अभाव में मरीजों की सुविधाओं के लिए उपलब्ध कराई गईं ये सभी व्यवस्थाएं कबाड़ हो रही हैं। स्थिति यह है कि इन दिनों नवीन इमरजेंसी में रखे सभी स्ट्रेचर कबाड़ हो चुके हैं। मरम्मत न कराए जाने के कारण इनके कलपुर्जे टूट रहे हैं। स्ट्रेचरों के अभाव में गंभीर हालत में लाए गए मरीज को हाथों में अथवा कंधों पर लादकर इमरजेंसी में मौजूद चिकित्सक तक ले जाया जाता है।

स्ट्रेचर के कलपुर्जे भी निकले

आधुनिक सुविधा से लैस अधिकांश बेड में से उनके कलपुर्जे अलग हो चुके हैं। बिस्तरों पर जो गद्दे बिछाए गए हैं उनमें से अधिकांश गद्दे भी फट चुके हैं। इमरजेंसी कक्ष में सुविधाओं के बदहाल होने का सबसे बड़ा खामियाजा मरीजों को उठाना पड़ रहा है। कभी-कभी तो मरीजों के परिजनों को स्ट्रेचरों के लिए काफी देर तक इंतजार भी करना पड़ता है। डॉक्टरों का कहना है कि स्ट्रेचर और बेड की मरम्मत कराई जा रही है। कुछ स्ट्रेचर दुरुस्त कराए गए हैं। मरीजों को ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकें। फिर भी अगर कुछ कमी है तो स्वयं इमरजेंसी कक्ष में जाकर जायजा लिया जाएगा और अव्यवस्थाओं को दूर कराया जाएगा।





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