HC ने आजीवन कारावास की सजा को किया निरस्त, 2 लोगों को राहत

Update: 2024-07-03 06:59 GMT

बिलासपुर bilaspur news । छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा है कि अपहरण के किसी अभियोग को साबित करने के लिए फिरौती की मांग और जीवन को संकट में डालने का साक्ष्य होना चाहिए। किसी व्यक्ति को केवल रोक कर रखने से मामला नहीं बनता। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से दो लोगों को मिली आजीवन कारावास की सजा निरस्त करते हुए यह बात कही। chhattisgarh high court

raipur police रायपुर पुलिस ने वहां के एडीजे कोर्ट में चालान पेश किया था, जिसमें बताया गया था कि 3 अप्रैल 2022 को योगेश साहू और नरेंद्र बामार्डे वाहन दिखाने के बहाने भगवंता साहू को अपने साथ एक जगह पर ले गए और अपने कब्जे में रखा। दोनों ने एक ट्रक के बिकने से मिली राशि की मांग उससे की। भगवंता साहू किसी तरह उनकी चंगुल से छूटकर आ गया। एडीजे कोर्ट रायपुर ने दोनों आरोपियों को धारा 364 ए के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई। दोनों आरोपियों ने इस सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की।

Chief Justice Ramesh Sinha चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस सचिन सिंह राजपूत ने अभियोजन पक्ष और अपीलकर्ता को सुना। इसके बाद आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष ट्रायल कोर्ट में यह साबित करने में विफल रहा है कि आरोपियों ने शिकायतकर्ता के जीवन को खतरे में डाला था या जान ले लेने की धमकी दी थी। यह भी साबित नहीं होता है कि उन्होंने शिकायतकर्ता को छोड़ने के लिए फिरौती मांगी थी। धारा 364 ए में इसकी पुष्टि होना जरूरी है। केवल अपने पास रोककर रखने से दोष सिद्ध नहीं होता है।

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