रायपुर। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के मनोरोग विभाग द्वारा सिजोफ्रेनियो को लेकर सतत जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है। विभाग में बढ़ते सिजोफ्रेनिया रोगियों की संख्या को देखते हुए रोगियों के उपचार और पुनर्वास की सभी सुविधाएं भी विभाग में प्रदान की जा रही हैं। सिजोफ्रेनिया पर विभाग की ओर से आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित डॉ. भरत वातवानी ने सिजोफ्रेनिया रोग और उसके निदान के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की। उनका कहना था कि यदि समय पर सिजोफ्रेनिया की पहचान कर ली जाए तो इसका पूर्ण उपचार संभव है।
निदेशक प्रो. (डॉ.) नितिन एम. नागरकर का कहना है कि सिजोफ्रेनिया के संपूर्ण उपचार की सुविधा विभाग में उपलब्ध है। आवश्यकता इस बीमारी की समय पर पहचान के लिए सघन जागरुकता अभियान चलाने की है। उन्होंने बताया कि विभाग में रोगियों के लिए मैग्नेटिक तरंगों से इलाज, दवाइयां, साइकोथैरेपी और काउंसलिंग सहित सभी सुविधाएं हैं। विभाग के डॉ. अजय कुमार के अनुसार प्रति 100 व्यक्तियों में एक को सिजोफ्रेनिया होने की संभावना होती है। विभाग में इसके रोगी निरंतर बढ़ रहे हैं। विभाग की ओपीडी में आने वाले 70 रोगियों में से औसत 15 रोगी सिजोफ्रेनिया के होते हैं जिसमें से एक या दो को तुरंत एडमिट करने की आवश्यकता होती है। यह एक प्रकार का मानसिक रोग है जिसमें व्यक्ति वास्तविकता का सही बोध नहीं कर पाता, तरह-तरह के भ्रम, शक, भय, विचित्र अनुभव, अव्यवस्थित सोच, समाज से दूरी, उदासीनता, स्वयं की देखभाल में कमी, भावनाओं को व्यक्त न कर पाना और क्रियाशीलता में कमी इसके प्रमुख लक्षण है।
डॉ. अजय का कहना है कि यह बीमारी युवाओं और किशोरों को होने की संभावना अधिक होती है। मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन इसकी वजह होता है। आधुनिक चिकित्सा की मदद से इसका उपचार किया जा सकता है। इसके लिए रोगी को प्रारंभ में ही पहचान कर उपचार करने की आवश्यकता होती है। संगोष्ठी में अधिष्ठाता (शैक्षणिक) प्रो. आलोक चंद्र अग्रवाल और डॉ. एली महापात्रा ने भी भाग लिया। इस अवसर पर विभाग की ओर से सेंट्रल डोम में रोगियों और उनके परिजनों को सिजोफ्रेनिया के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान की गई। नर्सिंग महाविद्यालय के शिक्षकों के सहयोग से हीरापुर स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर भी सिजोफ्रेनिया को लेकर जागरुकता कार्यक्रम आयोजित किया गया।