निराधार आरोप लगाना बंद कर कृषि विरोधी कानून वापस ले सरकार : माकपा

Update: 2020-12-25 13:23 GMT

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े 500 से अधिक किसान संगठनों द्वारा कृषि विरोधी कानूनों व बिजली संशोधन विधेयक को वापस लेने की मांग करते हुए चलाये जा रहे देशव्यापी आंदोलन के साथ एकजुटता जताते हुए इन कानूनों को वापस लेने की मांग की है। पार्टी ने कहा है कि संसद के अंदर और बाहर बिना किसी विचार-विमर्श और बहस के ये कानून पारित किए गए हैं और जिन सांसदों ने इस पर मतदान की मांग की थी, उन्हें निलंबित तक किया गया है।इसलिए मोदी सरकार को विपक्ष पर किसान आंदोलन के राजनीतिकरण का आरोप लगाने से भी बाज आना चाहिए। आज यहां जारी एक बयान में माकपा राज्य सचिवमंडल ने कहा है कि चूंकि ये कानून देश की खाद्यान्न सुरक्षा और आत्मनिर्भरता को खतरे में डालते हैं और किसानों को कॉर्पोरेट गुलामी की ओर ढकेलते हैं, पूरे देश में सभी राष्ट्रवादी ताकतें पुरजोर ढंग से इसका विरोध कर रही हैं। वास्तविकता तो यह है कि किसानों के उत्थान के कथित सरकारी दावों के बावजूद वे अपनी फसलों के लाभकारी मूल्य के अभाव में भारी कर्ज़ों में डूबे हुए हैं और बड़ी संख्या में आत्महत्या कर रहे हैं।

माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य न देने के बावजूद प्रधानमंत्री झूठा प्रचार कर रहे हैं कि आयोग की सिफ़ारिशों को उन्होंने क्रियान्वित कर दिया है, जबकि इस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह कहा है कि सी-2 लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य वह नहीं देगी। उन्होंने आरोप लगाया है कि 5.5 करोड़ किसान परिवारों को सम्मान निधि से बाहर कर देने के बावजूद यह सरकार अपना गाल बजा रही है कि वह किसानों के हितों की रक्षा कर रही है, जबकि वास्तविकता यह है कि किसानों के नाम पर वह कॉर्पोरेट लूट को कानूनी दर्जा देने का संविधान विरोधी काम कर रही है। उन्होंने कहा है कि जिस प्रकार लाखों किसान भयंकर शीतलहर के बावजूद एक माह से दिल्ली से बाहर सड़कों पर जमे बैठे हैं और विभिन्न राज्यों से हजारों किसान इस विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने के लिए पहुंच रहे हैं और 40 से ज्यादा किसानों ने इस संघर्ष में अपनी शहादत दी है, उससे साफ जाहिर होता है कि पूरा देश इन कानूनों के खिलाफ उठ खड़ा हुआ है।

माकपा नेता ने कहा है कि भाजपा सरकार के सामने अब यही रास्ता बचा है कि इन असंवैधानिक कानूनों को वापस लें। इसके बाद ही कृषि सुधारों पर बातचीत संभव है। अब इस देश की जनता कृषि सुधारों के नाम पर देश की खेती-किसानी को देशी-विदेशी कॉरपोरेटों के हाथों में सौंपकर कृषि विनाश करने की इजाजत देने के लिए तैयार नहीं है।

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