वाहनों का ईंधन खर्च, मेंटनेंस हाउसिंग बोर्ड नहीं करता तो कौन करता है?

छत्तीसगढ़

Update: 2021-03-18 05:24 GMT

भ्रष्ट अधिकारियों का कारनामा, हाउसिंग बोर्ड में सूचना के अधिकार की उड़ाई जा रही धज्जियां

रायपुर (रायपुर)। सूचना के अधिकार के तहत अपर आयुक्त एमडी पनारिया और हर्ष कुमार जोसी को आवंटित वाहनों के आवंटन और लागबुक की सत्यापित प्रति मांगी गई। उक्त संबंध में हाउसिंग बोर्ड मुख्यालय व्दारा वाहनों के आवंटन के सात ईंधन खपत और मेंटनेंस का कार्य किस मद से किया जाता है। इसके जवाब में हाउसिंग बोर्ड के जन संपर्क अधिकारी एसके भगत ने लिखा है कि हाउसिंग बोर्ड सिर्फ वाहन आवंटित करता है ईंधन और मेंटनेंस का कार्य मंडल मुख्यालय व्दारा नहीं किया जाता। सबसे मजेदार बात यह है कि जब अधिकारी दौरे पर और प्रोजेक्ट बनाने भाग दौड़ करते है, फाइल लेकर मंत्री बंगला, मंत्रालय तो विभागीय स्वीकृति के लिए जाते होंगे तब वाहनमें पोट्रोल किस मद से डाला जाता है, वाहन हवा में तो चल नहीं सकता। पेट्रोल तो डलाना ही पड़ता होगा, जिसका भुगतान विभाग से ही होता होगा, अधिकारी तो अपनी जेब से सरकारी काम के लिए खर्च नहीं कर सकते, क्या हाउसिंग बोर्ड अधिकारियों की इतनी अधिक तनख्वाह है कि वे सरकारी वाहन का खर्च भी वहन करने में सक्षम है। हाउसिंग बोर्ड एमडी पनारिया अपर आयुक्त समेत कर्ज में डूबे और फ्लाप प्रोजेक्ट में सरकार को करोड़ों का चूना लगाने के लिए सरकारी धन को निजी समझ कर अनाप-शनाप खर्च नहीं कर रहे हैं। जिसका कोई लेखा जोखा नहीं है। प्रदेश के सरकारी विभागों में सफेद हाथी घोषित हो चुके हाउसिंग बोर्ड में किसी का नियंत्रण नहीं है। बिना महावत के मतवाले ससफेद हाथी यानी हाउसिंग बोर्ड के सेहत में भाजपा शासनकाल और कांग्रेस शासनकाल में कोई बदलाव नहीं आया, वहां के अधिकारियों के काम पुराने ढर्रे पर ही चल रहा है। सूचना के अधिकार में मांगी गई सैकड़ों जानकारी की आज तक को संतोषजनक जानकारी नहीं दी, हर बार कोई न कोई बहाना बनाकर दो शब्द लिखकर आवेदक को जवाब दिया जाता है कि आपकी मांगी गी जानकारी हमारे कार्यालय में उपलब्ध नहीं, आखिर विभाग तो वहीं है और अधिकारी भी वही हैं तो फिर उनके संबंध में सर्विस रिकार्ड उनकी प्रतिनियुक्ति संबंधी लेखा जोखा, विभाग आय-व्यय पंजी तो बनी होगी जिसमें सरकारी प्रोजेक्ट की लागत राशि खर्च की जाती है। ऐसे में वाहन से संबंधित खर्च और मेंटनेंस का भी लेखा जोखा होता होगा। फिर क्यों जानकारी देने में आनाकानी की जाती है। सूचना का अधिकार तो हर नागरिक का अधिकार है सरकार भी बाध्य है, तो अधिकारी हाउसिंग बोर्ड में रिकार्ड नहीं होने का रोना रोते है। 2018 से प्रदेश कांग्रेस शासन आने के बाद तो हाउसिंग बोर्ड का ढर्रा और ही बिगड़ गया है। अधिकारियों के अनाप-शनाप खर्चों को कोई भी सरकार रोक नहीं लगा सकी।  

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