यार हमारी बात सुनो ऐसा एक इंसान चुनो जिसने पाप न किया हो जो पापी न हो...
ज़ाकिर घुरसेना/ कैलाश यादव
टाउन एंड कंट्री प्लानिंग में फर्जीवाड़ा का खेल कैसे खेला जाता है यह अफसरों के अच्छा कोई नहीं बता सकता। मजेदार बात यह है कि जमीन को कैसे यूज करना है इसके महारथी छत्तीसगढ़ में बैठे हुए है। वैसे तो खेल पूरे छत्तीसगढ़ में हुआ है लेकिन फिलहाल मामला परसतराई का है जहां मास्टर प्लान का फर्जीवाड़ा फूटने के पांच महीने बाद भी अब तक जांच की बिदु तय हो पाया है। इस लेटलतीफी को लेकर तरह -तरह की चर्चाएं है कि भागने का सबको मौका दिया जा रहा है। टाऊन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग ने नए सिरे से आपत्ति मंगवाई है। अब तक 76 आपत्ति जमा हो चुकी है। जिसमें 40 मामले तो परसतराई के है। यहां कि पूरी जमीन का लैंडयूज बदलकर पब्लिक और सेमी पब्लिक कर दिया है। जिसका लोग खुलकर विरोध कर रहे है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि ये अफसर है भाई ये चाहे तो कुछ भी हो सकता है,इनका बस चले तो ये जमीन को मंगलग्रह में भी बता सकता है। क्योंकि इनको सिर्फ अपना फायदा दिखता है, कहने को तो ये पब्लिक के नौकर है लेकिन असल में ये बिल्डरों के नौकर होते है। उनके आदेश पर ही ये जमीन को आम जनता से छीनकर पब्लिक-सेमी पब्लिक का खेल खेलते है। यहां अफसरों ने बड़ा खेल खेला है। क्योंकि सबको मालूम है कि पापी कौन है और कौन नहीं। इसी बात पर एक गाना फिट बैठ रहा है यार हमारी बात सुनो एसा एक इंसान चुनो जिसने पाप न किया हो जो पापी न हो...
सबसे आगे कौन
छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र तीनो राज्यों में बीजेपी का शासन है फिर माताओं बहनो को मिलने वाले आर्थिक फायदे में अंतर क्यों। यहाँ के महिलाओ का जरूर ही मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में नाते रिश्तेदारी तो जरूर है। और यदि नहीं है तो अखबारों के माध्यम से जानकारी तो मिल ही जाती है की शासन की और से महिलाओ को मिलने वाली सुविधा में क्या अंतर है। हमारे यहां महिलाओ को एक हजार रूपये प्रति माह मिल रहा है , मध्यप्रदेश में बारह सौ पचास रूपये तथा महाराष्ट्र में पंद्रह सौ रूपये दिये जाने की जानकारी है। अब महिलाओ के दिमाग में ये बात तो जरूर उठेगा की हमें भी महाराष्ट्र की तरह पैसा दिया जाय। जनता में खुसुर फुसुर है कि आज नहीं तो कल मिलेगा ही।
दिवस की भरमार
पिछले दिनों शेर दिवस, हाथी दिवस मनाया गया उसके बाद अभी कई दिवस मनाया जायेगा। बैठेठाले मंत्रियो को कुछ काम दिखाना है या उनके नज़दीक आना है तो कोई दिवस का आयोजन करके कार्यक्रम रखवा दो अपने आप सब एक स्टेज में मिलकर बैठेंगे और स्वाभाविक है नज़दीकी भी बढ़ेगी.कभी कभी दांव उल्टा भी पड़ जाता है फिजूल खर्चकरके शासन को चूना लगाने के आरोप में किये धराये पर पानी भी फिर जाता है इसलिए कोई भी दिवस मनाने के लिए अफसरों को सौ बार सोचना पड़ रहा है। यही वाकया बिलासपुर में भी हो गया। एक अधिकारी ने शिकायतों का पुलिंदा लेकर मंत्री जी के पास पहुंच गए , अब मंत्रीजी और और उनके बीच क्या बात हुई नहीं मालूम लेकिन एक सप्ताह बाद शिकायतकर्ता अफसर जरूर नप गया। जनता में खुसुर फुसुर है कि मंत्री के नज़दीकी बनने की चाह भी कभी कभी ले डूबती है। ऐसा ही एक पुराना किस्सा हमारे मित्र सुना रहे थे कि अविभाजित मध्यप्रदेश में अर्जुन सींग मुख्यमंत्री हुआ करते थे, माना एयरपोर्ट से स्टेट प्लेन में भोपाल जाने वाले थे तत्कालीन कमिश्नर सहित नेता आला अधिकारी भी छोडऩे एयरपोर्ट पहुंचे थे। कमिश्नर साहब ने धीरे से कहा सर मै भी भोपाल चलूं क्या। प्लेन उडऩे के तुरंत बाद कमिश्नर साहब के दफ्तर पूछने के पहले ही उनके ट्रांसफर का फैक्स आ गया था। किसी ने ठीक ही कहा है कि राजा के अगाड़ी और घोड़े के पिछाड़ी सोच समझ कर ही रहना चाहिए।
झोला छाप को ट्रेनिंग देना चाहिए
जमाना बदल गया है हर क्षेत्र में नई नई टेक्नालाजी ने असंभव को संभव में बदल दिया है। फिर आये झोला छाप डाक्टर के इलाज से मौत की खबर मिलते रहती है। जबकि शासन ने स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी नहीं की है। लेकिन यह शहरी क्षेत्रो में ज्यादा दिख रही है। आज भी ग्रामीण क्षेत्रो में झोला छाप डाक्टर, बैगा गुनिया के इलाज के भरोसे ही काम चल रहा है। जनता में खुसुर फुसुर है कि शासन को चाहिए की झोला छाप डाक्टरों और बैगा गुनियो को ट्रेनिंग देना चाहिए ताकि वे भी ग्रामीण क्षेत्रो में अच्छे से इलाज कर सकें क्योंकि डाक्टर ग्रामीण एरिया में जाना ही नहीं चाहते, क्योकि वहां कमाई कम है। देखा गया है कि ग्रामीण एरिया में पैसा नहीं होने पर लोग डाक्टर को फीस के रूप में अपने बाड़ी में उगे सब्जी और घर के गाय की दूध भी दे देते थे लेकिन अब वो पुराने डाक्टर भी नहीं हैं जो फीस के रूप में सब्जी और दूध में भी मान जाते थे। इस संबंध में एक डाक्टर ने बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी ने छग में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी को देखते हुए त्रिवर्षीय मेडिकल कोर्स शुरु किया था जिसके तहत आऱएमए (रिमोट मेडिकल असिस्टेंट) बनते थे। इनकी नियुक्ति शहर के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में लगती थी, जिससे लोगों को तत्काल सुविधा मिलती थी जिसे अभी बंद कर दिया है. जनता में खुसुर-फुसुर है कि सरकार को चाहिए कि इस त्रिवर्षीय कोर्स को प्रारंभ कर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराया जाए।
बेटियों को आजादी कब
पूरा देश स्वतंत्रता दिवस हर्षोल्लास से मनाया। लेकिन कोलकाता की घटना ने निर्भया से भी वीभत्स घटनासे पूरीदेश कोझकझोर कर रख दिया। आजादी के मायने पर देश के तथाकथित बुद्धिजीवी साल भर लडक़ी बचाओं लडक़ी पढ़ाओं के ज्ञान पेलते रहते है। बेटियों की सुरक्षा औऱ संरक्षण को लेकर सभी गभीर नजर आते है। उसके बाद भी बेटियों के साथ हो रहे अक्षम्य अपराध रूकने का नाम नहीं ले रहा है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि अपराधियों ने अपने -अपने हिसाब से आजादी के मायने समझ रखे एसा लगता है। बेटियों की आजादी कब मिलेगी इसकी गारंटी कोई नहीं दे पा रहा है। आज भी बोटियों कहानी-कविता भाषणों में ही सुरक्षित नजर आरही है यथार्थ में तो बेटियों की आजादी मिली ही नहीं है। देश को समझना होगा कि बेटियों की आजादी तब तक सुरक्षित नहीं होगी जब तक अपराध सुरक्षित होंगे।
गांजा तस्करों का स्वर्ग है छत्तीसगढ़
देश भर के गांजा तस्करों ने छत्तीसगढ़ को अवैध अघोषित अड्डा बना रखा है। छत्तीसगढ़ में बेखौफ तस्करी के चलते यह तस्करों का स्वर्ग बना हुआ है। हर रोज अवैध नशीली दवाई और गांजा - शराब की तस्करी रायपुर के रास्ते ओडिसा से आकर दूसरे राज्यों में सप्लाई हो रही है। पुलिस प्रशासन की सख्ती के बाद भी तस्करों के सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। देश भर जितने भी तस्कर है छत्तीसगढ़ के विभिन्न शहरों में डेरा डालकर अपने कोरोबार में चार चांद लगा रहे है। छत्तीसगढ़ होते हुए पूरे देश में गांजा,शराब छत्तसीगढ़ के सप्लायरों के माध्यम से पहुंच रहा है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि पुलिस और तस्करों में नूरा कुश्ती आखिर कब तक चलेगी। क्या कभी छत्तीसगढ़ तस्कर मुक हो पाएगा. या यूं ही नूरा कुश्ती चलती रहेगी।