कोरोना काल में खूब खपाया नकली रेमडेसिविर...!

Update: 2022-06-27 05:34 GMT
  1. आपदा को अवसर बनाने वालों ने की जमकर कमाई
  2. दवा की सैंपल जांचने में देरी कर लैब वालों ने भी किया खेल

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान सरकार ने गंभीर कोविड मरीजों के लिए रेमडेसिविर इंजेक्शन को रिकमेंड किया था। यह इंजेक्शन मरीजों के लिए जीवन बचाने वाला बन गया था। एक ओर जहां परिजन अपने संबंधियों को महामारी से बचाने 30-35 हजार में एक-एक इंजेक्शन खरीद रहे तो दूसरी ओर महामारी को अवसर बनाने वालों ने इसके भी कृत्रिम अभाव पैदाकर खूब कमाई की। बड़े पैमाने पर नकली इंजेक्शन भी खपाए गए। दवा माफिया और अस्पतालों ने मिलीभगत से गैर जरुरतमंद मरीजों को भी रेमडेसिविर इंजेक्शन लगाए तो कई गंभीर मरीज इसके कृत्रिम अभाव के शिकार बने। महामारी को अवसर बनाने वालों के साथ भ्रष्ट अधिकारियों और लापरवाह सिस्टम के कारण भी कई मरीजों को नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन लगाए गए। इसकी सच्चाई केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा कराई गई जांच में सामने आई है। दरअसल करीब 6 महीने (जून 21 से दिसंबर 21) तक मरीजों को नकली रेमडेसिविर लगाए जाते रहे। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक शिकायत पर जांच टीम बनाई थी। जिसकी जांच में सामने आया कि जून 2021 को पंजाब पुलिस ने रोपड़ से नकली रेमडेसिवर इंजेक्शन की खेप पकड़ी थी। पुलिस ने इसके सैंपल जांच के लिए हिमाचल की बद्दी लैब भेजे। वहां से ये सैंपल कोलकाता स्थित सेंट्रल ड्रग्स लैबोरेटरी में भेज दिए गए। ष्टष्ठरु ने जांच में पाया कि इनमें रेमडेसिविर ड्रग है ही नहीं यानी ये नकली हैं। ये रिपोर्ट तुरंत भेजने के बजाए लैब दिसंबर 21 तक दबाए रही जबकि नवंबर 21 में इंजेक्शन एक्सपायर हो गए, ताकि नए सैंपल न लिए जा सकें। जांच में पता चला कि सीडीएल ने सिर्फ इसी केस में नहीं, बल्कि कई और नमूनों की जांच में भी एक्सपायरी डेट के बाद अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।

छत्तीसगढ़ में भी नकली रेमडेसिविर खपाने की आशंका

छत्तीसगढ़ में भी रेमडेसिविर के कालाबाजारी की बड़ी संख्या में आए मामले और कोरोना से संक्रमित मरोजों के परिजनों द्वारा 35-40 हजार में इंजेक्शन खरीदे. रेमडेसिविर का कृत्रिम अभाव पैदाकर इंजेक्शन की कालाबाजारी की गई और मरोजों को दस गुना ज्यादा रेट पर इंजेक्शन खरीदने के लिए मजबूर किया गया। इस मामले में अस्पतालों के साथ दवा कारोबारियों और मेडिकल फिल्ड से जुड़े लोगों के अलावा कुछ ऐसे लोग जो लोगों को सुविधा पहुंचाने के नाम पर मुनाफा कमाने का धंधा चलाने वालों की भूमिका संदिग्ध है। जिसकी पड़ताल करने की जरूरत है। पुलिस ने कालाबाजारी के मामले में पकड़े गए आरोपियों से सख्ती से पूछताछ करती तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते थे लेकिन पुलिस ने मामूली धाराओं में कार्रवाई कर महज खानापूर्ति की वहीं ड्रग विभाग ने इन मामलों में कोर्ट में केस लगाकर जिम्मेदारी की इतिश्री कर ली, जबकि पकड़े गए आरोपियों से कड़ी पूछताछ कर उनके पीछे सक्रिय लोगों को बेनकाब किया जाना था। इस पूरे मामले में अस्पतालों की भूमिका की सख्ती से जांच की जानी चाहिए। ड्रग विभाग ने शुरु की जांच सहायक औषधी नियंत्रक कमलकांत पाटनवार के अनुसार ड्रग विभाग ने जांच शुरु कर दी है। अप्रैल में जब सरकारी स्तर पर रेमडेसिविर इंजेक्शन की उपलब्धता कराई जा रही थी, उस समय यहां की एजेंसी ने क्यों सूरत की एजेंसी को ऑर्डर दिया। इसकी जांच की जा रही है।

रायपुर की एजेंसी ने भी दिया था आर्डर

राजधानी रायपुर की एक दवा फर्म ने भी उसी फर्म को रेमडेसिविर इंजेक्शन का ऑर्डर दिया था, जिसने देश भर में 1 लाख से ज्यादा नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन खपाए हैं। रायपुर की डायमंड एजेंसी ने पहली खेप में 200 रेमडेसिविर इंजेक्शन का ऑर्डर मुख्य आरोपी कौशल वोरा की फर्म आदिनाथ डिस्पोजल को दिया था। डायमंड एजेंसी ने बतौर एडवांस आदिनाथ डिस्पोज़ेबल के खाते में 6,80,400 रुपये ट्रांसफर किया था। गुजरात की आदिनाथ डिस्पोजल को रेमडेसिविर इंजेक्शन का आर्डर देने वाली डायमंड एजेंसी से भी पुलिस को कड़ी पूछताछ करनी चाहिए थी कि आखिर उसे इस कंपनी के बारे में कहां से जानकारी मिली। किसके माध्यम से खरीदी तय हुई। यह भी पता करना चाहिए कि डायमंड एजेंसी के अलावा क्या किसी और भी स्थानीय एजेंसी ने उक्त कंपनी से इंजेक्शन खरीदी है, अगर खरीदी है तो क्या उसकी डिलिवरी मिली और यदि डिलिवरी मिली तो इंजेक्शन कहां खपाए गए इसकी भी पड़ताल की जानी चाहिए। जाहिर जब शहर के एक एजेंसी ने उक्त कंपनी को इंजेक्शन के आर्डर दिए तो कई और एजेंसियां भी होंगी जिसे उक्त एजेंसी के बारे जानकारी रही हो और उसने भी इंजेक्शन के लिए आर्डर दिए हों. पुलिस को अब रेमडेसिविर की कालाबाजारी और नकली इंजेक्शन दोनों मामलों में बारीकी से जांच करने की जरूरत है ताकि आपदा को अवसर बनाकर लोगों को लूटने वाले बेनकाब हो सकें।

कालाबाजारी के मामलों को पुलिस ने हल्के में लिया

राजधानी की पुलिस ने रेमडेसिविर कालाबाजारी के मामले को बड़े ही हल्के में लिया और आरोपियों को 151 जैसी मामूली धारा लगाकर जमानत पर छुटने दिया। जबकि अगर पकड़े गए आरोपियों को रिमांड पर लेकर कड़ी पूछताछ की जाती तो बड़े चेहरे बेनकाब हो सकते थे। लेकिन न ही सरकार ने और नही पुलिस ने कालाबाजारी को मामलों को गंभीरता से लिया। कालाबाजारी में दवा कारोबार से जुड़े लोग और अस्पतालों की भूमिका संदिग्ध रही है, इसकी पड़ताल की जानी चाहिए थी। इससे राजधानी और अन्य शहरों में इस्तेमाल किए गए रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी कहां से हो रही है और इंजेक्शन नकली है या असली इसका सच सामने आ सकता था। लेकिन पुलिस बड़े अस्पताल प्रबंधनों और राजनीतिक संरक्षण वाले जिम्मेदारों पर हाथ डालने से बचने के लिए कालाबाजारी के मामलों में खानापूर्ति करती रही। आरोपियों पर रासुका लगाकर मप्र पुलिस की तरह कार्रवाई करनी चाहिए थ। शिकायतकर्ता डायमंड एजेंसी से पूछताछ खानापूूर्ति ही रही। रायपुर शहर में और कितने लोगों ने नकली रेमडेसिविरि के लिएआर्डर दिए और माल मंगवाए इसकी जांच जरूरी थी।

मध्यप्रदेश पुलिस ने जांच में दिखाई थी तत्परता

मप्र पुलिस ने नकली रेमडेसिविर मामले में तत्परता दिखाते हुए बिना किसी दबाव और परवाह किए कि प्रदेश में भाजपा की सरकार एवं आरोपी आरएसएस का बड़ा नेता है कानूनी कार्रवाई करने में देर नहीं की। अपराध दर्ज कर अपराधी को न सिर्फ गिरफ्तार किया अपितु रासुका लगाकार उसकी सारी संपत्ति को बुलडोजर से जमींदोज कर दिया।

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