छत्तीसगढ़ी भाषा अस्मिता और लोक संस्कृति को पहचान दिलाने में डॉ.नरेन्द्र देव वर्मा का योगदान अमूल्य: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल

मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ राज्य-गीत के रचयिता डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा को उनकी जयंती पर किया नमन

Update: 2020-11-03 11:45 GMT

रायपुर:- मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रसिद्ध साहित्यकार, भाषाविद् और छत्तीसगढ़ राज्य-गीत के रचयिता डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा को उनकी जयंती पर उन्हें नमन किया है। 4 नवम्बर को डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा की जयंती है। मुख्यमंत्री ने डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा को याद करते हुए कहा है कि डॉ. वर्मा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने कवि, चिंतक, उपन्यासकार, नाटककार, सम्पादक और मंच संचालक जैसी कई भूमिकाओं में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। अंग्रेजी में भी उन्होंने अपनी रचनाएं लिखीं। अपनी ओजपूर्ण वाणी और अकाट्य तर्कों से वे किसी को भी पलभर में प्रभावित करने की क्षमता रखते थे। युवा उत्सव के समारोह में उन्होंने अपने विचारों से तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू को भी गहराई तक प्रभावित किया था। 'अरपा-पइरी के धार, महानदी हे अपार......' के रूप में उन्होंने अमर रचना दी है, जिसमें छत्तीसगढ़ महतारी का वैभव एक बारगी साकार हो उठा है। यह गीत डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा की पहचान और छत्तीसगढ़ का मान बन गया है। उनकी कलम से निकला यह गीत राज्य गीत के रूप में आज बस्तर से लेकर सरगुजा तक छत्तीसगढ़वासियों की आत्मा का गान बन चुका है। छत्तीसगढ़ की ऐसी वंदना उनका सच्चा सपूत ही कर सकता है।

भूपेश बघेल ने कहा कि डॉ.नरेंद्र देव वर्मा ने जो भी लिखा, वह लोगों की अंतरआत्मा में उतर गया। उनकी रचनाओं में छत्तीसगढ़ के जनजीवन तथा संस्कृति का सजीव चित्रण मिलता है। उनके हिंदी उपन्यास 'सुबह की तलाश' जब छत्तीसगढ़ी में अनुवाद के बाद ''सोनहा बिहान'' के रूप में लोगों के बीच रंगमंच के माध्यम से पहुंचा, तब इसने आम लोगों में सुनहरी सुबह के साकार होने की आशा जगा दी। सही अर्थों में वे छत्तीसगढ़ के सोनहा बिहान के स्वप्नदृष्टा थे। उन्होंने ''छत्तीसगढ़ी भाषा व साहित्य का उद्विकास'' विषय पर शोध किया और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने छत्तीसगढ़ी गीत संग्रह 'अपूर्वा', हिंदी उपन्यास 'सुबह की तलाश' जैसे कई ग्रंथों की रचना की। उनका लिखा 'मोला गुरु बनई लेते छत्तीसगढ़ी प्रहसन' अत्यंत लोकप्रिय हुआ। डॉ. वर्मा ने छत्तीसगढ़ी भाषा-अस्मिता को बनाए रखने और यहां की संस्कृति को विशिष्ट पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। श्री बघेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए उनका यह अमूल्य योगदान हमेशा याद किया जाता रहेगा।

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