सीएम की मंशा पर डॉक्टर और जेनरिक मेडिकल स्टोर्स वाले फेर रहे है पानी

Update: 2022-11-04 05:48 GMT

थोक में खुले जेनरिक मेडिकल स्टोर्स का नहीं मिल रहा लाभ

जेनरिक की सस्ती दवाई सामान्य मेडिकल स्टोर्स वालों को बेचने की खबर

आमजनता को नहीं मिल रही जेनरिक दवाइयों का लाभ-कुछ है तो कुछ नहीं है

जेनरिक दवाई लिखने में सरकारी और निजी अस्पताल के डॉक्टर बरत रहे है कोताही

अस्पताल संचालक की खुद की दवा कंपनी, कैसे लिखेगें जेनरिक दवाई

राजधानी के एक नर्सिंग होम संचालक जिनके भाई शहर के नामचीन बिल्डर हैं उनकी खुद की दवा कंपनी है। उनके अस्पताल में सिर्फ उनकी ही कंपनी की दवा लिखी जाती है है जो उनके ही मेडिकल स्टोर्स में मिलती है। उनसे जेनरिक दवाई लिखने की उम्मीद कैसे की जा सकती है। ऐसे अस्पताल संचालक शासन के आदेशों को धता बता रहे हैं। यदि प्रशासन कड़ाई से और ईमानदारी से जाँच करे तो गंभीर मामला उजागर हो सकता है।

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देशानुसार स्वास्थ्य विभाग यूनिवर्सल हेल्थ स्कीम लागू करने की तैयारी में है जिसके तहत छत्तीसगढ़ के लोगों का इलाज, जांच और दवा नि:शुल्क मिलेगा। यह हेल्थ स्कीम छग के सभी लोगों के लिए होगा। इस स्कीम में प्रयामरी, सेकेंडरी, क्रिटिकल और सुपरस्पेशियलिटी जैसे इलाज भी शामिल होंगे। किसी भी सरकारी अस्पताल में जाने पर मरीज को जांच,इलाज और दवा के लिए किसी प्रकार का पैसा खर्च करना नहीं पड़ेगा। सीएम भूपेश के संवेदनशीलता के वजह से ही छग के सभी शहरों जगह-जगह जेनरिक मेडिकल स्टोर्स खोला गया है। जिसके तहत प्रदेश में आम जनता को सस्ती दवाई उपलब्ध हो रही है लेकिन मेडिकल स्टोर्स के संचालक अधिक मुनाफा के लालच में अधिकतर दवाओं को अन्य मेडिकल स्टोर्स वालों को सेल कर दे रहे हैं। वही डाक्टर जेनेरिक दवाई लिख ही नहीं रहे हैं। अगर लिख भी दिए तो दस दवाइयों में केवल चार से पांच दवाइयां ही मिलती है। जबकि शासन का स्पष्ट आदेश है की अधिक से अधिक जेनेरिक मेडिसिन ही लिखा जावे। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मंशानुसार गरीब और आम जनता को सस्ती दवाई जेनेरिक मेडिकल स्टोरों में मिल ही नहीं रहा है।

मेडिकल स्टोर्स के संचालक जेबें भर रहे

जेनरिक दवाएं गरीबों को राहत देने के बजाय मेडिकल स्टोर संचालकों की जेब भर रही हैं। जेनरिक और एथिकल दवाओं को अलग-अलग पहचान पाना आम जनता के बस में नहीं है ये सिर्फ मेडिकल स्टोर्स संचालक और अस्पताल वाले ही समझ सकते हैं। डाक्टरों को सख्त निर्देश के बावजूद भी वे जेनेरिक दवाई लिखने में आनाकानी कर रहे हैं क्योकि जेनेरिक दवाओं में उनका मुनाफा कम होता है और ब्रांडेड दवाओं में ज्यादा। दवा विक्रेता जम कर इसी का फायदा उठा रहे हैं। वे जेनरिक दवा बनाने वाली कंपनियों से सस्ती दर पर दवाएं खरीदकर उन्हें ब्रांडेड के नाम पर महंगे दाम में बेच रहे हैं।मेडिकल स्टोर्स के संचालक सस्ती दवाओं के नाम पर अतिरिक्त और अवैध कमाई करते हैं।

सरकार की मंशा पर पानी फेर रहे

भूपेश सरकार ने मरीजों को सस्ती दवा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से जेनरिक दवाओं को बढ़ावा देने की नीति बनाई है। जिसके तहत जगह जगह मुख्य मार्गो पर श्री धन्वन्तरी जेनेरिक मेडिकल स्टोर्स खोले गए हैं। उनकी मंशानुसार गरीब मरीजों और आम जनता को सस्ती दवा उपलब्ध करना है लेकिन छूट का दुरूपयोग किया जा रहा है। नर्सिंग होम संचालक वही दवा लिख रहे हैं जिसमे उनको ज्यादा मुनाफा होता है। कमाई के चक्कर में डाक्टर भी सरकार के फरमान को नजर अंदाज़ कर रहे हैं। इससे सस्ती दवाओं का वास्तविक फायदा मरीजों तक नहीं पहुंच रहा।

जेनेरिक दवाओं में लिखा हुआ हो

कायदे से अगर मरीजों को वाकई फायदा पहुंचना है तो जेनेरिक मेडिसिन में ब्रांड नहीं लिखा रहना चाहिए। सिर्फ मॉलिक्यूल का नाम लिखा रहना चाहिए। जेनेरिक मेडिसिन में स्पस्ट रूप से जेनेरिक मेडिसिन लिखा हुआ होना चाहिए। अभी नहीं लिखा होने का फायदा मेडिकल स्टोर्स वाले खुले रूप से उठा रहे हैं। मजे की बात ये है कि एक सामान्य व्यक्ति के लिए यह पहचान पाना लगभग नामुमकिन है कि कोई सी दवा जेनरिक है और कौन सी ब्रांडेड। अभी मार्किट में जेनेरिक लिखा दवाई की स्ट्रिप नहीं आ रही है। जिसका भरपूर फायदा मेडिकल स्टोर्स के संचालक कर रहे हैं।

ग्रामीण क्षेत्र के मरीज हो रहे हलाकान

जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं के चक्कर में ग्रामीण क्षेत्रो के मरीज और आम जनता ज्यादा परेशान हो रहे हैं। उन्हें जेनेरिक और ब्रांडेड में फर्क करना मुश्किल होता है। वैसे भी आम आदमी भी इन सबमे फर्क महसूस नहीं कर सकता ये सिर्फ मेडिकल स्टोर्स वाले ही समझते हैं। 

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