दुर्ग। प्रदेश में दिव्यांग छात्र-छात्राओं की शिक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए प्रदेश आरसीआई पंजी. वि.वि. संघ की अध्यक्ष मोनिका साहू ,किरण दुबे सहित अन्य शिक्षकों ने प्रदेश शासन में दिव्यांगजन आयुक्त को ज्ञापन सांैपकर मांग कि है कि राज्य सरकार द्वारा अपने आगामी नजर में दिव्यांग बच्चों के शिक्षण के लिए सात सूत्रीय गाईड लाईन का पालन करते हुए विशेष शिक्षकों की भर्ती की जाए। बतया गया कि प्रदेश में सबसे अधिक 2786 दिव्यांग बच्चे दुर्ग जिला में है, जिनके लिए सरकारी स्तर पर एख भी स्कूल नहीं हैं। ज्ञात हो कि 5 साल पहले सरकारी स्तर पर संचालित एक मात्र दिव्यांग स्कूल को फंड के अभाव में बंद कर दिया गया। वह भी राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के विधानसभा क्षेत्र पाटन के अंतर्गत ग्राम अखर में संचालित थआ। यह एक आवासीय विद्यालय था, जो विशेष आवश्यक वाले बच्चों के लिए संचालित था।
श्रीमती साहू ने ज्ञापन में कहा कि शिक्षा का अधिकारी कानून लागू होने के बाद शासकीय स्कूलों में सामान्य एक विशेष बच्चों के बड़ी संख्या में प्रवेश दिया गया है, वहीं उन स्कूलों में अभी तक विशेष शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की गई है, और न ही इस ओर कोई ठोस पहल हुआ है। जिसके चलते विशेष बच्चों को जनरल प्रमोशन के तहत आठवी पास करा दिया जाता है।
उन्होंने बताया कि इसके बाद लाखों दिव्यांग बच्चे ड्राप-आऊट हो जाते है। तथा बच्चे उच्च स्तरीय शिक्षा के वंचित हो जाते हैं। यह इनके भविष्य के साथ खिलवाड़ है। वहीं सरकारी स्कूलों में दिव्यांग बच्चों के लिए नही सुलम सशाधन है और न ही विशेष शिक्षक ऐसे में शासन द्वारा इनका स्कूलों में प्रवेश देना एवं नौकरी में आरक्षण की बात करना इन बच्चों के साथ, छलावा व ढोंग हैं।
बताया गया कि गत वर्ष 28 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांग बच्चों के शिक्षण के लिए केंद्र राज्य सरकार को गाइड लाईन जारी करते हुए उ्रके शिक्षा, पुनरवास, हेतु राज्य आयुक्त को जांच के निर्देश सहित सात सूत्रीय मांग दर्शिका जारी किया। जिसमें इन बच्चों के लिए विशेष शिक्षकों की स्थायी भर्ती आदि सुनिश्चित करना है। श्रीमती साहू ने बताया कि अब तक इसके अनुपालनार्थ छत्तीसगढञ में कोई कार्यवाही नजर नहीं आ रही हैं। साथ ही उन्होंने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, शिक्षा मंत्री, मुख्यमंत्री सहित कई विभागों को ज्ञापन सांैपकर उक्त स्थिति से अवगत कराते हुए इस पर जल्द कार्यवाही की मांग की।
ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने गत सप्ताह इस पर सुनवायी करते हुए कहा कि स्कूलों में दिव्यांग बच्चों के लिए संविदा के आधार पर शिक्षक नियुक्त कर देते है जिनका कार्यकाल अनिश्चित होता है। सुप्रीम कोर्ट ने विशेष स्कूलों के लिए छात्र शिक्षक अनुपात के मान दंडों व मानको को तत्काल अधिसूचित करने कहा। उन विशेष शिक्षकों के लिए अलग मानदंड हो, जो सामान्य स्कूल में पठ रहे विशेष बच्चों को शिक्षा दे सकते हैं। उचित अनुपात में विशेष शिक्षकों के स्थायी पद सुजित करने के लिए पुनर्वास विशेष शिक्षकों के लिए सक्षम प्राधिकारी से निर्देश लिया जाए। नियमित आधार पर पुनर्वास पेशेवरों, विशेष शिक्षकों के लिए नियुक्ति प्रक्रिया शुर कर इस आर्देश की तारीख से 6 महीने के भीतर पूरा किया जाए। प्रशिक्षण स्कूलों बिना विशेष विशेष प्रशिक्षित शिक्षकों की संख्या बढ़ान के दौरान सरकार से अनुदान और मान्यता के लिए इस संबंध में जारी मानको की पालन सुनिश्चित करनी होगी। वही पर्याप्त संख्या में विशेष शिक्षकों की नियुक्ति स्कूलों में तत्कालीन व्यवस्था के रूप में विशेष प्रशिक्षित शिक्षकों की सेवाओं का लाभ उठाया जा सकता है। सामान्य विधालयों में अन्य शिक्षकों एवं कर्मचारियों को अनिवार्य प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और यदि दिव्यांग बच्चों के प्रवेश दिया जाता है तो स्कूलों को उन्हें संचालने के लिए संवेदन शील बनाया जाना चाहिए। इसके अलावा उपलब्ध अध्यापकों के बेहतर उपयोग के लिए अधिकारी अव्यवहार्य विशेष स्कूलों को पड़ोस के अपेक्षाकृत व्यवहार्य विशेष स्कूलों के साथ विलय करने की संभावना पर भी विचार कर सकते हैं।
वही दिव्यांग बच्चों की जिलास्तर परबात करें तो इसे विडबना ही कहां जायगा कि जिले में सरकारी स्तर पर एक भी स्कूल संचालित नही है, जबकि जिले में 6 से 20 वर्ष आयु वाले दिव्यांग बच्चों की संख्या 2700 से अधिक बतायी जाती है। भले ही दिव्यांग बच्चों को सरकारी स्तर पर उनकी आवश्यकता अनुसार उपकरण या अन्य संशाधन उपलब्ध होता हो मगर शिक्षा के मुख्य धार से जोडऩे के लिए अब तक कोई ठोस उपाय नहीं किए गए हैं। वहीं दिव्यांग व बच्चों के लिए प्रायवेट स्तर पर 9 स्कूल संचालित है। इन्ही स्कूलों में अधिकांश बच्चे अध्ययनरत हैं। सरकारी स्तर पर ऐसे बच्चों को चिन्हांकित कर उनकी पढ़ाई का जिम्मा बी.आर.पी. को दिया गया है। वे संविदा पर कर्मचारी नियुक्त करते हैं। ये कर्मचारी बच्चों के पालकों से संपर्ककर उन्हें पढ़ाई का तौर तरीका बताते है, या सरकारी स्कूलों में सामान्य बच्चों के बीच बैठाकर उन्हें शिक्षा देते हैं। जो पर्याप्त नहीं है। इन बच्चों का जिला स्तर पर संपूर्ण संसाधन के साथ आवासीय विद्यालय के पहल से ही बेहतर शिक्षा देकर इनका मानसिक व शारीरिक विकास किया जा सकता हैं।