बायोटॉयलेट में करोड़ों फूंके, लोग नहीं कर रहे उपयोग

Update: 2021-01-25 06:19 GMT

राजधानी में स्वच्छ भारत योजना के तहत बनाए गए हैं डेढ़ दर्जन से ज्यादा बायोटॉयलेट

जसेरि रिपोर्टर

रायपुर। राजधानी में नगर निगम और स्मार्ट सिटी रायपुर प्रबंधन ने स्वच्छ भारत योजना के तहत लगभग डेढ़ दर्जन जगहों पर बायोटॉयलेट का निर्माण कराया है। बायोटॉयलेट के निर्माण में करोडो खर्च किये गए। लेकिन लोग इसका इस्तेमाल नहीं कर रहे है और ना ही लोगों को इसके इस्तेमाल का तरीका पता है। परिणाम स्वरूप देखरेख और मेंटेंनेंस के अभाव में बायोटॉयलेट धुल-धुसरित होकर बेकार हो रहे है। जिन जगहों पर उसका निर्माण किया गया है उस पर लोग कब्ज़ा कर रहे है। दुकान लगा रहे है। इससे भी लोग इसका इस्तेमाल नहीं करते है। कुल मिलाकर करोडो की यह योजना लोगों के लिए बेकार साबित होने के साथ निगम की फिज़़ूलख़र्ची साबित हो रही है।

आम जनता को हुआ आर्थिक नुकसान : शहर में बने बायोटॉयलेट का इस्तेमाल ना होने की वजह से आम जनता के पैसों का काफी नुकसान होने लगा है। राजधानी को स्वच्छ और सुंदर बनाने के लिए नगर निगम और स्मार्ट सिटी ने मिलकर बायोटॉयलेट का निर्माण करवाया है। ये टॉयलेट लोगों के इस्तेमाल के लिए बना है। ऐसा बायोटॉयलेट रायपुर शहर में हर चौक-चौराहों पर एक न एक बना ही हुआ है। मगर कोई इसका इस्तेमाल तो करता ही नहीं है। लोगों को ये तक नहीं पता कि बायोटॉयलेट का इस्तेमाल कैसे करना है ?

बायोटॉयलेट पर ठेले वालों का अवैध कब्ज़ा : शहर के लोगों द्वारा काम-काज करने के बजाय एक ठेले वाले के पीछे दूसरा ठेला लगाकर धंधा करने में बहुत दिलचस्पी दिखती है। मगर सच तो ये है कि बायोटॉयलेट के बाहर ही कुछ ठेले वाले अपना अवैध कब्ज़ा कर लेते है। नगर निगम द्वारा हटाए जाने के कुछ दिन बाद फिर से नया ठेला और नया सामान लेकर बायोटॉयलेट के सामने कब्ज़ा करने बैठ जाते है। ठेले और फुटपाथ पर दुकानें लगने की वजह से राहगीरों का पैदल सड़क पार करना मुश्किल हो रहा है।शहर के सब्जी मंडी रोड और सदर बाजार में फुटपाथ पर दुकानदार पूरी तरह से कब्जा किए हुए हैं। इनका सामान फुटपाथ के बाहर तक सजा रहता है। फुटपाथ के बाद नाली और इसी से सटकर सड़क बनी हुई है। सड़क पर कोई हाथ ठेला लगाकर तो कोई तखत रखकर दुकान सजाए हुए हैं। इसके बाद घूम-घूमकर सामान बेचने वाले हाथ ठेले खड़े हो रहे हैं। इन हालातों में आवागमन करने के लिए सड़क नाममात्र के लिए बचती है। ऐसे में वाहनों को खड़ा किए जाने के लिए तो जगह ही नहीं बच रही है।

बायोटॉयलेट में नशेड़ी लोगों का मचा आतंक : शहर में निर्माण किये गए बायोटॉयलेट में कुछ नशेड़ी लोग रात भर बैठकर नशा करते दिखते है। सड़क पर रोज सुबह से लेकर रात तक फुटकर दुकानें सजती हैं। ये दुकाने बायोटॉयलेट के आस-पास और उसके दरवाजे के ठीक सामने लगते है जिससे आम लोगों को आने-जाने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसके चलते टॉयलेट का इस्तेमाल भी नहीं हो पाता। अब नशेडिय़ों ने रात को बायोटॉयलेट को ही नशे का अड्डा बना लिया है और वहीँ शराब की बोतलें फोड़ कर इलाके में आतंक मचाते है।

स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में लगे करोड़ों रूपये बर्बाद : शहर के स्मार्ट सिटी और नगर निगम ने दर्जनों बायोटॉयलेट का जगह-जगह निर्माण कराया। लेकिन कुछ महीने बाद ही तकरीबन सारे टॉयलेट पूरी तरह बर्बाद हो गये। इसमें जांच-पड़ताल भी नहीं हुई और मामला रफा-दफा हो गया। किसी भी शहरी को ये पता नहीं चला कि बायोटॉयलेट किसको फायदा देकर बर्बाद हुआ। स्मार्ट सिटी रायपुर करोड़ों की इस योजना को संभाल नहीं सकी।

शहर के सार्वजनिक स्थानों पर लोगों को शौचालय की समस्या से निजात दिलाने के लिए बायोटॉयलेट बनाया गया था। लेकिन कई स्थान ऐसे भी हैं जहां लाखों रुपए की लागत से बने इन बायोटॉयलेट पर फुटकर दुकानदारों ने कब्जा कर सामान रख लिया है। ऐसे में मंशा के अनुरूप शौचालयों का उपयोग नहीं होने से लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। सबसे ज्यादा परेशानी मंडी में आने वालों को रही है। स्थिति इतनी बदतर है कि भीड़ और ठेलों के कब्ज़ों के कारण ये शौचालय नजर भी नहीं आते। बनने के बाद कुछ दिन तो लोगों को सुविधा मिली, लेकिन इसके बाद आसपास के दुकानदारों ने बायोटॉयलेट में खाली पेटियां अन्य सामान रखकर अतिक्रमण कर लिया। वर्तमान हालात यह है कि अधिक सामान रखने से सहज ही बायोटॉयलेट नजर भी नहीं आता। जनता से रिश्ता के संवाददाता ने स्मार्ट सिटी के जनसम्पर्क अधिकारी से फोन कॉल पर बात की तो उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन के अधिकारी का नंबर दिया।

जब संवाददाता ने स्वच्छ भारत मिशन के अधिकारी को कॉल किया तो उन्होंने फिर से स्मार्ट सिटी रायपुर के अधिकारी का नंबर दिया। ऐसे अधिकारीयों का कोई सीधा जवाब जनता से रिश्ता के संवाददाता को नहीं मिला।

इस्तेमाल नहीं हो रहा बायोटॉयलेट

निगम और स्मार्ट सिटी के इस प्रोजेक्ट में करोड़ों रुपयों का खर्च हुआ मगर ये सारा पैसा बर्बाद हो गया। बायोटॉयलेट निगम और स्मार्ट सिटी की मुहीम का एक अहम हिस्सा रहा है। इसमें भारी मात्रा में लागत लगाकर बनाया गया मगर लोग इसका इस्तेमाल ही नहीं कर पा रहे है तो इतने करोड़ों रुपयों का खर्च करने का कोई औचित्य ही नहीं रहा। इसमें अगर कोई इस्तेमाल करने के लिए जाता भी है तो कैसे जाए ? क्योंकि बायोटॉयलेट के ठीक बाहर ठेले और फुटकर दुकानदारों का कब्ज़ा बना हुआ है। इससे लोगों में हिचक की भावना भी होती है और वो इसका इस्तेमाल करने नहीं जाते है। सरकार ने इस मुहीम से स्वच्छ भारत मिशन को पूरा करने की एक कोशिश जरूर की है, वो कोशिश तो पूरी हुई मगर कोशिश सफल नहीं हो पाई है। लोग इसका इस्तेमाल नहीं कर रहे है। बायोटॉयलेट में अवैध गतिविधि वाले लोगों ने अपना कब्ज़ा जमा लिया है। इसकी देखरेख करने वाला कोई नहीं जिससे लोगों को ये लगता है कि बायोटॉयलेट में जो मर्जी चाहे वो किया जा सकता है।

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