रायपुर। भारत में पुरुषों में मुंह का कैंसर सबसे आम कैंसर है। पुरुषों में होने वाले सभी कैंसर के 10% कैंसर मुंह में होते हैं। उनमे भी निचले जबड़े और गाल का कैंसर मुंह के अंदर सबसे आम हैं क्योंकि अधिकांश रोगी तंबाकू को गाल और जबड़े के बीच में रखते हैं जिसे जिंजिवोबक्कल स्पेस कहा जाता है।
भारत में अधिकांश मुह के कैंसर उन्नत स्टेज में मिलते है। इसका कारण है लोगों को इस कैंसर के लझण के बारे मे जागरूकता नहीं है एवं लंबे समय तक मरीज वैकल्पिक चिकित्सा की सहायता लेते रहते हैं जिससे बीमारी प्रथम स्टेज से चतुर्थ स्टेज मे पहुंच जाती है। अंबिकापुर के 70 वर्षीय रोगी श्री गुप्ता को कुछ महीनों से छाला था जो भर नही रहा था और निचले जबड़े के दांतों ढीले हो गए थे। शुरुआत में उनका इलाज अंबिकापुर में दर्द की और मल्टीविटामिन गोलियों से से किया जा रहा था लेकिन जब लक्षणों में सुधार नहीं हुआ तो उन्हें राम कृष्ण केयर अस्पताल, रायपुर रेफर कर दिया गया। उन्होंने अस्पताल में सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट(कैंसर सर्जन) डॉ. सौरभ जैन से मुलाकात की, जिन्होंने मरीज की जांच की और सर्जरी की सलाह दी। इसके बाद उन्हें प्लास्टिक सर्जन डॉ. सुभाष साहू से मिलने की सलाह दी गई।
दोनो सर्जन ने मिल कर सर्जरी में निचले जबड़े के मध्य खंड को हटाने और पैर की हड्डी के भाग के साथ (फ्री फीबब्युला फ्लैप) जबड़े का पुनर्निर्माण करने का प्लान किया। इस सर्जरी के दौरान माइक्रोस्कोप की सहायता से पैर की हड्डी की रक्त नलियों को गर्दन की रक्त नलियों के साथ जोड़ना पड़ता है एवं सांस लेने के लिए अस्थायी सुराग (ट्रेकीयोस्टॉमी) भी बनाना पड़ता है। सर्जरी में लगभग 8-10 घंटे लगते हैं और उसके बाद 1-2 दिन आईसीयू में और फिर एक हफ्ते तक अस्पताल में मरीज को रहना पड़ता है। सर्जरी की इस तकनीक का मुख्य लाभ यह है कि चेहरे का आकार बना रहता है और रोगी सर्जरी के बाद सामान्य आहार खाने में सक्षम होता है।
हालांकि कम उम्र के मरीजों मे यह सर्जरी आसानी से की जा सकती है लेकिन 70 साल की उम्र में यह सर्जरी करना इतना आसान नहीं है। मरीज की बेटी जो कि अंबिकापुर के एक अस्पताल में स्टाफ नर्स है, कहती हैं कि वे शुरूआत में सर्जरी की जटिलता के बारे में सुनकर डर गई थीं, हालांकि, जब वे डॉ. सौरभ जैन और डॉ. सुभाष साहू एवं राम कृष्ण केयर अस्पताल रायपुर के एनेस्थेटिस्ट और इंटेंसिविस्ट और कार्डियोलॉजिस्ट डाॅक्टर की टीम से मिलीं तो वे सर्जरी के लिए तैयार हो गईं। जैसा कि अपेक्षित था, सर्जरी के बाद मरीज में बिना किसी जटिलता के रिकवर हो गए और सर्जरी के 7वें दिन से वह नरम आहार खाने में सक्षम हो गए और उनके चेहरे का आकार पहले जैसा बना हुआ है।
कैंसर सर्जन डॉ. सौरभ जैन ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि सर्जरी मुंह के कैंसर का मुख्य उपचार है, लेकिन सर्जरी से जुड़े डर के कारण मरीज इससे भागते हैं। आज के दौर में अच्छे हास्पिटल पर होने वाली मुंह के कैंसर की सर्जरी के बाद मरीज के चेहरे मे ज्यादा बदलाव नहीं आता है और अधिकांश रोगी भोजन के बाद सामान्य आहार लेने में सक्षम हैं। अगर मरीजों का जल्द ऑपरेशन कर दिया जाए तो मुंह के कैंसर का इलाज पूरी तरह से संभव है। श्री गुप्ता सभी मुंह के कैंसर रोगियों के लिए एक प्रोत्साहन है कि उनकी उम्र में भी मुंह के कैंसर की सर्जरी पूरी तरह से सुरक्षित है और रोगी इससे काफी जल्दी ठीक हो सकते हैं।