इस अवसर पर वन मंत्री श्री मोहम्मद अकबर, कृषि मंत्री श्री रविन्द्र चौबे, गृह मंत्री श्री ताम्रध्वज साहू, पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री श्री टी.एस. सिंहदेव, स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम, नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया, खाद्य मंत्री श्री अमरजीत भगत, महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती अनिला भेंड़िया, उद्योग मंत्री श्री कवासी लखमा, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री श्री गुरू रूद्र कुमार, उच्च शिक्षा मंत्री श्री उमेश पटेल, संसदीय सचिव श्री शिशुपाल सोरी और श्री चंद्रदेव राय, छत्तीसगढ़ राज्य गृह निर्माण मंडल के अध्यक्ष श्री कुलदीप जुनेजा, छत्तीसगढ़ राज्य पाठ्य पुस्तक निगम के अध्यक्ष श्री शैलेष नितिन त्रिवेदी, मुख्य सचिव श्री अमिताभ जैन, नवा रायपुर अटल नगर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष श्री आर.पी.मंडल और प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्री राकेश चतुर्वेदी सहित अनेक वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ में संयुक्त वन प्रबंधन के जरिए वनों की सुरक्षा और विकास में वनवासियों की भागीदारी को बढ़ावा मिला है। संयुक्त वन प्रबंधन ने प्रदेश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को एक नया और सुदृढ़ आयाम दिया है। संयुक्त वन प्रबंधन के तहत राज्य की 7887 वन प्रबंधन समितियों के करीब 30 लाख सदस्य हैं। इस पुस्तक में वन प्रबंधन समितियों के कार्यों, गांव में आधारभूत सुविधाओं एवं रोजगारोंमुखी कार्यों की जानकारी प्रकाशित की गयी है। वनों से पांच किलोमीटर की परिधि में बसे गांवों के लिए प्रदेश के वन आज भी जीवन रेखा साबित हुए हैंे और संयुक्त वन प्रबंधन नीति यहां संजीवनी की तरह काम कर रही है। संयुक्त वन प्रबंधन से वनों के सतत विकास और कुशल प्रबंधन में जहां लोगों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की गयी है। समर्थन मूल्य पर लघु वनोपजों की खरीदी और तेन्दूपत्ता संग्रहण की दर बढ़ाकर चार हजार रूपए प्रतिमानक बोरा करने के संग्राहकों की आय में अच्छी-खासी बढ़ोत्तरी हुई है। इस पुस्तक में नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी योजना में वन विभाग द्वारा नरवा योजना में कराए जा रहे नदी-नालों के उपचार के कार्यो को भी प्रकाशित किया गया है। नरवा विकास के कार्यों से जल संरक्षण और संवर्द्धन को बढ़ावा मिलने के साथ-साथ वन क्षेत्र के निवासियों को रोजगार के अवसर मिल रहे हैं।
बड़ी संख्या में महिला स्व-सहायता समूह लाख पालन, शहद संग्रहण, लाख चुड़ी निर्माण, कोसा पालन, जैवी खाद उत्पादन, बांस प्रसंस्करण, सबई रस्सी निर्माण, अबरबत्ती निमार्ण, दोना-पत्तल निर्माण, लघु वनोपज संग्रहण और प्रसंस्करण जैसी आर्थिक गतिविधियों से जुड़कर आत्मनिभर्रता की ओर तेजी से बढ़ रही हैं। वन क्षेत्रों में अनेक महिला स्व-सहायत समूह डेयरी, मशरूम उत्पादन, वर्मी कम्पोस्ट निर्माण, सब्जी उत्पादन, मछली पालन, सिलाई, वन औषधि प्रसंस्करण, तिखुर प्रसंस्करण, जैविक चावल उत्पादन, जैसे कार्यों से जुड़े हैं। जशपुर में सारूडीह चाय बागान महिला स्व-सहायता समूह चाय की खेती से जुड़ है। मनोरा में काफी का रोपण किया गया है।