बीजापुर। जिला प्रशासन की अभिनव पहल पर जिले के एक हजार से अधिक बच्चे समर कैम्प (पेकोर पंडुम) के माध्यम से अपने-अपने रूचि के अनुसार 50 से अधिक गतिविधियों, प्रशिक्षित शिक्षकों के माध्यम से सीख रहे इस नवाचार से बच्चों और पालकों मे उत्साह दिख रहा है। बेलमेटल जिसे ढोकरा शिल्प कला भी कहा जाता है। जिसमें 36 बच्चे रूचि लेकर आर्कषक आकृति बनाकर खुश हैं। इसे बनाने की प्रक्रिया की बात करें तो प्रशिक्षक ने बताया कि सबसे पहले गीली मिट्टी में भूसे के मिश्रण से एक सामान्य आकृति (मूर्ति) बनाई जाती है। उसके बाद लास्ट वैक्स (मोम) को बेलन के उपयोग से मोटे धागे के आकार बना लिया जाता हैं बने हुए धागानुमा मोम को उस सामान्य मिट्टी के आकृति पर लपेट दिया जाता है।
उसके बाद कांसे की धातु को भट्टी में पिघलाकर इसकी ढलाई की जाती है बेल मेटल के बारे में प्रशिक्षक चंदन सागर ने आगे जानकारी देते हुए बताया कि बेलमेटल 5 हजार वर्षों से पुरानी कला है, इसका एक उदाहरण मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त नर्तकी की मूर्ति है। बस्तर संभाग के कोण्डागांव जिले में बेलमेटल या ढोकरा शिल्प कला यहां के आदिम जनजाति के लेाग पंरपरागत रूप से कई वर्षो से करते आ रहे हैं। बीजापुर समर कैम्प के माध्यम से बेलमेट या ढोकरा शिल्प कला से अवगत कराना व अपनी प्राचीन और गौरवपूर्ण संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने और इस कला को बच्चों को सीखाकर सभ्यता व संस्कृति के प्रति जागरूकता लाना है।