छत्तीसगढ़: प्रकाश यादव का बाइक लेने का सपना हुआ पूरा...गोधन न्याय योजना बनी सहारा
कभी-कभी कुछ ऐसा हो जाता है जिसकी उम्मीद भी नहीं होती। किसी ने नहीं सोचा था जिस गोबर की पहले कोई कीमत नहीं थी वही गोबर उनके लिए अतिरिक्त आमदनी का जरिया बन जाएगा। पाटन जनपद पंचायत आर जामगांव में मवेशी चराकर और पशुपालकों के घरों में दूध दुहकर अपना जीवन यापन करने वाले चरवाहों को गोधन न्याय योजना ने सपने देखने का साहस दिया और उम्मीद दी। गोबर बेचकर मिले रूपयों से कोई अपने घर की मरम्मत करवा रहा है तो कोई मोटरसाइकिल खरीद रहा है तो किसी को इलाज के लिए मदद मिल गई है।
गोबर बेचकर मिले रुपयों से देव सिंह यादव करवा रहे पिता का इलाज- गोधन न्याय योजना के तहत आर जामगांव के देव सिंह यादव ने गोधन न्याय योजना के तहत 8 हजार 525 किलो यानि करीब 85 क्विंटल गोबर बेचा। जिसके लिए करीब 17 हजार रुपए मिले। इन रुपयों से उन्हें पिता के इलाज के लिए मदद मिली। देव सिंह गांव में बर्दी यानि मवेशी चराकर गुजारा करते हैं जो कि इनका पैतृक काम है। जिसमें इनके बुजुर्ग पिता राम जी यादव भी इनका सहयोग करते हैं। जब हम आर जामगांव पहुंचे तो उनकी पत्नी मीना बाई से हमारी मुलाकात हुई, क्योंकि देवी सिंह बर्दी चराने गए हुए थे।
मीना बाई ने बताया कि उनके ससुर रामजी यादव को लंबे समय से पैरों में तकलीफ रहा करती थी एक दिन मवेशी चराते-चराते वह गिर पड़े जिसकी वजह से उन्हें तकलीफ और बढ़ गई। ऐसे में इलाज बहुत जरूरी हो गया। गोधन न्याय योजना से मिले कुछ रुपयों से उन्होंने अपने घर की मरम्मत करवाई और बाकी से ससुर का इलाज करवा रहे हैं। मीना बाई ने बताया गोधन न्याय योजना के पहले वो और उनकी सास गांव में गोबर बीनकर उसे इकट्ठा करतीं और उनसे कंडे तैयार करतीं थी। लगभग खरही कंडों के लिए 1 हजार से 12 सौ रुपए मिल जाते थे। एक खरही कंडों के लिए एक ट्रेक्टर ट्राली मानकर चलिए करीब 3 टन गोबर लग जाता था दिन भर की मेहनत अलग। लेकिन गोधन न्याय योजना के तहत 1 किलो गोबर के लिए 2 रुपए मिल रहे। इस लिहाज से 3 टन गोबर से 6 हजार रुपए की आमदनी यानि कि चरवाहों को 4 से 5 गुना अधिक कीमत मिल रही है। मीना बाई कहती हैं कभी नहीं सोचा था गोबर बेचकर इतने रुपए मिलेंगे।
गोबर बेचकर प्रकाश यादव ने अपना बरसों पुराना मोटरसाइकिल लेने का सपना पूरा किया- राज्य शासन की एक पहल ने न जाने कितने लोगों के सपने पूरे किए हैं। आर जामगांव के प्रकाश यादव का परिवार भी मवेशी चराकर ही गुजारा करता है। प्रकाश और उनके भाई प्रवीण का बरसों से सपना था कि उनके पास खुद की मोटरसाइकिल हो लेकिन एक चरवाहे के लिए यह सपना बहुत बड़ा था। लेकिन गोधन न्याय योजना से उनका ये सपना सच हुआ। इस बार गांव में सबसे ज्यादा 13 हजार 381 किलो यानि करीब 133 क्विंटल गोबर प्रकाश यादव ने ही बेचा है। जिससे प्रकाश यादव को करीब 27 हजार की आमदनी हुई जिसकी मदद से उन्होंने मोटरसाइकिल खरीदी। डाउन पेमेंट देकर दीपावली के दिन जब नई मोटरसाइकिल घर आई तो परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई।
दो चरणों मे 92 हजार 224 किलो गोबर खरीदा गया
गोबर विक्रेताओं को 1 लाख 84 हजार से अधिक का भुगतान-
यहां के सरपंच राजकुमार ठाकुर ने बताया कि चरवाहों के लिए ये योजना बहुत फायदेमंद साबित हुई है। क्योंकि गोबर एक तरह की से उनकी आय का जरिया बन गया है पहले इस गोबर से वह कंडे बनाते थे जिसे भेजकर उन्हें थोड़े रुपए मिल जाते थे। लेकिन अब सीधे गोबर बेच कर उनको पहले से ज्यादा आमदनी होने लगी है। ग्राम पंचायत सचिव नरेश महतो बताते हैं कि अब तक यहाँ 92 हजार 224 किलोग्राम यानि 92.22 टन गोबर खरीदी हुई है। पहले चरण में सोसायटी के माध्यम से 39 गोबर विक्रेताओं से 23.58 टन गोबर खरीदा गया जिसके लिये उन्हें 47 हजार से अधिक का भुगतान किया गया। दूसरे चरण में 67 गोबर विक्रेताओं से 68.64 टन गोबर खरीद कर 1 लाख 37 हजार रुपए से अधिक का भुगतान गोबर विक्रेताओं को किया गया है। उन्होंने बताया कि यहां 20 जुलाई से गोबर खरीदी शुरू हुई थी लेकिन गौठान में जगह नहीं होने के कारण बीच में खरीदी रोक दी गई थी। जब से गांव में महिला स्व सहायता समूहों ने गोबर से वर्मी कंपोस्ट खाद तैयार करना शुरू किया है तब से गोबर की खपत बढ़ी है । इसलिए फिर से गोबर खरीदी प्रारंभ की गई है।
गोबर विक्रेताओं को 1 लाख 84 हजार से अधिक का भुगतान-
यहां के सरपंच राजकुमार ठाकुर ने बताया कि चरवाहों के लिए ये योजना बहुत फायदेमंद साबित हुई है। क्योंकि गोबर एक तरह की से उनकी आय का जरिया बन गया है पहले इस गोबर से वह कंडे बनाते थे जिसे भेजकर उन्हें थोड़े रुपए मिल जाते थे। लेकिन अब सीधे गोबर बेच कर उनको पहले से ज्यादा आमदनी होने लगी है। ग्राम पंचायत सचिव नरेश महतो बताते हैं कि अब तक यहाँ 92 हजार 224 किलोग्राम यानि 92.22 टन गोबर खरीदी हुई है। पहले चरण में सोसायटी के माध्यम से 39 गोबर विक्रेताओं से 23.58 टन गोबर खरीदा गया जिसके लिये उन्हें 47 हजार से अधिक का भुगतान किया गया। दूसरे चरण में 67 गोबर विक्रेताओं से 68.64 टन गोबर खरीद कर 1 लाख 37 हजार रुपए से अधिक का भुगतान गोबर विक्रेताओं को किया गया है। उन्होंने बताया कि यहां 20 जुलाई से गोबर खरीदी शुरू हुई थी लेकिन गौठान में जगह नहीं होने के कारण बीच में खरीदी रोक दी गई थी। जब से गांव में महिला स्व सहायता समूहों ने गोबर से वर्मी कंपोस्ट खाद तैयार करना शुरू किया है तब से गोबर की खपत बढ़ी है । इसलिए फिर से गोबर खरीदी प्रारंभ की गई है।