आरटीआई पर जानकारी न देकर घोटालों पर पर्दा डाल रहा छग हाउसिंग बोर्ड

Update: 2021-02-08 05:18 GMT

भ्रष्ट अधिकारी अपने काले कारनामें छुपाने मांगी जानकारी नहीं देते आवेदकों को गुमराह करने गलत जानकारी देने से भी नहीं हिचकते

रायपुर। सरकार की पारदर्शिता की मानिटरिंग करने आम नागरिकों को सूचना के अधिकार देने वाले सूचना आयोग के नियम कानून के पालन की धज्जियां उड़ाने में हाउसिंग बोर्ड के अधिकारियों का कोई जवाब नहीं है। कोई भी जानकारी सूचना के अधिकार से मांगने पर तुरंत एक रटारटाया जवाब आता है कि आपने जो जानकारी दी है वो हमारे पास उपलब्ध नहीं है। साथ ही यह सुझाव भी लिखकर आता है कि अलग-अलग विषयों की जानकारी चाहने पर अलग अलग आवेदन करें। आपने जो आवेदन लगाया है, वह जवाब देने योग्य हाउसिंग बोर्ड के बाइलाज के अनुसार नहीं है। फिर सूचना के अधिकार का क्या औचित्य है, हाउसिंग बोर्ड के अधिकारी इसी कानून का फायदा उठाकर पिछले 20 सालों से सूचना के अधिकार से मांगी गई जानकारी देने से बचे रहे है। सूचना के अधिकार की जानकारी मांगने के लिए सूचना आयोग की मदद लेनी पड़ती है। उसके बाद भी वहां के भ्रष्ट अधिकारी अपने काले कारनामों को छुपाने के लिए गलत जानकारी देकर आवेदक को गुमराह करते है। सूचना आयोग छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड के अधिकारियों की मनमानियों पर कोई लगाम नहीं कस रहा है नतीजा अनियमितताओं पर परदा डालने सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारियां देने में भी अधिकारी आनाकानी कर रहे हैं। आवेदनों पर जवाब में देरी के साथ गैरजरुरी कारण दर्शा कर जानकारी नहीं दी जा रही है। सूचना के अधिकार के तहत ऐसे कई आवेदन हाउसिंग बोर्ड के जनसूचना अधिकारी कोई-न-कोई कारण बताकर लौटा चुके हैं। पिछले दिनों सिंचाई कालोनी शांतिनगर के रिडेव्लपमेंट योजना से संबंधित आवेदनों को भी बिना जानकारी के लौटा दिया गया। इससे साफ है कि हाउसिंग बोर्ड के अधिकारी इस कदर बेखौफ और बेलगाम हो गए हैं कि वे आरटीआई के तहत आए आवेदनों को भी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं और जानकारी देना जरुरी नहीं समझ रहे हैं। सरकार की बोर्ड की अनियमितताओं और अधिकारियों के भ्रष्टाचार पर आंखे मूंदे होने और राज्य सूचना आयोग के मेहरबान होने का अधिकारी पूरा-पूरा फायदा उठा रहे हैं।

हाइकोर्ट ने जारी किया है नोटिस

बोर्ड के अधिकारियों द्वारा आरटीआई का जवाब नहीं देने के ऐसे ही एक मामले में कोर्ट ने राज्य सूचना आयोग सहित संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया है। दरअसल आवेदक ने बोर्ड के कुछ अपर आयुक्तों के चल-अचल संपत्ति के संबंध में आरटीआई के तहत जानकारी मांगी जिसपर पहले हाउसिंग बोर्ड ने लोकहित से संबंधित नहीं होने का हवाला देकर जानकारी देने से इंकार दिया था। उसके बाद अपील में फिर राज्य सूचना आयोग द्वारा जनसूचना अधिकारी के तर्क से सहमति जताते हुए जानकारी देने से इंकार कर दिया गया जिस पर आवेदक ने हाइकोर्ट में याचिका लगाई थी जिस पर सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया गया है।

पहले काम बाद में स्वीकृति

हाउसिंग बोर्ड में गंगा उल्टी बहने का इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा कि अधिकारी किसी भी प्रस्ताव पर स्वीकृति से पहले ही काम शुरू कर लेते है और बिना बजट के राशि भी खर्च लेते हैं और बाद में प्रस्ताव और बजट को संचालक मंडल में अनुमोदित करवाते हैं। दिसंबर में हुई संचालक मंडल की बैठक में ऐसे ही कई एजेंडे को स्वीकृति दी गई जिस पर पहले से ही काम शुरु कर राशि खर्च कर दी गई थी। सिंचाई कालोनी के रिडव्ल्पमेंट के लिए पुराने और जर्जर मकानों को तोडऩे और उसके लिए राशि खर्चने के बाद संचालक मंडल की बैठक में उक्त प्रस्ताव का अनुमोदन किया गया।  

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